ऐसी बहुत बहुत सी स्थितियां हैं जहां माता-पिता अपनी वयस्क संतान को अपने खरीदे हुए घर से निष्कासित कर देते हैं। जैसे कभी-कभी यह देखने में मिलता है कि संताने माता-पिता के साथ बुरा व्यवहार करती हैं और माता-पिता को अपमानित करती हैं। कई संताने ऐसी हैं जो नशा इत्यादि भी करती हैं और नशे के रुपए माता-पिता से मांगती हैं। कई बार देखने में यह भी आता है कि संतान की वैवाहिक मुकदमेबाजी चल रही हो और संतान अपने माता-पिता के घर में रह रही हो तब माता-पिता ऐसी संतान को भी घर से निष्कासित कर देते हैं। इस प्रकार अनेक परिस्थितिया हैं जब माता-पिता अपनी संतान को घर से निष्कासित करते हैं।
वैवाहिक मुकदमेबाजी के बीच घर से बेदखल करना
वैवाहिक मुकदमे बढ़ते चले जा रहे हैं। पति पत्नियों के बीच विवाद देखने को मिलते हैं, पत्नियां पतियों पर मेंटेनेंस के मुकदमे लगा देती हैं। जहां न्यायालय पति को महावर मेंटेनेंस देने को कहता है। ऐसी मेंटेनेंस की कार्यवाही में पत्नी के पास यह अधिकार होता है कि वह पति की संपत्ति को नीलामी लगवा कर उसकी मेंटेनेंस की रकम प्राप्त कर ले, अगर उसका पति उसको मेंटेनेंस नहीं देता है।
अखबारों में बेदखली के विज्ञापन छपवाना किसी भी कानून के दायरे में नहीं है। क्योंकि लोग विज्ञापन ऐसा छपवाते हैं कि पिता कहता है कोई संपत्ति उसके नाम पर दर्ज है और वह संपत्ति में से अपने बेटे को बेदखल कर रहा है।
सबसे सारवान बात यह है कि अगर कोई संपत्ति किसी पिता के नाम पर दर्ज है और वह अपने बेटे को संपत्ति से बेदखल करने का विज्ञापन अखबार में देता है तब ऐसे विज्ञापन की कोई आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि किसी भी व्यक्ति की स्वयं द्वारा कमाई हुई संपत्ति जो उसके नाम पर रजिस्टर्ड है उसके संबंध में कोई भी फैसला लेने के लिए वे व्यक्ति स्वतंत्र होता है।
जब तक वह जीवित है तब तक कोई भी उसकी संपत्ति में अपने हिस्से का दावा नहीं कर सकता है।उसका बेटा भी उसकी संपत्ति में हिस्से का दावा नहीं कर सकता और उसकी बहू भी बेटे पर आई मेंटेनेंस की जिम्मेदारी के लिए ससुर की संपत्ति की नीलामी नहीं लगवा सकती। ससुर अगर जीवित है और उसके पास कोई संपत्ति है तब वह उसकी अपनी संपत्ति है।
बहू का विवाद उसके पति से होता है पति की यह जिम्मेदारी है कि वह अपनी पत्नी को मेंटेनेंस दे। बहू उसके पति के नाम पर दर्ज किसी संपत्ति में से मेंटेनेंस प्राप्त करने का दावा कर सकती है लेकिन अपने ससुर की संपत्ति में से मेंटेनेंस प्राप्त करने का दावा नहीं कर सकती है।
इसलिए ऐसे विज्ञापन की कोई आवश्यकता नहीं होती है। अगर किसी व्यक्ति को मरने के बाद बेदखल करना है तब उससे संबंधित वसीयत कर देना चाहिए और वसीयत का रजिस्ट्रेशन करवा लेना चाहिए। कोई भी व्यक्ति अपनी संपत्ति की वसीयत करने के लिए स्वतंत्र है कि दुनिया के किसी भी व्यक्ति या संस्था को अपनी संपत्ति की वसीयत कर सकता है। अपने मरने के बाद अपनी संपत्ति जिसे चाहे उसे दे सकता है और ऐसा निर्णय में अपने जीवन काल में ले सकता है। इसलिए अगर कोई संपत्ति पिता के नाम दर्ज है तब उसे जिस बेटे को बेदखल करना है उसके खिलाफ एक वसीयत कर देना चाहिए और अपनी संपत्ति कहीं और वसीयत कर देना चाहिए।
