भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 3: प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौतों पर प्रतिबंध

Update: 2025-07-26 11:47 GMT

हमने पहले देखा कि कैसे प्रतिस्पर्धा (Competition) हमारे बाजारों को स्वस्थ रखती है। लेकिन कभी-कभी, कुछ कंपनियाँ चुपचाप हाथ मिला लेती हैं और आपस में ऐसे समझौते कर लेती हैं जो इस Competition को खत्म कर देते हैं। ऐसे समझौतों से ग्राहकों को नुकसान होता है क्योंकि उन्हें कम विकल्प मिलते हैं और अक्सर अधिक कीमतें चुकानी पड़ती हैं। ऐसे अनुचित समझौतों को रोकने के लिए ही भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम (Competition Act), 2002 की धारा 3 (Section 3) बनाई गई है। यह धारा "प्रतिस्पर्धा-विरोधी समझौतों" पर प्रतिबंध लगाती है।

धारा 3(1) और 3(2): मूल नियम (Basic Rules)

धारा 3(1) बहुत सीधा नियम बताती है: कोई भी कंपनी, कंपनियों का समूह, व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह किसी भी ऐसे समझौते में प्रवेश नहीं करेगा जो वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण, भंडारण, अधिग्रहण या नियंत्रण, या सेवाओं के प्रावधान के संबंध में हो, और जो भारत के भीतर Competition पर एक Appreciable Adverse Effect (पर्याप्त प्रतिकूल प्रभाव) डालता हो या डालने की संभावना हो।

इसका मतलब यह है कि अगर कोई समझौता बाजार में Competition को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है, तो वह अवैध है।

धारा 3(2) इसके परिणाम को स्पष्ट करती है: धारा 3(1) का उल्लंघन करने वाला कोई भी समझौता शून्य (Void) माना जाएगा। "शून्य" का मतलब है कि कानून की नजर में उस समझौते का कोई अस्तित्व नहीं है, और उसे लागू नहीं किया जा सकता।

उदाहरण के लिए:

कल्पना कीजिए कि भारत में सभी प्रमुख टीवी निर्माता आपस में गुप्त रूप से समझौता कर लें कि वे इस साल से किसी भी टीवी को 50,000 रुपये से कम में नहीं बेचेंगे। यह ग्राहकों के लिए बहुत बुरा होगा क्योंकि उन्हें कम कीमत वाले टीवी खरीदने का कोई विकल्प नहीं मिलेगा, भले ही कंपनियां कम कीमत पर बेच सकती हों। यह एक ऐसा समझौता है जो Competition पर "Appreciable Adverse Effect" डालेगा और धारा 3(1) के तहत निषिद्ध होगा, और धारा 3(2) के अनुसार, यह समझौता कानून की नजर में "शून्य" होगा।

धारा 3(3): क्षैतिज समझौते - Competitors के बीच साठगाँठ (Horizontal Agreements - Collusion Among Competitors)

धारा 3(3) उन समझौतों पर विशेष ध्यान देती है जो एक ही स्तर पर Competition करने वाली कंपनियों (यानी, सीधे Competitors) के बीच होते हैं। ऐसे समझौतों को "क्षैतिज समझौते" कहा जाता है। कानून यह मानता है कि ये समझौते Competition पर "Appreciable Adverse Effect" डालेंगे, जब तक कि पक्ष यह साबित न कर दें कि ऐसा नहीं है। यह एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जिसे Presumption of Guilt (दोष की धारणा) कहते हैं - यानी, पहले से मान लिया जाता है कि ये बुरे हैं, जब तक कि आप उन्हें अच्छा साबित न कर दें।

यहां कुछ सामान्य प्रकार के क्षैतिज समझौते दिए गए हैं जिन पर धारा 3(3) प्रतिबंध लगाती है:

• मूल्य निर्धारण (Directly or Indirectly Determines Purchase or Sale Prices - मूल्य निर्धारित करना): जब Competitors (प्रतिस्पर्धी) सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से खरीदने या बेचने की कीमतों पर सहमत होते हैं।

o उदाहरण: सभी प्रमुख पेंट कंपनियां मिलकर तय करें कि वे एक निश्चित प्रकार के पेंट को किसी विशेष मूल्य से कम पर नहीं बेचेंगी। इससे ग्राहक को कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि उसे हमेशा एक ही ऊंची कीमत चुकानी होगी।

o महत्वपूर्ण मामला: भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग बनाम भारतीय सीमेंट विनिर्माता संघ (Competition Commission of India v. Cement Manufacturers' Association of India) मामले में, CCI ने सीमेंट कंपनियों पर मूल्य निर्धारण और उत्पादन नियंत्रण के लिए जुर्माना लगाया था, जो स्पष्ट रूप से धारा 3(3)(a) का उल्लंघन था।

