NI Act में Dishonor के बाद प्राप्त हुआ इंस्ट्रूमेंट

Update: 2025-04-05 04:04 GMT
NI Act में Dishonor के बाद प्राप्त हुआ इंस्ट्रूमेंट

इस एक्ट की धारा 59 किसी लिखत को अनादर के पश्चात् या अतिशोध्य होने के बाद अभिप्राप्ति के प्रभाव को स्पष्ट करती है। यह सामान्य नियम है कि लिखत के एक सम्यक् अनुक्रम धारक का स्वत्व अन्तरक के स्वत्व में किसी दोष से प्रभावित नहीं होता है।

यह नियम हालांकि निम्नलिखित दो शर्तों के अधीन है जहाँ धारक इसे-

अनादर की सूचना के साथ अभिप्राप्त करता है

अतिशोध्य होने के पश्चात् अर्थात् परिपक्वता के बाद अभिप्राप्त करता है

अनादूत लिखत का परक्रामण- जहाँ कोई लिखत अप्रतिग्रहण या असंदाय द्वारा अनादृत हो गया है कोई भी व्यक्ति जो अनादर की सूचना के साथ इसे अभिप्राप्त करता है इसे वह उन दोषों के अधीन प्राप्त करता है जो अनादर के समय उससे सम्बद्ध थे।

एक अनादृत लिखत का अन्तरिती, जो इसे इस अनादर की सूचना के साथ अभिप्राप्त करता है, इसका अन्तरक से बेहतर स्वत्व प्राप्त नहीं कर सकता है। ऐसा धारक धारा 9 के प्रभाव से एक सम्यक् अनुक्रम धारक भी नहीं होगा, क्योंकि इस धारा के प्रभाव से उसे लिखत को उसके शोध्य होने के पूर्व (परिपक्वता के पूर्व) और "यह विश्वास करने का कि जिस व्यक्ति से उसे अपना हक व्युत्पन्न हुआ है उस व्यक्ति के हक में कोई दोष है" अभिप्राप्त किया जाना चाहिए।

अनादृत लिखत की दशा में, जब वह यह जानता है कि लिखत पर दिखाई देने वाले तथ्य, उसके अन्तरक के हक सम्बन्धी जाँच की अपेक्षा करता है, इसकी उपेक्षा से बेहतर हक अभिप्राप्त नहीं कर सकता है।

उदाहरण- एक विनिमय पत्र अ प्रतिग्रहण से अनादृत हो गया। इसे अ को पृष्ठांकित किया गया। अ इसे ब को पृष्ठांकित करता है। अ एवं ब के बीच विनिमय पत्र अ के उन्मोचन के अनुबन्ध के अधीन है। इसके पश्चात् लिखत स को पृष्ठांकित किया गया जो लिखत के अनादर की सूचना के साथ इसे प्राप्त करता है। स विनिमय पत्र को अ एवं ब के बीच सम्पन्न अनुबन्ध के अधीन प्राप्त करेगा।

अतिशोध्य लिखत का परक्रामण

धारा 58 पुनः अतिशोध्य लिखत को परक्रामण के प्रभाव को स्पष्ट करती है। एक वचन पत्र या विनिमय पत्र शोध्य तिथि की समाप्ति तक अतिशोध्य नहीं माना जाएगा और जहाँ अनुग्रह दिवस अनुज्ञात किया जाएगा वहाँ अनुग्रह दिवस का अन्तिम दिन लिखत अतिशोध्य हो जाता है। अतिशोध्य लिखत के अन्तरण को रोकने का कोई प्रावधान नहीं है। अतिशोध्य लिखत का अन्तरिती यद्यपि कि परक्राम्यता के लाभ को नहीं पाता है।

एक अतिशोध्य लिखत जब परक्रामित किया जाता है तो उसे इसके परिपक्वता पर हक सम्बन्धी दोष के अधीन ही परक्रामित किया जा सकेगा और कोई व्यक्ति जिसे यह अन्तरित किया है न तो बेहतर हक प्राप्त कर सकता है और न तो प्रदान कर सकता है। एक व्यक्ति जो अतिशोध्य लिखत प्राप्त करता है एक सम्यक् अनुक्रम धारक नहीं हो सकता है, क्योंकि अधिनियम की धारा 9 यह अपेक्षा करती है कि सम्यक् अनुक्रम धारक होने के लिए एक धारक को लिखत में वर्णित रकम के देय होने के पूर्व उसे अभिप्राप्त किया जाना चाहिए।

