एनडीपीएस एक्ट, 1985 भाग 32: एनडीपीएस एक्ट के उपधारणा से संबंधित प्रावधान
एनडीपीएस एक्ट (The Narcotic Drugs And Psychotropic Substances Act,1985) की धारा 54 उपधारणा के संबंध में प्रावधान करती है। एनडीपीएस एक्ट एक विशेष अधिनियम है, इसमे अभियुक्तों के विरुद्ध उपधारणा की जाती है अर्थात अभियोजन पर सिद्ध का भार नहीं होता है अपितु अभियुक्त पर यह साबित करने का भार होता है कि वह निर्दोष है। इस अधिनियम की धारा 54 यह स्पष्ट करती है कि अवैध वस्तुओं के संबंध में क्या उपधारणा की जाएगी। इस आलेख के अंतर्गत धारा 54 पर विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।
यह अधिनियम में प्रस्तुत धारा 54 का मूल रूप है
धारा 54
अवैध वस्तुओं के कब्जे से उपधारणा- इस अधिनियम के अधीन विचारणों में, जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित नहीं कर दिया जाता है, यह उपधारणा की जा सकेगी कि अपराधी ने-
(क) किसी ऐसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ या नियंत्रित पदार्थ,
(ख) किसी ऐसी भूमि पर, जिस पर उसने खेती की है, उगे हुए किसी ऐसे अफीम पोस्त, कैनेबिस के पौधे या कोका के पौधे,
(ग) किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ या नियंत्रित पदार्थ के विनिर्माण के लिए विशेष रूप से परिकल्पित किसी साधित्र या विशेष रूप से अनुकूलित बर्तनों के किसी ऐसे वर्ग, या
(घ) किसी ऐसी सामग्री, जिस पर किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ या नियंत्रित पदार्थ के विनिर्माण से संबंधित कोई प्रसंस्कार किया गया है या ऐसी सामग्री से बचे किसी ऐसे अवशिष्ट, जिससे किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ या नियंत्रित पदार्थ का विनिर्माण किया गया है, की बाबत, जिसके कब्जे के बारे में वह समाधानप्रद रूप में हिसाब देने में असफल रहता है, इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किया है।
इस संबंध में भगवान दास बनाम स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश, 2002 (4) क्राइम्स 207 हिमाचल प्रदेश के प्रकरण में कहा गया है कि अभियुक्त का भानपूर्वक आधिपत्य प्रमाणित करने की दशा में ही उपधारणा निकाला जाना अनुज्ञेय होगा। इस मामले में गोलियों के रूप में चरस पाया गया था।
यह कागज में लिपटी हुई थी। इस कागज को इस मामले में आधिपत्य में नहीं लिया गया था। इसे साक्ष्य के सारवान अंश की कोटि में माना गया। इसके अलावा कंटेनर में पाई जाने वाली दो लोहे की पट्टियों को भी न तो आधिपत्य में लिया गया था और न साक्ष्य में प्रस्तुत किया गया था। अभियोजन का मामला दुर्बल माना गया।
बूटी बनाम स्टेट ऑफ एम.पी आईएलआर 2011 म.प्र 511 के मामले में अभियुक्त के निवास स्थल पर रखे हुए बक्से में से प्रतिषेधित वस्तु की बरामदगी हुई थी। अभियुक्त के द्वारा अधिनियम की धारा 35 व 54 में यथाविहित उपधारणा का खंडन नहीं किया गया था। अपराध प्रमाणित माना गया।
रुप सिंह बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र, 2009 क्रिलॉज एनओसी 499 बम्बई के मामले में अप्रमाणित प्रश्नगत भूमि वन विभाग से संबंधित होना पायी गयी। इसी प्रश्नगत भूमि पर गाँजा के पौधे पाए गए थे वह इस भूमि पर अभियुक्त का भौतिक आधिपत्य व नियंत्रण अप्रमाणित रहा था। अपराध अप्रमाणित माना गया।
