NI Act में सौकर्य विनिमय पत्र या वचन पत्र

Update: 2025-04-05 04:09 GMT
NI Act में सौकर्य विनिमय पत्र या वचन पत्र

सौकर्य विनिमय पत्र एवं वचन पत्र को परक्राम्य लिखत अधिनियम में परिभाषित नहीं किया गया है, परन्तु इसे धारा 59 में प्रयुक्त किया गया है। व्यापारिक समुदाय इसे प्रायः अपने व्यवहारों में प्रयोग करता है और इसे सामान्यतया साख के माध्यम के रूप में प्रयुक्त करता है। इसके द्वारा जरूरतमन्द व्यक्तियों को वित्तीय सहयोग एवं सहायता प्रदान की जाती है।

इंग्लिश विधि के अन्तर्गत आंग्ल विनिमय पत्र अधिनियम, 1882 में सौकर्य विनिमय पत्र या वचन पत्र के सम्बन्ध में निम्नलिखित विशिष्ट उपबन्ध किया गया

विनिमय पत्र का सौकर्य पक्ष ऐसा व्यक्ति होता है जिसने विनिमय पत्र पर यथा लेखीवाल, प्रतिग्रहोता या पृष्ठांकक के रूप में बिना उसके प्रतिफल लिए हस्ताक्षर करता है और अपना नाम दूसरे को कर्जा देने के प्रयोजन से देता है।

सौकर्य पक्ष प्रतिफलार्थ विनिमय पत्र के धारक के प्रति आबद्ध है, और यह सारहीन होता है कि जब धारक ने इसे प्राप्त किया था तो ऐसे पक्षकार को सौकर्य पक्ष के रूप में जानता था या नहीं। आंग्ल विधि की यह धारा दो बातों को स्पष्ट करती है, अर्थात्

सौकर्य पक्ष एवं सौकर्य प्राप्त पक्ष- सौकर्म विनिमय पत्र या वचन पत्र में एक पक्षकार दूसरे पक्षकार को सौकर्य प्रदान करती है जिससे सौकर्य प्राप्त पक्षकार वित्तीय सहयोग प्राप्त कर सके।

जब एक व्यक्ति बिना प्रतिफल के किसी वचन पत्र या विनिमय पत्र पर लेखोवाल, प्रतिग्रहीता या पृष्ठांकक के रूप में हस्ताक्षर करता है, वह सौकर्य पक्ष होता है।

सौकर्य पक्षकार ऐसे वचन पत्र या विनिमय पत्र में प्रतिफलार्थ धारक के प्रति संदाय करने के लिए आबद्ध होता है अर्थात् सम्यक् अनुक्रम धारक के प्रति चाहे उसे ऐसे सौकर्य की जानकारी है या नहीं।

भारतीय विधि – परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की सौकर्य विनिमय पत्र या वचन पत्र को निम्नलिखित धाराओं में प्रयुक्त किया गया है:

धारा 43 का अपवाद

धारा 44 का दृष्टान्त एवं

धारा 59

बिना प्रतिफल के लिखत [ धारा 43] - एक सौकर्य लिखत से अभिप्रेत ऐसे लिखत से है जिसे दूसरे पक्ष को आर्थिक सहयोग प्रदान करने के लिए बिना प्रतिफल के रचा, प्रतिग्रहीत या पृष्ठांकित किया गया है। उदाहरणार्थ :-

(क) अ को धन की आवश्यकता है। वह एक विनिमय पत्र 'ब' के नाम लिखता है और ब उसे अ को सहायता देने के प्रयोजन से प्रतिग्रहीत कर लेता है। अ इस विनिमय पत्र को बट्टे पर दे सकता है और धन प्राप्त कर सकता है और कठिनाई से निपट सकता है। यह विनिमय पत्र बिना प्रतिफल के अ के सौकर्य (सहायता) के लिए लिखा गया है। धारा 43 इस प्रकार यह प्रावधानित करती है कि यदि पक्षकारों में कोई प्रतिफल नहीं है या प्रतिफल असफल हो गया है वहाँ कोई आवद्धता पक्षकारों के बीच उत्पन्न नहीं होगा, परन्तु जहाँ ऐसी लिखत किसी प्रतिफलार्थ धारक को अन्तरित की जाती है, वहाँ वह या उससे कोई अन्तरितो सभी पूर्विक पक्षकारों से लिखत की धनराशि वसूल कर सकेगा।

परन्तु अन्तिम रूप से आबद्धता उस पक्षकार की होगी जिसके लिए ऐसा सौकर्य के लिए लिखत रचा या पृष्ठांकित किया गया है। वह उस पक्षकार को भुगतान करेगा जिसने उसे ऐसी सहायता किया है, परन्तु वह किसी अन्य पक्षकार से वसूली नहीं कर सकेगा।

ब को धन की आवश्यकता है। वह अ से सहायता के लिए कहता है तद्नुसार एक वचन पत्र 10,000 रु० के लिए ब के पक्ष में बिना प्रतिफल के रचता है व धारक के रूप में वचन पत्र को बड़े पर भुना लेता है या स को प्रतिफलार्थ पृष्ठांकित कर देता है। यद्यपि कि वचन पत्र बिना प्रतिफल के रचा गया था परन्तु यह धारा 43 एवं धारा 59 से आच्छादित होगा।

सौकर्य वचन पत्र या विनिमय पत्र इस सामान्य सिद्धान्त के अपवाद है कि उस व्यक्ति का हक जो लिखत की परिपक्वता के पश्चात् प्राप्त करता है, उन सभी बचावों के अधीन होगा जो अन्तरक के विरुद्ध प्रयोज्य होगा। जहाँ एक सौकर्य पत्र परिपक्वता के पश्चात् परक्रामित की जाती है, उपबन्ध यह कहता है कि एक सम्यक अनुक्रम धारक उस पर भुगतान प्राप्त कर सकेगा। एक सौकर्य विनिमय पत्र का परिपक्वता के पश्चात् धारक उसी स्थिति में होगा जैसा कि परिपक्वता के पूर्व धारक होता है, बशर्ते कि उसने लिखत को मूल्य के साथ एवं सद्भावना पूर्वक प्राप्त किया है।

उदाहरण- एक विनिमय पत्र तिथि से 3 माह के बाद देय है, सौकर्य लेखीवाल के सौकर्य के लिए प्रतिग्रहीत की जाती है। परिपक्वता के पश्चात् इसे अ को मूल्य के साथ पृष्ठांकित की जाती है। अ प्रतिग्रहीता धन की वसूली कर सकेगा।

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