Transfer Of Property Act में ट्रांसफर पर लगाई कौन सी शर्त मानी नहीं जाती?

Update: 2025-01-07 16:21 GMT

संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 10 स्पष्ट रूप से यह उल्लेख करती है कि कोई भी ऐसी शर्त जो भविष्य में संपत्ति के अंतरण को रोकती है वे शून्य मानी जाती है। किसी भी अंतरण में यदि इस प्रकार की मर्यादा अधिरोपित की जाती है तो उस मर्यादा को शून्य माना जाएगा। यह धारा सीमित अंतरण को प्रतिबंधित करती है तथा उसी से संबंधित विषय को उल्लेखित कर रही है।

यदि सम्पत्ति किसी अन्तरिती के पक्ष में अन्तरित की गयी हो और अन्तरण पर यह शर्त लगायी गयी हो कि अन्तरिती अपने हित का पुनः अन्तरण नहीं करेगा और अध्यारोपित शर्त ऐसी हो जिससे अन्तरण पर पूर्णरूपेण प्रतिबन्ध लगाया गया हो, वहाँ पट्टे द्वारा किये गए अन्तरण को छोड़कर लगायी गयी शर्त या मर्यादा शून्य होगी।

अन्तरण का अधिकार सम्पत्ति के सुखद उपयोग से अभिन्न एवं उसका अनुषंगी अधिकार होता है। अतः सम्पत्ति के अन्तरण पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने वाली शर्त शून्य होगी। इसके अन्तर्गत केवल शर्त शून्य घोषित की गयी है। अन्तरण वैध एवं प्रभावकारी रहता है। सम्पत्ति के अन्तरण पर पूर्ण या आत्यन्तिक प्रतिबन्ध, उसके स्वतंत्र और मुक्त अन्तरण को प्रतिबन्धित करता है और इस प्रकार का प्रतिबन्ध शाश्वतता को जन्म देता है जिसे विधि घृणा की दृष्टि से देखती है।

यह धारा तब प्रभावी होती है जब निम्नलिखित शर्तें पूर्ण हो जाएं-

कोई सम्पत्ति किसी शर्त अथवा मर्यादा के अधीन अन्तरित की गयी हो

इस प्रकार अध्यारोपित शर्त या मर्यादा अन्तरिती या उसके अधीन सम्पत्ति की माँग करने वाले किसी व्यक्ति के अन्तरण के अधिकार को पूर्णरूपेण प्रतिबन्धित करती हो

किसी शर्त अथवा मर्यादा के अधीन सम्पत्ति का अन्तरण-

इस धारा में वर्णित सिद्धान्त के लागू होने के लिए प्रथम आवश्यक तत्व यह है कि सम्पत्ति एक अन्तरिती के पक्ष में अन्तरित की गयी हो और अन्तरण करते समय यह शर्त या मर्यादा लगायी गयी हो कि अन्तरिती उक्त सम्पत्ति को अन्तरित नहीं कर सकेगा अध्यारोपित शर्त पाश्चिक शर्त होनी चाहिए जिसका उल्लेख अधिनियम की धारा 31 में किया गया है।

इस तथ्य का निर्धारण करने के लिए, कि सम्पत्ति का अन्तरण किसी ऐसी शर्त के अध्यधीन है जो अन्तरितों को पुनः अन्तरित करने से प्रतिबन्धित करती है; अन्तरण विलेख की शर्तों को सम्यक् रूप से ध्यान में रखा जाना चाहिए।

उदाहरण- 'अ' जो एक सम्पत्ति का पूर्ण स्वामी है, उक्त सम्पत्ति में अपने पक्ष में अन्तरण को शक्ति से रहित आजीवन हित सृष्ट करते हुए, अवशिष्ट हित ब' के पक्ष में अन्तरित कर देता है। इस अन्तरण में 'ब' के पक्ष में सृष्ट हित पर कोई प्रतिबन्ध या शर्त नहीं समझी जाएगी। अतः इस धारा में वर्णित सिद्धान्त भी नहीं लागू होगा।

एक वाद में 'अ' ने अपने मकान को ब के पक्ष में दान द्वारा अन्तरित किया। अन्तरण इस शर्त के साथ किया गया कि यदि 'ब' 'अ' की पत्नी के जीवनकाल में सम्पत्ति को बेचना चाहेगा तो वह उसे 3000 पौण्ड में खरीदने में सक्षम होगी। मकान का बाजार में मूल्य लगभग 15000 पौण्ड था। यह अभिनिर्णीत हुआ कि ऐसा करार सशर्त है तथा आत्यन्तिक प्रकृति का है। इसी प्रकार 'अ' ने एक खेत, 'ब' के पक्ष में इस शर्त के साथ अन्तरित किया कि यदि 'ब', कभी इसे बेचना चाहेगा, तो वह उसे 'स' को ही बेचेगा। ऐसा अन्तरण सशर्त होगा और शर्त शून्य होगी।

