मृत्युदंड की पुष्टि से जुड़ी प्रक्रिया : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 407 और 408

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) जो अब भारत की नई आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) है, ने कई अहम बदलाव लाए हैं। इनमें से सबसे गंभीर मामलों में से एक है — मृत्युदंड (Death Sentence) से जुड़ी प्रक्रिया।
इस विषय पर अध्याय XXX (Chapter 30) में दो महत्वपूर्ण धाराएं हैं — धारा 407 और धारा 408, जो यह बताती हैं कि जब किसी व्यक्ति को Sessions Court द्वारा मृत्युदंड दिया जाता है, तो उसे सीधे लागू नहीं किया जा सकता। पहले उस फैसले की High Court द्वारा पुष्टि (Confirmation) जरूरी होती है।
इस लेख में हम इन धाराओं को सरल भाषा में समझेंगे, साथ ही उनके पीछे की सोच और उदाहरणों के ज़रिए प्रक्रिया को स्पष्ट करेंगे।
धारा 407: मृत्युदंड की पुष्टि के लिए सत्र न्यायालय (Sessions Court) द्वारा हाईकोर्ट (High Court) को रिपोर्ट भेजना
हाईकोर्ट की पुष्टि अनिवार्य (Mandatory Confirmation by High Court)
धारा 407(1) कहती है कि यदि सत्र न्यायालय (Sessions Court) किसी व्यक्ति को मृत्युदंड की सजा देता है, तो उस सजा को तुरंत लागू नहीं किया जा सकता। उस फैसले को High Court को भेजना अनिवार्य है, ताकि वह उसकी पुष्टि कर सके।
इसका मतलब यह है कि भले ही Sessions Court ने यह माना हो कि आरोपी ने अपराध किया है और उसे मौत की सजा दी है, फिर भी सिर्फ High Court की सहमति के बाद ही उस सजा को लागू किया जा सकता है।
यह प्रावधान न्यायिक व्यवस्था की दोहरी जांच (Double Scrutiny) का हिस्सा है — पहले सत्र न्यायालय द्वारा और फिर हाईकोर्ट द्वारा। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि किसी निर्दोष को गलती से मृत्युदंड न दिया जाए।
दोषी व्यक्ति को जेल भेजने की प्रक्रिया (Committing the Convict to Jail)
धारा 407(2) के अनुसार, जब सत्र न्यायालय मृत्युदंड की सजा देता है, तो वह व्यक्ति को जेल हिरासत (Jail Custody) में भेजता है। इसके लिए अदालत एक वॉरंट (Warrant) जारी करती है।
इसका उद्देश्य यह है कि जब तक High Court अपना निर्णय न दे दे, तब तक आरोपी सरकारी निगरानी में रहे और कोई कानूनी या सुरक्षा चूक न हो।
धारा 408: आगे की जांच (Further Inquiry) या अतिरिक्त साक्ष्य (Additional Evidence) का आदेश देने की शक्ति
यह धारा High Court को यह अधिकार देती है कि अगर उसे लगता है कि सत्र न्यायालय ने किसी जरूरी पहलू की जांच नहीं की, या कोई ज़रूरी साक्ष्य छूट गया है, तो वह खुद जांच कर सकती है या Sessions Court को निर्देश दे सकती है।
आगे की जांच और नए साक्ष्य की अनुमति (Permission for Further Inquiry and New Evidence)
धारा 408(1) के अनुसार, यदि High Court को यह लगता है कि किसी मुद्दे पर और जांच होनी चाहिए, या नए साक्ष्य लिए जाने चाहिए, तो वह:
• खुद उस जांच को कर सकती है,
• या Sessions Court को निर्देश दे सकती है कि वह ऐसा करे।
यह प्रावधान इसलिए ज़रूरी है क्योंकि कभी-कभी ट्रायल के समय ज़रूरी गवाह (Witness) को नहीं बुलाया गया होता है, या किसी अहम तथ्य की अनदेखी हो जाती है। High Court इस प्रक्रिया से सुनिश्चित करती है कि पूरा सच सामने आ सके।