बेटे की घर से बेदखली
आजकल अनेक प्रकरण ऐसे भी देखने को मिल रहे हैं जहां पर बेटा बुरे आचरण का पथभ्रष्ट होता है वह अपने पिता को पीड़ित करता है। अपने माता-पिता के प्रति उसका अनुचित व्यवहार होता है। वह किसी भी प्रकार से अपने माता-पिता का सम्मान नहीं करता है और न ही अपने माता-पिता को भरण पोषण देता है। पिता अपनी संपत्ति में से ऐसे बेटे को बेदखल करना या फिर घर से बाहर निकालने का अधिकार रखता है। लेकिन ध्यान देना यह आवश्यक है कि उस संपत्ति का मालिक पिता को होना चाहिए। अगर वे संपत्ति पैतृक संपत्ति है तब किसी भी सूरत में पिता अपने बेटे को घर से बाहर नहीं निकाल सकता।
जैसे संपत्ति दादा की खरीदी हुई है और पिता बेटा दोनों उसमें साथ रह रहे हैं तब पिता अपने बेटे को घर से नहीं निकाल सकता क्योंकि वह पैतृक संपत्ति है। दादा ने संपत्ति के संबंध में कोई वसीयत नहीं की वह बगैर वसीयत मर गए तब बेटा और पोता दोनों उस संपत्ति के उत्तराधिकारी बने है हालांकि बेटा प्रथम श्रेणी का उत्तराधिकारी है। बेटे को संपत्ति में जो हिस्सा मिला है उसके हिस्से में उसके बेटे का भी अधिकार होता है। उसे बेदखल नहीं किया जा सकता वे अपने हिस्से की मांग कर सकता है।
अगर कोई संपत्ति मकान बाप ने खरीदा है और रजिस्ट्री बाप के नाम है, बेटा बाप के साथ मकान में रह रहा है। बेटा अपने पिता की कोई बात नहीं सुनता तब ऐसी स्थिति में बाप बेटे को घर से निकालने के लिए जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष एक आवेदन लगा सकता है। जिला मजिस्ट्रेट अर्थात जिले का कलेक्टर है। एक आवेदन के माध्यम से वे जिला कलेक्टर को इस बात से अवगत करा सकता है कि उसके बेटे का उसके साथ अनुचित व्यवहार है, वह उसका किसी प्रकार से भरण-पोषण नहीं करता है। तब जिला कलेक्टर उस बेटे को पिता के घर से पुलिस फोर्स के माध्यम से बाहर निकला सकता है। क्योंकि बेटे का पिता के घर पर कब्जा अवैध होता है। घर का मालिक पिता होता है इसलिए पिता बेटे को बाहर कर सकता है।
अगर जिला कलेक्टर इसमें हस्तक्षेप नहीं करते हैं तब सिविल कोर्ट जाने का रास्ता पिता के पास उपलब्ध है। पिता सिविल कोर्ट में स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट के अंतर्गत एक मुकदमा लगा सकता है। जहां वे बेटे के कब्जे को अवैध कब्जा साबित कर उसे घर से बाहर निकला सकता है। यह कार्रवाई बिल्कुल इस तरह होती है जिस तरह एक अवैध रूप से कब्जा कर के बैठे किराएदार के विरुद्ध होती है। इसी तरह बेटे का मकान पर अवैध कब्जा होता है। यह बात ध्यान में रखना चाहिए कि पिता के जीवित रहते हुए किसी भी बेटे का संपत्ति पर किसी प्रकार का कोई अधिकार नहीं होता है। जबरदस्ती कोई भी बेटा बाप के मकान में नहीं रह सकता है।