अन्तरिती को पुनः अन्तरित करने से पूर्णरूपेण अवरुद्ध करती हो-

अन्तरिती के अधिकार पर लगाया गया प्रतिबन्ध आत्यन्तिक अथवा आंशिक प्रकृति का हो सकता है, परन्तु यह धारा केवल उन अवरोधों को प्रभावित करती है जो आत्यन्तिक प्रकृति के होते हैं। यदि अध्यारोपित प्रतिरोध आंशिक प्रकृति का है तो इस धारा में वर्णित सिद्धान्त लागू नहीं होगा सम्पत्ति के अन्तरण पर लगाया गया आत्यन्तिक प्रकृति का अवरोध या प्रतिबन्ध स्वामित्व पर प्रतिरोध के तुल्य माना जाता है।

यदि शर्त अन्तरण की समस्त शक्ति को समाप्त नहीं करती है, चाहे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में, तो ऐसी शर्त वैध होगी। अन्तरण को प्रतिबन्धित करने के अनेक तरीके हो सकते हैं, जैसे अन्तरण व्यक्ति विशेष को न किया जाए या एक व्यक्ति तक न किया जाए या विशिष्ट प्रकार का अन्तरण न किया जाए, इत्यादि। इस प्रकार की शर्तें अवैध नहीं होंगो मोहम्मद रजा बनाम अब्बास बन्दी बो के बाद में प्रिवी कौंसिल ने यह मत अभिव्यक्त किया था कि

'यदि अन्तरितों के पक्ष में किया गया अन्तरण इस शर्त के साथ किया गया हो कि वह किसी अजनबी व्यक्ति के पक्ष में सम्पत्ति का अन्तरण नहीं करेगा, या परिवार से बाहर के किसी सदस्य के पक्ष में नहीं करेगा तो ऐसी शर्त शून्य नहीं होगी।'

इसी प्रकार यदि 'अ' अपनी सम्पत्ति 'ब' के पक्ष में इस शर्त के साथ अन्तरित करता है कि यदि 'ब' अन्तरित करना चाहेगा तो वह केवल टुकड़ों में हो अन्तरित कर सकेगा, सम्पूर्ण सम्पत्ति नहीं। ऐसी शर्त वैध होगी। इस प्रकार की शर्त अन्तरण पर पूर्ण प्रतिबन्ध नहीं लगाती है।

किन्तु यदि अ' अपनी सम्पत्ति इस शर्त के साथ 'ब' के पक्ष में अन्तरित करता है कि अन् करने से पूर्व 'अ' को सहमति प्राप्त करेगा। ऐसी शर्त शून्य होगी क्योंकि 'अ' अपनी सहमति न प्रदान कर अन्तरण को पूर्णरूपेण रोक सकता है। ऐसी शर्त सारवान रूप में शून्य होगी। अपवाद- इस धारा में वर्णित सिद्धान्त के निम्नलिखित दो अपवाद हैं-

पट्टा - यदि सम्पत्ति का अन्तरण पट्टे के रूप में किया गया हो और यह शर्त लगायी गयी हो कि पट्टाधारी सम्पत्ति का उपपट्टा सुष्ट नहीं कर सकेगा या किसी के पक्ष में हस्तांतरित नहीं करेगा तो ऐसी शर्त वैध होगी, क्योंकि इस प्रकार की सम्पत्ति में पट्टाकर्ता का भी हित बना रहता है।

पट्टे के मामले में निम्नलिखित दो प्रकार के प्रतिबन्ध हो सकेंगे-

पट्टाधारी पट्टे का आंशिक या पूर्ण अन्तरण कभी नहीं करेगा।

पट्टाधारी पट्टे का अन्तरण पट्टाकर्ता को पूर्व अनुमति के बिना नहीं करेगा।

यदि लगायी गयी शर्त का पट्टाधारी उल्लंघन करता है तो पट्टाकर्ता को यह अधिकार होगा कि वह पट्टा समाप्त कर दे और सम्पत्ति को पुनः अपने कब्जे में ले ले। पट्टे के मामले में यह आवश्यक होता है कि शर्त पट्टाकर्ता के लाभ के लिए लगायी जाए।

विवाहिता स्त्री- किसी विवाहिता स्त्री (जो न हिन्दू, मुसलमान या बुद्धिष्ट हो) के पक्ष में किया गया सम्पत्ति का अन्तरण सशर्त हो सकेगा और शर्त के अन्तर्गत उस स्त्री के अन्तरण को शक्ति को पूर्णरूपेण प्रतिबन्धित किया जा सकेगा। ऐसी स्त्री जिस अवधि तक सम्पत्ति को धारण करेगी वह सम्पत्ति अन्तरित करने के अधिकार से वंचित रहेगी और ऐसी शर्त विरुद्ध नहीं मानी जाएगी। दि मैरेड वोमेन्स प्रापर्टी 1874 की धारा 8 जैसा कि सन् 1929 के अधिनियम 21 द्वारा संशोधित है उपबन्धित करती है कि विवाहिता स्त्री के विरुद्ध पारित डिक्री उसकी सम्पत्ति के विरुद्ध निष्पादित नहीं हो सकेगी जिसका अन्तरण करने का अधिकार उसके वैवाहिक जीवनकाल के दौरान प्रतिबन्धित था।

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