• उत्पादन, आपूर्ति, बाजार आदि को सीमित या नियंत्रित करना (Limits or Controls Production, Supply, Markets, Technical Development, Investment or Provision of Services - उत्पादन या आपूर्ति को सीमित करना): जब Competitors मिलकर उत्पादन, आपूर्ति, बाजार, तकनीकी विकास, निवेश या सेवाओं के प्रावधान को सीमित या नियंत्रित करते हैं।

o उदाहरण: स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियां आपस में तय कर लें कि वे इस साल केवल एक निश्चित संख्या में ही फोन बनाएंगे, भले ही बाजार में ज्यादा मांग हो। इससे फोन की उपलब्धता कम हो जाएगी और कीमतें बढ़ जाएंगी।

• बाजार साझा करना (Shares the Market or Source of Production or Provision of Services - बाजार या ग्राहकों को बांटना): जब Competitors भौगोलिक क्षेत्र, वस्तुओं या सेवाओं के प्रकार, या बाजार में ग्राहकों की संख्या के आधार पर बाजार या उत्पादन के स्रोत को आपस में बांट लेते हैं।

o उदाहरण: दो बड़ी कूरियर कंपनियां तय कर लें कि एक केवल उत्तरी भारत में डिलीवरी करेगी और दूसरी केवल दक्षिणी भारत में। इससे ग्राहकों को दोनों क्षेत्रों में बेहतर सेवा के लिए Competition करने का अवसर नहीं मिलेगा।

• बोली धांधली या मिलीभगत से बोली लगाना (Directly or Indirectly Results in Bid Rigging or Collusive Bidding - बोली में हेरफेर): जब Competitors गुप्त रूप से बोली प्रक्रिया में हेरफेर करते हैं ताकि एक विशिष्ट कंपनी को टेंडर मिल सके, जिससे असली Competition खत्म हो जाती है।

o उदाहरण: एक सरकारी सड़क परियोजना के लिए बोली लगाने वाली निर्माण कंपनियां आपस में गुप्त रूप से मिल जाती हैं और तय करती हैं कि कौन सी कंपनी सबसे कम बोली लगाएगी, और बाकी जानबूझकर ऊंची बोली लगाएंगी ताकि उस कंपनी को ठेका मिल सके।

o धारा 3(3) की व्याख्या (Explanation): "बोली धांधली" का अर्थ है समान या समान उत्पादन या व्यापार में लगे उद्यमों या व्यक्तियों के बीच कोई भी समझौता, जिसका bids (बोली) के लिए Competition को खत्म करने या कम करने या bidding (बोली लगाने) की प्रक्रिया को प्रतिकूल रूप से प्रभावित या हेरफेर करने का प्रभाव होता है।

परंतु (Proviso): एक महत्वपूर्ण अपवाद भी है! धारा 3(3) संयुक्त उद्यमों (Joint Ventures) पर लागू नहीं होती है यदि ऐसा समझौता उत्पादन, आपूर्ति, वितरण, भंडारण, अधिग्रहण या वस्तुओं के नियंत्रण या सेवाओं के प्रावधान में दक्षता बढ़ाता है। इसका मतलब है कि यदि दो कंपनियाँ एक साथ मिलकर कुछ ऐसा करती हैं जिससे वे अधिक कुशलता से काम कर सकें और ग्राहकों को बेहतर लाभ मिले, तो उसे Competition-विरोधी नहीं माना जाएगा।

धारा 3(4): ऊर्ध्वाधर समझौते - आपूर्ति श्रृंखला में प्रतिबंध (Vertical Agreements - Restrictions in the Supply Chain)

धारा 3(4) उन समझौतों से संबंधित है जो उत्पादन श्रृंखला के विभिन्न चरणों या स्तरों पर उद्यमों या व्यक्तियों के बीच होते हैं। ये सीधे Competitors नहीं होते, बल्कि आपूर्ति श्रृंखला में अलग-अलग भूमिका निभाते हैं (जैसे एक निर्माता और एक थोक विक्रेता, या एक थोक विक्रेता और एक खुदरा विक्रेता)। इन समझौतों को Competition-विरोधी तभी माना जाता है जब वे भारत में Competition पर एक Appreciable Adverse Effect (पर्याप्त प्रतिकूल प्रभाव) डालते हैं।