बूटी बनाम स्टेट ऑफ एमपी के मामले में ही कहा गया है कि जब आधिपत्य को प्रमाणित कर दिया गया हो तो जो व्यक्ति यह दावा करता है कि उसका भानपूर्वक आधिपत्य नहीं था तो उसे यह तथ्य प्रमाणित करना होगा कि वह इसके आधिपत्य में कैसे आया था क्योंकि इसकी विशेष जानकारी उसे ही होगी। अधिनियम की धारा 35 इस स्थिति को एक वैधानिक मान्यता प्रदान करती है क्योंकि विधि में उपधारणा उपलब्ध है। समान तरह की स्थिति अधिनियम की धारा 54 में भी है जो कि प्रतिषेधित वस्तु के आधिपत्य के संबंध में उपधारणा उपलब्ध कराती है।
यूनियन ऑफ इंडिया बनाम मुन्ना, 2004 (3) क्राइम्स 375 के मामले में कस्टम अधिकारियों के समक्ष स्वीकृति अभियुक्त के द्वारा कस्टम अधिकारियों के समक्ष स्वीकृति की गई हो तो इसे साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 अथवा 26 से वर्जित होना नहीं माना जाएगा।
स्टेट ऑफ पंजाब बनाम बल्देव सिंह, 1999 क्रि लॉ रि 456:1999 (3) के मामले में धारा 50 के अनुसार तलाशी न होने पर उपधारणा नहीं अधिनियम की धारा 54 का प्रावधान उपधारणा उपलब्ध कराता है। परंतु इसके लिए यह अपेक्षित माना गया कि अधिनियम की धारा 50 के प्रावधान अनुसार तलाशी संचालित की गई हो। यदि इस प्रावधान के अनुसार तलाशी संचालित न हुई हो तो अधिनियम की धारा 54 के तहत उपधारणा उपलब्ध नहीं होगी।
स्टेट ऑफ एम.पी. बनाम प्रभूलाल, 1994 (1) म.प्र.वी. नो. 141 म.प्र के मामले में प्रावधान का निर्वाचन किया गया। इस प्रावधान का प्रभाव यह नहीं है कि अभियोजन प्रतिषिद्ध वस्तु पर आधिपत्य सिद्ध करने से उसके प्रारंभिक भार से भी उन्मोचित हो जाए।
एक अन्य प्रकरण में अविधिमान्य तलाशी की दशा में उपधारणा नहीं मानी गई है,इस प्रावधान के तहत उपधारणा निकालने के लिए यह अपेक्षित है कि अविधिमान्य तलाशी का मामला न हो।
ज्ञानचन्द बनाम स्टेट, 2005 क्रि लॉ ज 3228 इलाहाबाद के मामले में साक्षीगण का प्रतिपरीक्षण से प्रतिपरीक्षण किए जाने पर ऐसा कुछ हासिल नहीं हुआ था जिससे यह प्रमाणित किया जा सके कि अभियुक्त का भानपूर्वक आधिपत्य नहीं था। अभियुक्त के विरुद्ध होने वाली उपधारणा को खंडित किए जाने के संबंध में भी अन्य कोई विश्वसनीय सामग्री नहीं थी। परिणामतः मामले में अधिनियम की धारा 35 व 54 के तहत उपधारणा उपलब्ध होना मानी गई।
दिनेश बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, आई एल आर 2011 म.प्र 210 के मामले में जप्ती पंचनामा प्रमाणित न होने से हेरोईन का आधिपत्य प्रमाणित नहीं माना गया। जप्ती पंचनामा प्रमाणित होना नहीं पाया गया। अतः यह प्रमाणित होना नहीं पाया गया कि अभियुक्त हेरोईन के आधिपत्य में था। परिणामतः उपधारणा उत्पन्न होने का प्रश्न नहीं माना गया। दोषमुक्ति की गई।
लवरेंसी जॉन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, 1998 क्रिलॉज 1985 इलाहाबाद के प्रकरण में कहा गया कि विशाल मात्रा निजी उपभोग के लिए होना संभव नहीं है। यह मामला हेरोइन का था। अभियुक्त ने मामले में निजी उपभोग का अभिवाक् लिया था। अभियुक्त से जप्त हेरोइन की मात्रा 7.700 किलोग्राम थी। इतनी विशाल मात्रा निजी उपभोग के लिए होना संभव नहीं मानी गई। परिणामतः अभियुक्त की प्रतिरक्षा अमान्य की गई।
अमरजीत सिंह बनाम स्टेट ऑफ पंजाब के मामले में कहा गया कि नमूने की पार्सल में यदि बिगाड़ की संभावना है, दोषमुक्ति नमूने की पार्सल में यदि बिगाड़ की संभावना होने पर अभियुक्त को दोषमुक्त किया जा सकेगा।