भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 447 के अंतर्गत हाईकोर्ट द्वारा आपराधिक मामलों का स्थानांतरण

Update: 2025-05-07 14:38 GMT

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 447 हाईकोर्ट (High Court) को यह शक्ति देती है कि वह न्याय के हित में, या किसी विशिष्ट परिस्थिति में, किसी आपराधिक मामले को एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में स्थानांतरित (Transfer) कर सके। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि हाईकोर्ट कब, क्यों और किस प्रक्रिया से ऐसा कर सकता है, और इससे संबंधित कौन-कौन सी परिस्थितियाँ हैं जिनमें यह शक्ति प्रयोग की जाती है।

उचित और निष्पक्ष सुनवाई की संभावना न होने की स्थिति में हस्तक्षेप

धारा 447(1)(a) के अनुसार, यदि हाईकोर्ट को यह प्रतीत होता है कि किसी अधीनस्थ आपराधिक न्यायालय (Subordinate Criminal Court) में निष्पक्ष (Fair) और निष्पक्षता से सुनवाई (Impartial Trial) संभव नहीं है, तो वह मामला किसी अन्य उपयुक्त न्यायालय में स्थानांतरित कर सकता है। यह उस स्थिति में होता है जब उदाहरण के लिए, किसी शहर में आरोपी के खिलाफ जनाक्रोश बहुत अधिक हो, जिससे निष्पक्ष सुनवाई संभव न हो।

उदाहरण – मान लीजिए कि एक आरोपी के विरुद्ध गंभीर अपराध के आरोप लगे हैं और उस जिले में मीडिया ट्रायल और सामाजिक दबाव बहुत अधिक है। ऐसे में, निष्पक्ष सुनवाई हेतु हाईकोर्ट यह मामला किसी दूसरे जिले के कोर्ट में स्थानांतरित कर सकता है।

कानूनी प्रश्न में असाधारण जटिलता की संभावना

धारा 447(1)(b) यह प्रावधान करती है कि यदि किसी मामले में कोई ऐसा विधिक प्रश्न (Legal Question) उत्पन्न हो सकता है जो सामान्य से अधिक कठिन या असामान्य हो, तो भी हाईकोर्ट उस मामले को स्थानांतरित कर सकता है। इसका उद्देश्य यह होता है कि उस मामले की सुनवाई ऐसा न्यायालय करे जो उस जटिलता से निपटने में सक्षम हो।

न्याय के उद्देश्य से, या पक्षकारों/गवाहों की सुविधा हेतु ट्रांसफर का आदेश

धारा 447(1)(c) के अनुसार, यदि मामला स्थानांतरित करना न्याय के उद्देश्य (Ends of Justice) की पूर्ति करता हो, या पक्षकारों (Parties) या गवाहों (Witnesses) की सुविधा के लिए आवश्यक हो, या यदि यह इस संहिता के किसी अन्य प्रावधान द्वारा अपेक्षित हो, तो हाईकोर्ट ट्रांसफर का आदेश दे सकता है।

उदाहरण – एक मामला जिसमें अधिकांश गवाह किसी दूसरे राज्य में रहते हैं, और उनके बार-बार आने से सुनवाई बाधित हो रही है, तो हाईकोर्ट इस आधार पर केस को उस राज्य में ट्रांसफर कर सकता है जहाँ गवाह रहते हैं।

धारा 447(1) के तहत हाईकोर्ट को प्राप्त आदेश देने की विभिन्न शक्तियाँ

हाईकोर्ट निम्नलिखित प्रकार से आदेश दे सकता है:

(i) वह किसी ऐसे न्यायालय को केस भेज सकता है जो यद्यपि धारा 197 से 205 के अनुसार योग्यता प्राप्त नहीं है, लेकिन अन्यथा सक्षम है। इसका तात्पर्य है कि कोई न्यूनाधिक तकनीकी योग्यता का अभाव होते हुए भी यदि मामला उचित रूप से निपटाया जा सकता है तो ट्रांसफर किया जा सकता है।

(ii) वह किसी विशेष मामले, अपील या केस की श्रेणी को एक अधीनस्थ न्यायालय से किसी अन्य समान या उच्च अधिकार वाले अधीनस्थ न्यायालय में भेज सकता है।

(iii) किसी विशेष मामले को सेशन न्यायालय (Court of Session) को ट्रायल हेतु भेज सकता है।

(iv) किसी विशेष मामले या अपील को अपने पास स्थानांतरित कर सकता है और स्वयं उसकी सुनवाई कर सकता है।

