The Hindu Succession Act का क़ानून

Update: 2025-07-26 07:58 GMT

यह अधिनियम निर्वसीयती मृत्यु होने पर हिंदुओं के उत्तराधिकार से संबंधित क़ानून को सहिंताबद्ध करता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के संहिताबद्ध होने से हिंदुओं के संपत्ति के उत्तराधिकार के संबंध में बहुत आमूलचूल परिवर्तन हुए हैं।

इस अधिनियम के प्रभावशील होने के पहले हिंदुओं में उत्तराधिकार से संबंधित विभिन्न विधियां भारत में प्रचलित थी। जहां संयुक्त संपत्ति थी वहां उत्तरजीविता का सिद्धांत लागू था और जहां अर्जित संपत्ति थी उस दशा में उत्तराधिकार लागू होता था। स्त्रीधन के उत्तराधिकार के संबंध में भी विभिन्न नियम थे और ऐसे उत्तराधिकार को सुनिश्चित करने के लिए साबित करना आवश्यक होता था कि स्त्री ने संपत्ति या संपदा किससे प्राप्त की है।

यह अधिनियम प्राचीन शास्त्रीय हिंदू विधि दाय और मिताक्षरा से प्रभावित होते हुए आधुनिक परिवेश के मिश्रण में अधिनियमित किया गया है। यह अधिनियम को बनाते समय हिंदू स्त्री और पुरुषों में कोई विभेद नहीं किया गया है।

किसी समय मिताक्षरा और दायभाग शाखाओं से शासित होने वाले हिंदुओं के संबंध में उत्तराधिकार के भिन्न भिन्न नियम थे। उत्तराधिकार के नियम स्थान परिवर्तन के साथ भी परिवर्तित हो जाते थे परंतु यह संहिताबद्ध हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 सभी उत्तराधिकार से संबंधित लक्ष्यों को पूरा करता है। वास्तव में यह अधिनियम उत्तराधिकार संबंधी क़ानून को संहिताबद्ध करता है। उत्तराधिकार को एकरूपता प्रदान करता है।

इस अधिनियम के दूरगामी परिणाम है। यह निर्वसीयती मृत हिंदू की संपत्ति के उत्तराधिकार के संबंध में सभी आवश्यक प्रावधान करता है।

यह अधिनियम हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख पर लागू होता है। इसके लागू होने के संदर्भ में हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 2 के अनुरूप ही प्रावधान है। जिस प्रकार विवाह अधिनियम में मुसलमान, ईसाई, पारसी और यहूदी को छोड़कर भारत में निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को हिंदू माना गया है इसी प्रकार हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत हिंदू की यही परिभाषा है।

यह अधिनियम निर्वसीयती स्वर्गवासी हो जाने वाले हिंदू पुरुष अथवा स्त्री की संपत्ति के उत्तराधिकार के लिए नए नियम निर्धारित करता है। जब किसी निर्वसीयत संपत्ति का उत्तराधिकार दो या दो से अधिक अधिकारियों पर होता है और इनमें से कोई उत्तराधिकारी अपने हिस्से को हस्तांतरित करना चाहता है तो दूसरे उत्तराधिकारी को संपत्ति को प्राप्त करने का अधिकार इस अधिनियम के अंतर्गत दिया गया है।

यह अधिनियम वैज्ञानिकता के आधार पर प्रेम और अनुराग के अनुसरण में अधिनियमित किया गया है। संपत्ति का उत्तराधिकार उसी व्यक्ति को देने का प्रयास किया गया है जो मरने वाले से सबसे निकट का संबंधी है। जिससे सबसे अधिक प्रेम और अनुराग मरने वाले का होता है उसे संपत्ति पहले मिलती है। इस अधिनियम के अंतर्गत हिंदू नारी और हिंदू पुरुष को समान रूप से उत्तराधिकार का एक समान क्रम दिया गया है।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की भांति ही उसके विस्तार और उसके लागू होने से प्रारंभ होता है।

प्रारंभिक धाराओं के अंतर्गत सर्वप्रथम इसके विस्तार का प्रावधान किया गया है तथा अधिनियम किन लोगों पर लागू होगा इस संबंध में उल्लेख किया गया है। जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के पूर्व यह अधिनियम जम्मू कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होता था परंतु जम्मू कश्मीर पुनर्गठन के बाद अधिनियम समस्त भारत पर लागू होता है। इस अधिनियम का विस्तार दादर और नगर हवेली तक है।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के प्रारंभिक प्रावधान इस अधिनियम के विस्तार उनके लागू होने को लेकर है। यह अधिनियम 17 जून 1956 को प्रभावशील हुआ जिस दिनांक को भारत के राष्ट्रपति ने संसद द्वारा पारित अधिनियम को स्वीकृति प्रदान की थी।

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