यह तथ्य कि लिखत के चेहरे के स्पष्ट शब्दों में परिपक्वता समाप्त हो चुकी है और यह तथ्य यह सूचना धारक को देता है कि लिखत या तो संदत है या अनादृत है। एक अतिशोध्य विनिमय पत्र (लिखत) अपने शब्द के पूर्ण भाव में परक्रामणीय योग्य नहीं रह गया है। एक व्यक्ति जो अतिशोध्य लिखत लेता है उसे इसे आँख बन्द करके नहीं लेना चाहिए और आशा करे कि उसे एक निर्दोष धारक माना जाय। यदि अन्तरित जो अपने को सन्तुष्ट किए बिना अतिशोध्य लिखत को लेता है, वह इसे अपने जोखिम पर लेता है और उसके अन्तरक से बेहतर हक उसे प्राप्त नहीं होता है।

अतः जहाँ परक्राम्य लिखत अनादूत हो गया है या अतिशोध्य हो गया है इसे साम्या जो लिखत में सम्बद्ध है, के अधीन ही अन्तरित किया जा सकता है। परन्तु साम्या, साम्या है जो अन्तरण के समय वर्तमान होता है न कि पश्चात्वर्ती या साम्पारिक।

उदाहरण-

अ, अवैध प्रतिफल से एक वचन पत्र ब के पक्ष में रचता है। इसे ब अतिशोध्य हो जाने पर स को अन्तरित करता है स नोट के लिए पूर्ण प्रतिफल देता है। स अ पर याद नहीं ला सकेगा, क्योंकि स को ब से बेहतर हक नहीं है।

एक विनिमय पत्र जो लेखीवाल के आदेशानुसार देय है। इसे ब ने अवैध प्रतिफल से प्रतिग्रहीत किया लेखीवाल ने इसके परिपक्वता के पूर्व स को पृष्ठांकित करता है जो प्रतिफलार्थ एवं सद्भावना पूर्वक इसे प्राप्त करता है। स ने विनिमय पत्र को द को अन्तरित किया जब वह अतिशोध्य हो गया था द को अच्छा हक प्राप्त होगा और यह विनिमय पत्र के सभी पक्षों पर संदाय के लिए वाद ला सकेगा। द को बेहतर हक है और यह सम्यक् अनुक्रम धारक है।

एक विनिमय पत्र लेखीवाल से विशेष प्रयोजन के लिए प्राप्त किया। अ उस प्रयोजन के कपट में विनिमय पत्र व को अन्तरित करता है जब वह अतिशोध्य हो गया था ब शोध्य रकम प्रतिग्रहीता से नहीं प्राप्त कर सकता है।

ख तीन वचन पत्र रचता है जो ग या आदेशों को देय है और तत्पश्चात् दो और वचन पत्र प्रथम तीन के प्रत्याभूति और भविष्य के उधारों को आच्छादित करने के लिए देता है। सभी वचन पत्र मांग पर देय हैं और इस समझ से दिए गए हैं कि उन्हें परक्रामित किया जाएगा। ग ने सभी वचन पत्रों को घ को पृष्ठांकित कर दिया। स ने जब वचन पत्रों को पृष्ठांकित किया उसके पश्चात् ख ने अन्तिम दो वचन पत्रों का संदाय कर किया बिना इस सूचना के कि पाने वाले ने वचन पत्र को अन्तरित कर दिया है और उससे उन दो वचन पत्रों को वापस नहीं लिया।

इसके पश्चात् ग ने पाँचों वचन पत्रों को कपट से घ से प्राप्त कर लिया और उन्हें ख रचयिता को वापस कर दिया। धारित किया गया कि घ इन पाँचों वचन पत्रों के सम्बन्ध में धनराशि ख से प्राप्त कर सकेगा, क्योंकि ख प्रतिफल धारक नहीं बना था क्योंकि पूर्व के वचन पत्रों की सन्तुष्टि उसके द्वारा दिया गया प्रतिफल नहीं था, जब उसने वचन पत्रों को वापस प्राप्त किया था, और ये उस समय अतिशोध्य थे, उसने वचन पत्रों को जब पाने वाला से प्राप्त किया था जब उसके हाथ में थे।

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