यहां कुछ प्रकार के ऊर्ध्वाधर समझौते दिए गए हैं जिन पर धारा 3(4) प्रतिबंध लगाती है:

• टाई-इन व्यवस्था (Tie-in Arrangement - बंधुआ व्यवस्था): जब किसी ग्राहक को एक उत्पाद खरीदने के लिए, उसे विक्रेता से कोई और उत्पाद भी खरीदना पड़ता है।

o उदाहरण: एक सॉफ्टवेयर कंपनी आपको अपना लोकप्रिय ऑपरेटिंग सिस्टम तभी बेचने पर सहमत होती है जब आप उनका कम लोकप्रिय वेब ब्राउज़र भी खरीदें। ग्राहक को वह उत्पाद खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है जिसकी उसे शायद आवश्यकता न हो।

o धारा 3(4) की व्याख्या (Explanation): "टाई-इन व्यवस्था" में कोई भी ऐसा समझौता शामिल है जिसमें किसी सामान के खरीदार को, ऐसी खरीद की शर्त के रूप में, कुछ अन्य सामान खरीदने की आवश्यकता होती है।

• विशेष आपूर्ति समझौता (Exclusive Supply Agreement - विशेष आपूर्ति): जब एक खरीदार को अपने व्यापार के दौरान विक्रेता या किसी अन्य व्यक्ति के अलावा किसी भी अन्य सामान को खरीदने या उससे निपटने से प्रतिबंधित किया जाता है।

o उदाहरण: एक बड़ी पेय कंपनी एक छोटे रेस्तरां से समझौता करती है कि रेस्तरां केवल उसी कंपनी के पेय बेचेगा, और किसी अन्य ब्रांड के नहीं। इससे ग्राहकों के लिए विकल्पों की संख्या कम हो जाती है।

• विशेष वितरण समझौता (Exclusive Distribution Agreement - विशेष वितरण): जब किसी निर्माता का किसी क्षेत्र या बाजार में केवल एक ही वितरक होता है, या वितरक को किसी विशिष्ट क्षेत्र में बिक्री करने से प्रतिबंधित किया जाता है।

o उदाहरण: एक इलेक्ट्रॉनिक गैजेट निर्माता एक वितरक से समझौता करता है कि वह उसके उत्पादों को केवल एक विशेष शहर में ही बेच सकता है, और किसी अन्य शहर में नहीं। यह वितरण को सीमित करता है।

o धारा 3(4) की व्याख्या (Explanation): "विशेष वितरण समझौता" में किसी भी सामान के उत्पादन या आपूर्ति को सीमित करने, प्रतिबंधित करने या रोकने या सामान के निपटान या बिक्री के लिए किसी भी क्षेत्र या बाजार को आवंटित करने के लिए कोई भी समझौता शामिल है।

• डील करने से इनकार (Refusal to Deal - व्यापार करने से इनकार): ऐसा समझौता जो उन व्यक्तियों या व्यक्तियों के वर्गों को प्रतिबंधित करता है जिनसे सामान बेचे जाते हैं या जिनसे सामान खरीदे जाते हैं।

o उदाहरण: एक प्रमुख ब्रांड अपने उत्पादों को एक छोटे खुदरा विक्रेता को बेचने से इनकार करता है क्योंकि वह किसी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भारी छूट दे रहा है, जिससे उस छोटे खुदरा विक्रेता का व्यापार प्रभावित होता है।

o धारा 3(4) की व्याख्या (Explanation): "डील करने से इनकार" में कोई भी ऐसा समझौता शामिल है जो किसी भी तरीके से उन व्यक्तियों या व्यक्तियों के वर्गों को प्रतिबंधित करता है, या प्रतिबंधित करने की संभावना है, जिन्हें सामान बेचा जाता है या जिनसे सामान खरीदे जाते हैं।

