एडवोकेट एक्ट में वकील का एनरोलमेंट ट्रांसफर करने पर रोक है तो आप उसके लिए फीस कैसे मांग सकते हैं? मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य बार काउंसिल से पूछा

Update: 2025-10-08 04:06 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार (7 अक्टूबर) को राज्य बार काउंसिल से मौखिक रूप से सवाल किया कि क्या एडवोकेट एक्ट में ऐसी फीस मांग पर रोक होने के बावजूद, एक वकील से राज्य में अपना एनरोलमेंट ट्रांसफर करने के लिए शुल्क मांगा जा रहा है।

बता दें, एक्ट की धारा 18(1) में कहा गया कि कोई व्यक्ति जिसका नाम किसी राज्य बार काउंसिल की सूची में वकील के रूप में दर्ज है, वह उस राज्य बार काउंसिल की सूची से किसी अन्य राज्य बार काउंसिल की सूची में अपना नाम ट्रांसफर करने के लिए निर्धारित प्रपत्र में बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) को आवेदन कर सकता है।

ऐसा आवेदन प्राप्त होने पर BCI निर्देश देगा कि ऐसे व्यक्ति का नाम, "बिना किसी फीस के" पहले उल्लिखित राज्य बार काउंसिल की सूची से हटाकर दूसरे राज्य बार काउंसिल की सूची में दर्ज कर दिया जाए और संबंधित राज्य बार काउंसिल इस निर्देश का पालन करेंगी।

अदालत एक वकील की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 200 रुपये की "अत्यधिक" फीस लगाए जाने पर सवाल उठाया गया। दिल्ली से मध्य प्रदेश में एनरोलमेंट ट्रांसफर करने के लिए 15,000 रुपये की मांग की। यह बताए जाने के बाद कि राज्य बार निकाय ने बिना कोई शुल्क लिए वकील को नामांकन प्रदान कर दिया है, याचिका का निपटारा कर दिया गया।

इससे पहले की सुनवाई में हाईकोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में राज्य बार काउंसिल को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता वकील रोहित पाठक का नाम फिलहाल बिना कोई फीस लिए अपनी सूची में अस्थायी रूप से दर्ज करे। बार काउंसिल के वकील ने कहा कि हाईकोर्ट के पिछले आदेश का पालन किया गया।

हालांकि, सुनवाई के दौरान, एक अन्य वकील (जो याचिका में पक्षकार नहीं है) ने तर्क दिया कि एनरोलमेंट ट्रांसफर के संबंध में उन्हें भी इसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

उन्होंने दावा किया कि जब उन्होंने राज्य बार काउंसिल से संपर्क किया तो बार निकाय ने उनसे कहा कि या तो वे इस मामले में हाईकोर्ट के निर्देशों का इंतजार करें या पूरी फीस का भुगतान करें। उन्होंने प्रार्थना की कि कोर्ट ट्रांसफर फीस शुल्क की मांग पर स्वतंत्र रूप से इस मामले को उठाए और उचित निर्देश जारी करे।

राज्य बार काउंसिल के वकील ने तर्क दिया कि यह एक वित्तीय मामला है और अगली आम सभा की बैठक में इस पर विचार किया जाएगा। हालांकि, अदालत ने मौखिक रूप से इस तरह की फीस मांगने वाले प्राधिकारी पर सवाल उठाया, क्योंकि ए़डवोकेट एक्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया कि नामांकन स्थानांतरित करने के लिए कोई फीस आवश्यक नहीं है।

अदालत ने मौखिक रूप से पूछा,

"आप फीस कैसे मांग सकते हैं, जबकि एक्ट में बिना फीस के ऐसा करने का उल्लेख है।"

इस पर राज्य बार काउंसिल के वकील ने अदालत को आश्वासन दिया कि वे अगली आम सभा में ट्रांसफर फीस मामले पर पुनर्विचार करेंगे।

चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस द्वारकाधीश बंसल की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा:

"राज्य बार काउंसिल के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता का आवेदन स्वीकार कर लिया गया और याचिकाकर्ता का नाम बिना किसी फीस के राज्य बार काउंसिल की सूची में दर्ज कर लिया गया। उन्होंने प्रस्तुत किया कि ए़डवोकेट एक्ट, 1961 की धारा 18 के विशिष्ट प्रावधानों के मद्देनजर, जिसमें कहा गया कि भारतीय बार काउंसिल यह निर्देश देगी कि ऐसे व्यक्ति का नाम बिना किसी फीस के प्रथम राज्य बार काउंसिल की सूची से हटाकर दूसरे राज्य बार काउंसिल की सूची में दर्ज कर लिया जाए, भारतीय बार काउंसिल से उचित अनुमोदन के बाद प्राप्त ऐसे ट्रांसफर आवेदनों के मामले में राज्य बार काउंसिल द्वारा कोई फीस नहीं ली जाएगी। यह कथन अभिलेख में दर्ज किया जाता है। तदनुसार याचिका का उपरोक्त शर्तों के अनुसार निपटारा किया जाता है।"

याचिकाकर्ता ने पहले प्रस्तुत किया कि भारतीय बार काउंसिल ने पहले ही याचिकाकर्ता का एनरोलमेंट दिल्ली बार काउंसिल से मध्य प्रदेश बार काउंसिल में ट्रांसफर करने का आदेश पारित कर दिया।

जब दूसरे वकील ने फिर से यह मुद्दा उठाया कि राज्य बार एसोसिएशन के वकील ने कहा कि वे अगली बैठक में ट्रांसफर फीस का मुद्दा उठाएंगे तो अदालत ने मौखिक रूप से वकील को आश्वस्त किया और कहा:

"हमने निर्देश दे दिया; अब वे इस पर विचार नहीं कर सकते। उन्होंने बयान दिया कि वे फीस नहीं लेंगे। आप जाकर अपना स्थानांतरण करवाएं।"

याचिका का निपटारा कर दिया गया।

Case Title: Rohit Pathak v Bar Council of India (WP-35160-2025)

Tags:    

Similar News