MP Civil Services (Pension) Rules | रिटायरमेंट के बाद विभागीय जांच जारी रह सकती है, दंड आदेश केवल राज्यपाल द्वारा पारित किया जा सकता है: हाईकोर्ट

Update: 2024-10-19 06:51 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ग्वालियर में रिटायर्ड वन रेंजर हरिवल्लभ चतुर्वेदी पर जुर्माना लगाने वाला आदेश रद्द कर दिया।

न्यायालय ने कहा कि मध्य प्रदेश सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1976 के तहत उचित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया।

न्यायालय ने कहा कि सरकारी कर्मचारी के सेवानिवृत्त होने के बाद केवल राज्यपाल ही विभागीय जांच के आधार पर ऐसे दंडात्मक आदेश जारी कर सकते हैं।

जस्टिस अनिल वर्मा की अध्यक्षता वाली अदालत ने कहा,

“नियम 1976 के नियम 9(2)(ए) के अनुसार सेवानिवृत्ति से पहले विभागीय जांच शुरू की गई। इसलिए रिटायरमेंट के बाद भी इसे जारी रखा जा सकता है। दंड का आदेश राज्यपाल द्वारा पारित किया जाना है, जो राज्य में सर्वोच्च अधिकारी हैं। इस अनिवार्य प्रक्रिया का पालन न करने पर अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश कमजोर हो जाता है।”

यह मामला इस बारे में था कि क्या अनुशासनात्मक निकाय के पास चतुर्वेदी की रिटायरमेंट के बाद जुर्माना लगाने का अधिकार है। रिटायरमेंट से पहले शुरू की गई विभागीय कार्यवाही पेंशन नियमों के नियम 9(2)(ए) के तहत जारी रह सकती है, लेकिन लगाए गए किसी भी दंड का आदेश राज्यपाल द्वारा दिया जाना चाहिए।

प्रेम प्रकाश शर्मा बनाम MPMKVVCL (2018) के मामले को संदर्भित किया गया, जहां यह माना गया कि केवल राज्यपाल के पास विभागीय जांच के बाद रिटायर सरकारी कर्मचारियों पर जुर्माना लगाने का अधिकार है। न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के मामले में नियम 9(2)(ए) के अनिवार्य प्रावधानों की अनदेखी की गई, इसलिए दंड आदेश अमान्य है।

“दंड पर दंड लगाने वाला कोई भी आदेश राज्यपाल द्वारा जारी किया जा सकता है, लेकिन तत्काल मामले में वही अनिवार्य प्रक्रिया लागू नहीं की गई। दिनांक 23.05.2022 का आरोपित आदेश पूरी तरह से अधिकार क्षेत्र से परे है और न्याय के हित में इसे रद्द किया जाना चाहिए।”

याचिकाकर्ता हरिवल्लभ चतुर्वेदी वन रेंजर थे, जिन पर अनधिकृत सड़क निर्माण का आरोप था, जिससे सरकार को आर्थिक नुकसान हुआ। अनुशासनात्मक कार्यवाही उनकी रिटायरमेंट से पहले शुरू हुई, लेकिन सजा उनकी रिटायरमेंट के बाद दी गई।

याचिकाकर्ता ने आदेश को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि अनुशासनात्मक निकाय के पास रिटायरमेंट के बाद ऐसा आदेश जारी करने की शक्ति नहीं है, क्योंकि पेंशन नियम, 1976 के नियम 9(2)(ए) के तहत केवल राज्यपाल के पास ही यह क्षमता है।

इस मामले में न्यायालय ने विवादित आदेश खारिज कर दिया और राज्य को याचिकाकर्ता को दो महीने के भीतर सभी रिटायरमेंट लाभ जारी करने का निर्देश दिया। साथ ही 6% वार्षिक ब्याज भी दिया।

केस टाइटल: हरिवल्लभ चतुर्वेदी बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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