
परक्राम्य लिखत अर्थात् वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक एक निश्चित धनराशि को संदाय करने का वचन या आदेश अन्तर्निहित करते हैं। वचन पत्र में वचन एवं विनिमय पत्र या चेक में निश्चित धनराशि भुगतान करने का आदेश होता है। विनिमय पत्र या चेक में ऊपरवाल को इस आदेश की कोई जानकारी नहीं होनी है। वचन पत्र इसका अपवाद होता है, क्योंकि वचनदाता अर्थात् रचयिता स्वयं इस प्रकार का वचन देता है। अधिनियम में विनिमय पत्र की दशा में प्रतिग्रहण के लिए एवं सभी लिखतों में संदाय के लिए Presentment ा को अपेक्षा की गई है।
अधिनियम की योजना इस वास्ते धारा 61 से 77 तक है जिसे निम्नलिखित रूप में अध्ययन किया जा सकता है।
Presentment क्या है और इसके कितने प्रकार होते हैं-
Presentment के नियम
कब Presentment आवश्यक नहीं
अ-Presentment के परिणाम एवं प्रभाव
Presentment क्या है- अधिनियम लिखतों के Presentment की अपेक्षा करता है। Presentment सामान्य तौर से लिखतों के धारक द्वारा एक माँग होती है जो लिखतों के अधीन करने की अपेक्षा की जाती है। निर्देश या तो विनिमय पत्र में प्रतिग्रहण करने या अन्य सभी लिखतों में संदाय की होती है। अतः लिखत का धारक विनिमय पत्र में प्रतिग्रहण के लिए और सभी लिखतों को संदाय के लिए दायी पक्षकार के समक्ष उपस्थापित की जाती है।
Presentment के प्रकार अधिनियम निम्नलिखित रूप में Presentment का वर्गीकरण करता-
प्रतिग्रहण के लिए Presentment (धारा 61)
वचन पत्र का दर्शन के लिए Presentment (धारा 62)
संदाय के लिए Presentment (धारा 64)
लेखीवाल को भारित करने के लिए चेक की दशा में (धारा 72/138)
(1) प्रतिग्रहण के लिए विनिमय पत्र का Presentment (धारा 61) अधिनियम की धारा 61 में उपबन्धित है कि–'यदि दर्शनोपरान्त देय विनिमय पत्र में उसके Presentment के लिए कोई समय या स्थान विनिर्दिष्ट नहीं है तो उसे उस व्यक्ति द्वारा जो उसके प्रतिग्रहण की मांग करने का हकदार है, उसके लिखे जाने के बाद युक्तियुक्त समय के अन्दर और कारवार के दिन कारवार के समय में प्रतिग्रहण के लिए उसके ऊपरवाल को यदि वह युक्तियुक्त तलाश के पश्चात् पाया जा सके, उपस्थापित किया जाएगा। ऐसे Presentment में व्यतिक्रम होने पर उसका कोई भी पक्षकार ऐसा व्यतिक्रम करने वाले पक्षकार के प्रति उस पर दायी न होगा।
यदि ऊपरवाल युक्तियुक्त तलाश के पश्चात् न पाया जा सके तो विनिमय पत्र अनादूत हो जाता है। यदि विनिमय पत्र ऊपरवाल को किसी विनिर्दिष्ट स्थान पर निर्दिष्ट है, तो वह उस स्थान पर हो उपस्थापित किया जाना चाहिए और यदि उपस्थापित करने के लिए सम्यक् तारीख को युक्तियुक्त तलाश के पश्चात् यहाँ न पाया जा सके तो विनिमय पत्र अनादृत हो जाता है।
जहाँ कि करार या प्रथा से ऐसा करना प्राधिकृत है, यहाँ रजिस्ट्रीकृत पत्र से डाकघर के माध्यम द्वारा Presentment पर्याप्त है।
प्रतिग्रहण के लिए Presentment के नियम धाराओं 33, 34, 61, 69, 75 एवं 75क के परिशीलन से निम्नलिखित नियम उद्भूत होते हैं-
किसे उपस्थापित किया जाय और कौन प्रतिग्रहीत करेगा- धारा 33 में उपबन्धित है कि विनिमय पत्र के ऊपरवाल या कई ऊपरवालों में से सब या कुछ या जिकरीवाल या आदरणार्थ प्रतिग्रहीता के रूप में उसमें नामित व्यक्ति के सिवाय कोई भी व्यक्ति प्रतिग्रहण द्वारा अपने को आबद्ध नहीं कर सकता।
इस प्रकार व्यक्ति जो विनिमय पत्र की प्रतिग्रहीत कर सकता है-
(i) विनिमय पत्र का ऊपरवाल, या
(ii) कई ऊपरवालों में सभी या कुछ या
(iii) व्यक्ति जिसे विनिमय पत्र में जिकरीवाल नामित है, या
(iv) आदरणार्थ प्रतिग्रहीता, या
(v) ऊपरवाल के सम्यक् प्राधिकृत अभिकर्ता, या
(vi) मृत्यु की दशा में उसके विधिक प्रतिनिधि, या
(vii) ऊपरवाल के दिवालिया की दशा में उसके समनुदेशिती
अत: उक्त व्यक्तियों के समक्ष प्रतिग्रहण के लिए विनिमय पत्र का Presentment किया जाएगा। अनेक ऊपरवालों द्वारा प्रतिग्रहण धारा 34 के अधीन जहाँ कि विनिमय पत्र के कोई ऐसे ऊपरवाल है, जो भागीदार नहीं है, यहाँ उनमें से हर एक उसे अपने लिए प्रतिग्रहीत कर सकता है, किन्तु उनमें से कोई भी उसे किसी दूसरे के लिए उसके प्राधिकार के बिना प्रतिग्रहीत नहीं कर सकता। धारा 86 के अनुसार जहाँ कई ऊपरवाल हैं जो भागीदार नहीं हैं, यहाँ हर ऊपरवाल से विनिमय पत्र का प्रतिग्रहण किया जाना चाहिए। जहाँ उनमें से कुछ द्वारा प्रतिग्रहीत किया जाता है तो ऐसा प्रतिग्रहण विशेषित होगा और विनिमय पत्र अनादृत माना जाएगा।
कई ऊपरवाल जो भागीदार है, जहाँ कई ऊपरवाल हैं, जो किसी फर्म के भागीदार हैं, वहाँ किसी एक के द्वारा प्रतिग्रहण अन्य सभी के विरुद्ध माना जाएगा, क्योंकि प्रत्येक भागीदार को अन्य भागोदारों के प्राधिकृत अभिकर्ता होते हैं।