जब दो न्यायालय एक ही अपराध का संज्ञान लेते हैं: धारा 205 – 206, BNSS 2023 के अनुसार राज्य सरकार और हाईकोर्ट की शक्तियाँ
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023), जिसे 1 जुलाई 2024 से लागू किया गया है और जिसने Criminal Procedure Code को प्रतिस्थापित किया है, इसके अंतर्गत न्यायालयों के अधिकार-क्षेत्र और उनके बीच के विवादों के समाधान से संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधान सम्मिलित किए गए हैं।
इसमें दो मुख्य प्रावधान हैं - धारा 205 और धारा 206। इन प्रावधानों का उद्देश्य न्यायालय में मामलों की सुनवाई को सुचारु रूप से संचालित करना है।
धारा 205: राज्य सरकार की शक्ति किसी मामले को किसी अन्य जिले में सुनवाई के लिए भेजने की
धारा 205 के अनुसार, राज्य सरकार के पास यह अधिकार है कि वह किसी मामले या मामलों के एक वर्ग को, जो किसी जिले में सुनवाई के लिए भेजे गए हैं, को किसी अन्य sessions division (अधिवेशन प्रभाग) में स्थानांतरित कर सके। यह प्रावधान प्रशासनिक लचीलापन प्रदान करता है, ताकि विशेष स्थानीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए मामले की सुनवाई की जा सके।
मुख्य बिंदु:
• राज्य सरकार किसी मामले या वर्ग को किसी अन्य अधिवेशन प्रभाग में स्थानांतरित करने का आदेश दे सकती है।
• यह शक्ति सीमित है और यह हाईकोर्ट या सर्वोच्च न्यायालय के पहले से जारी किसी भी आदेश के अधीन है। यदि उच्च या सर्वोच्च न्यायालय ने पहले से कोई आदेश पारित किया है, तो राज्य सरकार उसे निरस्त नहीं कर सकती।
• यह आदेश अन्य लागू कानूनों के अनुरूप भी होना चाहिए।
उदाहरण:
मान लीजिए कि किसी जिले में एक हाई-प्रोफाइल मामला है जहाँ निष्पक्ष सुनवाई मुश्किल है। ऐसी स्थिति में राज्य सरकार उस मामले को किसी अन्य अधिवेशन प्रभाग में स्थानांतरित कर सकती है। हालाँकि, यदि हाईकोर्ट ने पहले ही उस मामले पर कोई आदेश पारित कर दिया है, तो राज्य सरकार इसे पलट नहीं सकती।
धारा 206: जब दो न्यायालय एक ही अपराध का संज्ञान लेते हैं
धारा 206 तब लागू होती है जब दो या अधिक न्यायालय एक ही अपराध का संज्ञान (Cognizance) लेते हैं, जिससे न्यायालयों के बीच विवाद उत्पन्न हो जाता है। इस धारा के तहत यह व्यवस्था दी गई है कि ऐसे विवादों का समाधान संबंधित हाईकोर्ट द्वारा किया जाएगा।
मुख्य बिंदु:
• यदि एक ही राज्य के दो या अधिक न्यायालय एक ही अपराध का संज्ञान लेते हैं, तो उस राज्य के हाईकोर्ट के पास यह अधिकार होगा कि वह यह निर्णय करे कि कौन सा न्यायालय उस अपराध की जाँच करेगा या उसकी सुनवाई करेगा।
• यदि अलग-अलग राज्यों के न्यायालय एक ही अपराध का संज्ञान लेते हैं, तो जिस हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में सबसे पहले कार्रवाई शुरू हुई थी, वही विवाद का समाधान करेगा।
• जिस न्यायालय के पक्ष में निर्णय लिया जाएगा, वही मामले की सुनवाई करेगा और अन्य न्यायालयों की कार्यवाही समाप्त कर दी जाएगी।
उदाहरण:
कल्पना कीजिए कि धोखाधड़ी का एक मामला दो अलग-अलग जिला न्यायालयों में दायर किया गया है। दोनों न्यायालयों ने मामले का संज्ञान लिया है, जिससे विवाद उत्पन्न हो गया है।
ऐसे में उस राज्य के हाईकोर्ट को यह अधिकार होगा कि वह यह निर्णय करे कि कौन सा जिला न्यायालय मामले की सुनवाई करेगा। जब हाईकोर्ट निर्णय ले लेता है, तो दूसरा न्यायालय अपनी कार्यवाही बंद कर देगा।
एक और उदाहरण देखें कि यदि कोई अपराध दो राज्यों के बीच हुआ है और दोनों राज्यों के न्यायालयों ने उस अपराध का संज्ञान लिया है, तो जिस हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में मामला सबसे पहले दायर किया गया था, वही तय करेगा कि किस राज्य का न्यायालय सुनवाई करेगा।
पूर्व प्रावधानों से संबंध
धारा 205 और 206 का संबंध BNSS की पहले की धाराओं से है, खासकर वे धाराएँ जो न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र से संबंधित हैं, जैसे धारा 197 से धारा 204।
उदाहरण के लिए, धारा 204 के तहत कई अपराधों की एक साथ सुनवाई की अनुमति है, जबकि धारा 206 यह स्पष्ट करती है कि यदि एक ही अपराध का कई न्यायालयों ने संज्ञान लिया है, तो कौन सा न्यायालय सुनवाई करेगा।
इससे पहले की धाराओं और उनकी व्याख्या को विस्तार से समझने के लिए, आप Live Law Hindi में प्रकाशित पूर्व लेखों का भी संदर्भ ले सकते हैं।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 205 और 206 न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र में लचीलापन और विवाद समाधान की स्पष्ट व्यवस्था प्रदान करती हैं।
जहाँ एक ओर धारा 205 राज्य सरकार को मामलों को विभिन्न अधिवेशन प्रभागों में स्थानांतरित करने की शक्ति देती है, वहीं धारा 206 यह सुनिश्चित करती है कि जब कई न्यायालय एक ही अपराध का संज्ञान लेते हैं, तो उचित न्यायालय का चयन कर सभी अन्य कार्यवाहियों को समाप्त कर दिया जाए।
इन प्रावधानों के तहत हाईकोर्ट की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, जो विवादों का निष्पक्ष समाधान सुनिश्चित करता है।