• पुनर्विक्रय मूल्य रखरखाव (Resale Price Maintenance - पुनर्विक्रय मूल्य): जब एक विक्रेता ग्राहक को यह शर्त लगाता है कि खरीदार द्वारा पुनर्विक्रय पर लगाए जाने वाले मूल्य विक्रेता द्वारा निर्धारित मूल्य होंगे, जब तक कि यह स्पष्ट रूप से न कहा गया हो कि उन मूल्यों से कम मूल्य लगाए जा सकते हैं।

o उदाहरण: एक जूते का ब्रांड अपने सभी खुदरा विक्रेताओं से कहता है कि वे उसके जूते एक निश्चित न्यूनतम मूल्य से कम पर नहीं बेच सकते। इससे खुदरा विक्रेताओं के बीच मूल्य Competition खत्म हो जाती है, जिससे ग्राहकों को छूट मिलने की संभावना कम हो जाती है।

o महत्वपूर्ण मामला: Mohit Manglani v. M/s Flipkart India Pvt. Ltd. & Ors. (मोहित मंगलानी बनाम मेसर्स फ्लिपकार्ट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और अन्य) जैसे मामलों में, CCI ने ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर एक्सक्लूसिव बिक्री समझौतों (Exclusive Selling Agreements) की जांच की थी, जो पुनर्विक्रय मूल्य रखरखाव या अन्य ऊर्ध्वाधर प्रतिबंधों से संबंधित हो सकते हैं।

o धारा 3(4) की व्याख्या (Explanation): "पुनर्विक्रय मूल्य रखरखाव" में ऐसी शर्त पर सामान बेचने का कोई भी समझौता शामिल है कि खरीदार द्वारा पुनर्विक्रय पर लगाए जाने वाले मूल्य विक्रेता द्वारा निर्धारित मूल्य होंगे, जब तक कि यह स्पष्ट रूप से न कहा गया हो कि उन मूल्यों से कम मूल्य लगाए जा सकते हैं।

धारा 3(5): अपवाद - बौद्धिक संपदा अधिकार और निर्यात (Exceptions - Intellectual Property Rights and Exports)

धारा 3(5) कुछ महत्वपूर्ण अपवादों को सूचीबद्ध करती है जहाँ इस धारा के प्रतिबंध लागू नहीं होंगे:

• बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा (Protection of Intellectual Property Rights - बौद्धिक संपदा): यह धारा किसी भी व्यक्ति के अपने बौद्धिक संपदा अधिकारों (जैसे Copyright, Patents, Trademarks, आदि) के उल्लंघन को रोकने या उनकी रक्षा के लिए आवश्यक उचित शर्तें लगाने के अधिकार को प्रतिबंधित नहीं करती है।

o उदाहरण: एक सॉफ्टवेयर कंपनी अपने सॉफ्टवेयर के पायरेटेड (pirated) संस्करणों को बेचने से रोकने के लिए कानूनी कार्रवाई कर सकती है, भले ही यह Competition को "सीमित" करता प्रतीत हो, क्योंकि यह उसके Copyright (कॉपीराइट) की रक्षा के लिए आवश्यक है। यह उन विशेष कानूनों के तहत प्रदान किए गए अधिकारों की रक्षा करता है, जैसे:

 कॉपीराइट अधिनियम, 1957 (The Copyright Act, 1957)

 पेटेंट अधिनियम, 1970 (The Patents Act, 1970)

 ट्रेड एंड मर्चेंडाइज मार्क्स एक्ट, 1958 या ट्रेड मार्क्स एक्ट, 1999 (The Trade and Merchandise Marks Act, 1958 or the Trade Marks Act, 1999)

 माल के भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 (The Geographical Indications of Goods (Registration and Protection) Act, 1999)

 डिजाइन अधिनियम, 2000 (The Designs Act, 2000)

 सेमी-कंडक्टर इंटीग्रेटेड सर्किट लेआउट-डिज़ाइन अधिनियम, 2000 (The Semi-conductor Integrated Circuits Layout-Design Act, 2000)

• निर्यात (Exports): यह धारा किसी भी व्यक्ति के भारत से वस्तुओं का निर्यात करने के अधिकार को भी प्रतिबंधित नहीं करती है, बशर्ते कि समझौता विशेष रूप से ऐसे निर्यात के लिए वस्तुओं के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण या नियंत्रण या सेवाओं के प्रावधान से संबंधित हो।

o उदाहरण: यदि भारत में दो कंपनियां आपस में समझौता करती हैं कि वे केवल उन बाजारों में माल का निर्यात करेंगी जहां एक विदेशी प्रतिस्पर्धी मौजूद नहीं है, और यह समझौता विशेष रूप से निर्यात के लिए है, तो इसे Competition-विरोधी नहीं माना जाएगा।

Tags:    

Similar News