दोषी व्यक्ति की मौजूदगी जरूरी नहीं (Presence of Convict Not Mandatory)
धारा 408(2) कहती है कि जब High Court या Sessions Court आगे की जांच कर रही हो, तो आरोपी की मौजूदगी अनिवार्य नहीं है, जब तक कि High Court विशेष रूप से ऐसा न कहे।
यह व्यवस्था अदालतों की सुविधा और तेज़ न्याय प्रक्रिया के लिए दी गई है। उदाहरण के लिए, यदि कोई रिपोर्ट या दस्तावेज दोबारा देखा जाना है, तो उसके लिए आरोपी की मौजूदगी जरूरी नहीं होती।
जांच या साक्ष्य का प्रमाण-पत्र (Certification of Inquiry or Evidence)
धारा 408(3) के अनुसार, अगर High Court ने जांच खुद न करके Sessions Court से करवाई है, तो Sessions Court को उस जांच का प्रमाणित रिकॉर्ड (Certified Record) बनाकर High Court को भेजना होता है। इस रिकॉर्ड के आधार पर High Court निर्णय लेती है कि मृत्युदंड की पुष्टि की जाए या नहीं।
इस प्रक्रिया का संबंध अन्य धाराओं से (Connection with Other Sections)
इस अध्याय की धाराएं अकेले नहीं चलतीं। इन्हें BNSS, 2023 की अन्य धाराओं के साथ समझना जरूरी है।
उदाहरण के लिए, धारा 385 और 386 यह बताती हैं कि Sessions Court दोष सिद्ध होने पर क्या सजा सुनाएगा। और फिर जब सजा मौत की होती है, तभी धारा 407 लागू होती है।
साथ ही, धारा 400 के अनुसार, आरोपी को High Court में अपील (Appeal) करने का भी अधिकार होता है, जो इस पुष्टि प्रक्रिया के समानांतर या बाद में किया जा सकता है।
एक उदाहरण से समझिए (Illustration)
मान लीजिए कि एक हत्या के मामले में एक व्यक्ति "रवि" को सत्र न्यायालय ने मृत्युदंड दे दिया। अदालत ने गवाहों की गवाही, CCTV फुटेज और फॉरेंसिक रिपोर्ट के आधार पर उसे दोषी पाया।
अब यह सजा तब तक लागू नहीं की जा सकती जब तक High Court उसकी पुष्टि न करे। इसके लिए Sessions Court पूरा केस रिकॉर्ड High Court को भेजता है और रवि को जेल भेज देता है।
High Court रिकॉर्ड पढ़ती है और पाती है कि एक महत्वपूर्ण गवाह, जिसने रवि को घटनास्थल पर देखा था, अदालत में पेश नहीं किया गया। ऐसे में High Court धारा 408(1) के तहत आदेश देती है कि इस गवाह की गवाही ली जाए।
Sessions Court गवाह की गवाही लेता है और उसका प्रमाणित रिकॉर्ड High Court को भेजता है। अब High Court सारे तथ्यों को देखकर यह निर्णय लेती है कि सजा को आजीवन कारावास (Life Imprisonment) में बदला जाए क्योंकि रवि की मानसिक स्थिति कमजोर थी।
इस प्रकार, यह प्रक्रिया न्याय को और अधिक मजबूत व निष्पक्ष बनाती है।
मृत्युदंड जैसी गंभीर सजा केवल तभी दी जानी चाहिए जब कोई पूरी तरह निष्पक्ष और गहन जांच (Fair and Thorough Scrutiny) के बाद दोषी ठहरे। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 407 और 408 इस बात को सुनिश्चित करती हैं।
इन धाराओं के अनुसार, कोई भी मृत्युदंड तुरंत लागू नहीं किया जा सकता, जब तक कि High Court उसकी पुष्टि न करे। साथ ही, High Court के पास यह भी अधिकार होता है कि वह आगे की जांच कर सके या नए साक्ष्य मंगवा सके, ताकि कोई भी गलती न हो।
इस प्रक्रिया से यह सुनिश्चित होता है कि देश की न्यायिक व्यवस्था न केवल कड़ी है, बल्कि न्यायप्रिय (Just and Fair) भी है।