नियुक्तियों में जाति-आधारित वरीयता केवल तभी दी जा सकती है, जब न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता पूरी हो: एमपी हाईकोर्ट ने ASHA Worker की बर्खास्तगी खारिज की

Update: 2024-08-23 07:26 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में अपनी जबलपुर बेंच में मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (ASHA Worker) की बर्खास्तगी खारिज की। वर्कर को अनुसूचित जनजाति (ST) के उम्मीदवारों को उन क्षेत्रों में वरीयता देने वाली राज्य नीति के कारण बर्खास्त किया गया था, जहां उनकी आबादी 50% से अधिक है। अदालत ने माना कि इस मामले में उम्मीदवारों की शैक्षणिक योग्यता के कारण इस नीति का आवेदन गलत था।

जस्टिस विवेक जैन की एकल पीठ ने बर्खास्तगी को अनुचित माना और कहा कि आशा कार्यकर्ता के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता दसवीं कक्षा उत्तीर्ण है। ऐसे उम्मीदवारों की अनुपस्थिति में आठवीं कक्षा उत्तीर्ण उम्मीदवार पर केवल विशेष परिस्थितियों में ही विचार किया जा सकता है। याचिकाकर्ता बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण होने के कारण एकमात्र एसटी उम्मीदवार, जो आठवीं कक्षा उत्तीर्ण है, से अधिक योग्य है।

न्यायालय ने कहा,

“यह कानून में तय है कि वरीयता केवल तभी दी जा सकती है, जब अन्य चीजें समान हों। एक बार जब न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता दसवीं कक्षा उत्तीर्ण थी तो वरीयता केवल तभी संचालित की जा सकती थी, जब एसटी श्रेणी का उम्मीदवार भी कम से कम दसवीं कक्षा उत्तीर्ण हो और केवल उस स्थिति में वरीयता का पहलू सामने आता।”

न्यायालय ने सचिव, ए.पी. लोक सेवा आयोग बनाम वाई.वी.वी.आर. श्रीनिवासुलु, (2003) जैसे सुप्रीम कोर्ट के उदाहरणों का हवाला दिया, जहां यह माना गया कि 'वरीयता' शब्द का अर्थ चयन का स्वतः अधिकार नहीं है। वरीयता केवल तभी लागू होती है जब उम्मीदवार समान रूप से योग्य हों। इसे आरक्षण के नियम या अधिभावी कारक के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।

मामले की पृष्ठभूमि 1 जुलाई, 2024 के आदेश से जुड़ी है, जिसने याचिकाकर्ता (फूलवती प्रजापति) की आशा कार्यकर्ता के रूप में नियुक्ति को समाप्त कर दिया। यह समाप्ति सीधी के मुख्य मेडिकल एवं स्वास्थ्य अधिकारी के निर्देश के अनुरूप थी, जो 21 जून, 2024 के पत्र पर आधारित थी। पत्र में आदेश दिया गया कि गांव में एसटी आबादी 50% से अधिक है, इसलिए उस समुदाय के उम्मीदवार को वरीयता दी जानी चाहिए, जिसके कारण याचिकाकर्ता को बर्खास्त कर दिया गया, जबकि 24 मार्च 2023 के आदेश के अनुसार उसकी नियुक्ति शुरू में वैध थी।

याचिकाकर्ता ने समाप्ति को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि उसे सुनवाई का कोई अवसर दिए बिना बर्खास्त कर दिया गया। उसकी योग्यता के आधार पर उसे विधिवत नियुक्त किया गया। उसके खिलाफ कोई प्रतिकूल रिकॉर्ड नहीं था। समाप्ति मनमाना थी, क्योंकि इसमें उसकी योग्यता पर विचार नहीं किया गया। यह गांव की जनसंख्या के आंकड़ों पर आधारित था।

राज्य ने तर्क दिया कि बर्खास्तगी उसकी नीति पर आधारित थी, जिसके अनुसार अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदाय के उम्मीदवारों को उन गांवों में वरीयता दी जानी चाहिए, जहां उनकी आबादी 50% से अधिक है। विचाराधीन गांव में अनुसूचित जनजाति की आबादी 246 थी, जबकि याचिकाकर्ता जिस अनुसूचित जाति से संबंधित थी, उसकी आबादी 29 थी। राज्य ने तर्क दिया कि इस जनसंख्या गतिशीलता के कारण उसकी बर्खास्तगी उचित थी, क्योंकि उसकी नियुक्ति 2 अगस्त, 2022 के परिपत्र के खंड-9 का उल्लंघन करती है।

अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि न्यूनतम योग्यता रखने वाला कोई भी उम्मीदवार अनुसूचित जनजाति श्रेणी से संबंधित विचार के दायरे में नहीं था, इसलिए प्रतिवादियों ने 21.06.2024 के आदेश द्वारा वरीयता को गलत तरीके से संचालित किया और 01.07.2024 के परिणामी आदेश द्वारा याचिकाकर्ता की सेवाओं को समाप्त कर दिया।

केस टाइटल- फूलवती प्रजापति बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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