पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 24, 25, 26, 27: दस्तावेज़ प्रस्तुत करने की समय-सीमा में विशेष प्रावधान

Update: 2025-07-26 11:57 GMT

धारा 24. कई व्यक्तियों द्वारा अलग-अलग समय पर निष्पादित दस्तावेज़ (Documents executed by several persons at different times)

यह धारा उस स्थिति को स्पष्ट करती है जहाँ एक ही दस्तावेज़ को कई लोग अलग-अलग समय पर निष्पादित (execute) करते हैं, यानी उस पर हस्ताक्षर करते हैं। ऐसे दस्तावेज़ को प्रत्येक व्यक्ति द्वारा निष्पादन की तारीख (date of each execution) से चार महीने (four months) के भीतर पंजीकरण (registration) और पुनः-पंजीकरण (re-registration) के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है। यह सुनिश्चित करता है कि दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने वाले हर व्यक्ति को उसके हिस्से के निष्पादन के लिए पर्याप्त समय मिले।

उदाहरण: मान लीजिए एक संपत्ति के कई मालिक हैं और वे एक बिक्री विलेख (sale deed) पर हस्ताक्षर कर रहे हैं। पहला मालिक 1 जनवरी को हस्ताक्षर करता है, दूसरा 1 फरवरी को, और तीसरा 1 मार्च को। इस धारा के अनुसार, इस दस्तावेज़ को 1 जनवरी के निष्पादन के संबंध में 1 मई तक, 1 फरवरी के निष्पादन के संबंध में 1 जून तक, और 1 मार्च के निष्पादन के संबंध में 1 जुलाई तक पंजीकरण के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है।

धारा 25. जहाँ प्रस्तुतीकरण में देरी अपरिहार्य हो वहाँ प्रावधान (Provision where delay in presentation is unavoidable)

यह धारा उन स्थितियों से संबंधित है जहाँ किसी दस्तावेज़ को निर्धारित समय-सीमा के भीतर प्रस्तुत करने में अपरिहार्य (unavoidable) देरी हो जाती है।

उपधारा (1) कहती है कि यदि किसी अत्यावश्यक आवश्यकता (urgent necessity) या अपरिहार्य दुर्घटना (unavoidable accident) के कारण भारत में निष्पादित कोई दस्तावेज़, या किसी डिक्री (decree) या आदेश (order) की प्रतिलिपि, पंजीकरण के लिए यहाँ पहले से निर्धारित समय-सीमा (जैसे धारा 23 के तहत चार महीने) की समाप्ति के बाद प्रस्तुत की जाती है, तो रजिस्ट्रार (Registrar), उन मामलों में जहाँ प्रस्तुतीकरण में देरी चार महीने (four months) से अधिक नहीं है, निर्देश दे सकता है कि ऐसे दस्तावेज़ को पंजीकरण शुल्क (registration-fee) की उचित राशि के दस गुना से अधिक नहीं का जुर्माना (fine) लेकर स्वीकार किया जाए। यह रजिस्ट्रार को कुछ परिस्थितियों में देरी के लिए छूट देने का अधिकार देता है, लेकिन जुर्माने के साथ, ताकि समय-सीमा का उल्लंघन हतोत्साहित (discouraged) हो।

उदाहरण: किसी व्यक्ति ने 1 जनवरी को एक बिक्री विलेख निष्पादित किया, लेकिन एक गंभीर दुर्घटना के कारण वह अस्पताल में भर्ती हो गया और 1 मई तक दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं कर सका। यदि वह 1 जून को दस्तावेज़ प्रस्तुत करता है (निष्पादन के बाद 5 महीने), और रजिस्ट्रार को लगता है कि देरी अपरिहार्य थी (और यह चार महीने की अनुमेय देरी सीमा के भीतर है), तो वह सामान्य पंजीकरण शुल्क के दस गुना तक का जुर्माना लेकर उसे पंजीकृत करने की अनुमति दे सकता है।

उपधारा (2) यह बताती है कि ऐसी अनुमति के लिए कोई भी आवेदन उप-रजिस्ट्रार (Sub-Registrar) के पास जमा किया जा सकता है, जो उसे तुरंत उस रजिस्ट्रार (Registrar) को भेजेगा जिसके वह अधीनस्थ है। यह प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाता है, जिससे आवेदक को सीधे रजिस्ट्रार के पास जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

धारा 26. भारत से बाहर निष्पादित दस्तावेज़ (Documents executed out of India)

यह धारा उन दस्तावेज़ों के लिए विशेष नियम बनाती है जो भारत (India) से बाहर निष्पादित हुए हों। जब कोई दस्तावेज़, जिसके बारे में दावा किया गया हो कि उसे सभी या किसी भी पक्ष द्वारा भारत से बाहर निष्पादित किया गया था, निर्धारित समय-सीमा (धारा 23 के तहत) की समाप्ति के बाद पंजीकरण के लिए प्रस्तुत किया जाता है, तो पंजीकरण अधिकारी (registering officer), यदि संतुष्ट हो:

• (a) वह विलेख (instrument) वास्तव में भारत से बाहर निष्पादित किया गया था, और

• (b) उसे भारत में आने के चार महीने (four months) के भीतर पंजीकरण के लिए प्रस्तुत किया गया है,

तो वह ऐसे दस्तावेज़ को उचित पंजीकरण शुल्क (registration-fee) लेकर पंजीकरण के लिए स्वीकार कर सकता है। यह प्रावधान विदेशों में निष्पादित दस्तावेजों के लिए एक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाता है, क्योंकि उनके भारत पहुँचने में समय लग सकता है।

उदाहरण: यदि एक अनिवासी भारतीय (NRI) ने अमेरिका में अपनी संपत्ति का बिक्री विलेख 1 जनवरी को निष्पादित किया, और वह दस्तावेज़ भारत 1 मार्च को पहुँचता है, तो उसे 1 जुलाई तक पंजीकृत कराया जा सकता है, भले ही मूल निष्पादन की तारीख से 4 महीने की अवधि समाप्त हो गई हो।

धारा 27. वसीयत किसी भी समय प्रस्तुत या जमा की जा सकती है (Wills may be presented or deposited at any time)

यह धारा वसीयत (will) के लिए एक महत्वपूर्ण छूट प्रदान करती है। यह बताती है कि एक वसीयत को किसी भी समय पंजीकरण (registration) के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है या बाद में निर्धारित तरीके से जमा (deposited) किया जा सकता है। वसीयत अन्य दस्तावेजों से भिन्न होती है क्योंकि वे निष्पादक की मृत्यु के बाद ही प्रभावी होती हैं, इसलिए उन पर समय-सीमा का प्रतिबंध नहीं लगाया जाता। यह निष्पादक को अपनी वसीयत को अपनी सुविधा के अनुसार पंजीकृत या जमा करने की स्वतंत्रता देता है।

उदाहरण: एक व्यक्ति अपनी वसीयत 30 साल की उम्र में लिखता है, लेकिन उसे 60 साल की उम्र तक पंजीकृत नहीं कराता है। यह पूरी तरह से वैध है क्योंकि वसीयत पर पंजीकरण के लिए कोई समय-सीमा नहीं होती।

ये धाराएँ पंजीकरण अधिनियम की व्यावहारिकता और लचीलेपन को दर्शाती हैं, जो विभिन्न परिस्थितियों में व्यक्तियों की आवश्यकताओं को समायोजित करती हैं।

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