हाईकोर्ट की पहल, रिपोर्ट या आवेदन के आधार पर कार्यवाही

धारा 447(2) के अनुसार, हाईकोर्ट यह आदेश स्वयं अपने स्तर पर, किसी अधीनस्थ न्यायालय की रिपोर्ट पर, या किसी पक्षकार के आवेदन (Application) पर दे सकता है। लेकिन यदि स्थानांतरण का आवेदन एक ही सत्र विभाग (Sessions Division) के दो न्यायालयों के बीच है, तो पहले यह आवेदन सत्र न्यायाधीश (Sessions Judge) के पास करना होगा और वहाँ से अस्वीकृत (Rejected) होने पर ही हाईकोर्ट के समक्ष लाया जा सकता है।

आवेदन दायर करने की प्रक्रिया और समर्थन में शपथ-पत्र

धारा 447(3) कहती है कि ऐसा कोई आवेदन एक 'मोशन' के रूप में किया जाएगा, और जब तक वह राज्य के एडवोकेट जनरल (Advocate General) द्वारा न किया गया हो, उसे शपथ-पत्र (Affidavit) या घोषणा (Affirmation) से समर्थित होना चाहिए।

आरोपी द्वारा आवेदन करने पर बॉन्ड भरने का आदेश

धारा 447(4) के अनुसार, यदि आवेदन किसी आरोपी द्वारा किया गया है, तो हाईकोर्ट उसे एक बॉन्ड या बेल बॉन्ड भरने का निर्देश दे सकता है, ताकि यदि आवेदन खारिज हो और उसे हर्जाना (Compensation) भरना पड़े, तो वह राशि दी जा सके।

लोक अभियोजक को नोटिस देने की अनिवार्यता

धारा 447(5) में यह स्पष्ट किया गया है कि जब कोई आरोपी आवेदन करता है, तो उसे लोक अभियोजक (Public Prosecutor) को लिखित रूप में नोटिस और आवेदन के आधार की प्रति देनी होगी। और इस नोटिस के कम से कम 24 घंटे बाद ही उस आवेदन पर सुनवाई की जा सकती है।

कार्यवाही पर रोक लगाने की शक्ति

धारा 447(6) हाईकोर्ट को यह शक्ति देती है कि वह ट्रांसफर आवेदन की सुनवाई तक अधीनस्थ न्यायालय की कार्यवाही को रोक (Stay) सकता है, यदि वह ऐसा न्याय के हित में उचित समझे। हालांकि यह रुकावट रिमांड देने की शक्ति (Section 346) को प्रभावित नहीं करती।

फालतू और तंग करने वाले आवेदन पर हर्जाना

धारा 447(7) के अनुसार, यदि ऐसा कोई आवेदन हाईकोर्ट को फालतू (Frivolous) या तंग करने वाला (Vexatious) प्रतीत होता है और वह खारिज किया जाता है, तो कोर्ट आवेदन का विरोध करने वाले को हर्जाने के रूप में उचित राशि दिलाने का आदेश दे सकता है।

स्वयं सुनवाई करने की स्थिति में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया

धारा 447(8) के अंतर्गत यदि हाईकोर्ट कोई केस अपने पास ट्रायल हेतु स्थानांतरित करता है, तो उसे वही प्रक्रिया अपनानी होगी जो वह अधीनस्थ न्यायालय अपनाता।

सरकार द्वारा धारा 218 के अंतर्गत पारित आदेश पर प्रभाव नहीं

धारा 447(9) स्पष्ट करती है कि इस धारा के किसी भी प्रावधान का असर धारा 218 के अंतर्गत सरकार द्वारा दिए गए किसी आदेश पर नहीं पड़ेगा। धारा 218 राज्य सरकार को विशेष मामलों में केस ट्रांसफर करने की शक्ति देती है।

संबंधित धाराओं का सन्दर्भ

इस धारा को अच्छी तरह समझने के लिए धारा 197 से 205 को देखना आवश्यक है, जो यह तय करती हैं कि कौन-से न्यायालय किस प्रकार के अपराधों की सुनवाई कर सकते हैं। साथ ही, धारा 346, जो रिमांड देने की शक्ति से जुड़ी है, और धारा 218, जो सरकार की ट्रांसफर करने की शक्ति से जुड़ी है, ये दोनों भी सीधे प्रभाव डालती हैं।

धारा 447, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करने का अधिकार देता है कि हर पक्ष को निष्पक्ष और न्यायसंगत सुनवाई मिले। यह व्यवस्था न केवल न्याय की रक्षा करती है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करती है कि कानून का दुरुपयोग न हो। चाहे पक्षकार की सुविधा हो, या न्याय की आवश्यकता, हाईकोर्ट को इन पहलुओं को ध्यान में रखकर केस ट्रांसफर करने का अधिकार दिया गया है।

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