भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धाराएं 529 से 531: अधीनस्थ न्यायालयों पर हाईकोर्ट की निगरानी

Update: 2025-06-18 11:23 GMT

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) का अंतिम भाग अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें न्यायालयों की निगरानी, इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रियाओं की मान्यता और पुराने कानून (दंड प्रक्रिया संहिता, 1973) को निरस्त करने के साथ-साथ संक्रमण संबंधी व्यवस्थाओं को भी विस्तार से प्रस्तुत किया गया है।

इस लेख में हम धारा 529, 530 और 531 का विस्तृत और सरल हिंदी में विश्लेषण करेंगे। ये धाराएं आधुनिक भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली की नई दिशा को रेखांकित करती हैं, जो पारंपरिक विधियों से आगे बढ़कर तकनीकी और संस्थागत सुधारों की ओर अग्रसर है।

धारा 529: अधीनस्थ न्यायालयों पर हाईकोर्ट की निगरानी

धारा 529 के अनुसार, प्रत्येक हाईकोर्ट यह सुनिश्चित करने के लिए अपने अधीनस्थ सेशन न्यायालयों और न्यायिक मजिस्ट्रेटों पर पर्यवेक्षण (superintendence) करेगा कि सभी मामलों का उचित और शीघ्र निस्तारण हो। यह प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया को गति देने और लंबित मामलों की संख्या को कम करने के उद्देश्य से जोड़ा गया है।

भारत में लाखों मामले वर्षों तक लंबित रहते हैं। ऐसे में हाईकोर्ट की यह निगरानी आवश्यक है कि मजिस्ट्रेट और सेशन न्यायाधीश अनावश्यक विलंब से बचें, और समयबद्ध तरीके से मामलों की सुनवाई और निर्णय करें।

उदाहरण

अगर किसी जिले में एक मजिस्ट्रेट बार-बार मामलों की तारीखें टालता है और बिना कारण फैसले में देरी करता है, तो हाईकोर्ट उसे तलब कर स्पष्टीकरण मांग सकता है या उसके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू कर सकता है।

यह धारा संविधान के अनुच्छेद 235 के अधीन हाईकोर्ट को प्राप्त प्रशासनिक नियंत्रण के दायरे में आती है।

धारा 530: न्यायिक कार्यवाहियों में इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का उपयोग

यह धारा भारतीय न्याय प्रणाली में एक बड़ा परिवर्तन प्रस्तुत करती है। इसमें यह प्रावधान किया गया है कि इस संहिता के अंतर्गत होने वाले सभी प्रकार के विचारण, जांच, अपील, सम्मन और वारंट जारी करना, साक्ष्य की रिकॉर्डिंग तथा अन्य कार्यवाहियां इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों द्वारा की जा सकती हैं। इसका आशय यह है कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, ई-फाइलिंग, ई-सम्मन आदि जैसे तकनीकी साधनों को अब विधिक मान्यता प्राप्त हो गई है।

प्रमुख बातें

1. सम्मन और वारंट अब इलेक्ट्रॉनिक रूप से भेजे जा सकते हैं।

2. शिकायतकर्ता और गवाहों की गवाही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हो सकती है।

3. अपील की कार्यवाही, जिसमें दोनों पक्षों को सुनना आवश्यक होता है, वह भी ऑनलाइन माध्यम से की जा सकती है।

उदाहरण

मान लीजिए किसी व्यक्ति को एक अन्य राज्य में गवाह के रूप में पेश होना है। पूर्व में उसे यात्रा करके अदालत जाना पड़ता था, लेकिन अब वह व्यक्ति वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अपनी गवाही दे सकता है। इससे समय, धन और संसाधनों की बचत होती है और न्यायिक प्रक्रिया अधिक सुलभ बनती है।

धारा 530 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्याय प्रक्रिया डिजिटल युग के अनुकूल हो और अधिक पारदर्शिता और पहुँच सुनिश्चित कर सके।

धारा 531: 1973 की दंड प्रक्रिया संहिता की समाप्ति और संक्रमण प्रावधान

धारा 531 भारतीय आपराधिक विधि के इतिहास में एक अत्यंत महत्वपूर्ण परिवर्तन को चिह्नित करती है। इस धारा के माध्यम से Code of Criminal Procedure, 1973 को निरस्त (repealed) किया गया है और इसकी जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 लागू की गई है।

हालांकि, इस धारा के अंतर्गत कुछ संक्रमण प्रावधान (transitional provisions) भी दिए गए हैं ताकि कानून में बदलाव के कारण न्यायिक प्रक्रियाएं बाधित न हों।

उपधारा (1):

इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि CrPC, 1973 अब समाप्त हो गई है।

उपधारा (2):

इस उपधारा में यह प्रावधान किया गया है कि CrPC के अंतर्गत जो कार्यवाही पहले से लंबित हैं, वे उसी कानून के अनुसार आगे बढ़ेंगी, जैसे कि नया कानून लागू ही नहीं हुआ हो। इसमें निम्नलिखित स्थितियाँ आती हैं:

(a) लंबित कार्यवाहियों का निपटारा पुरानी संहिता के अनुसार

अगर किसी मामले में जांच, सुनवाई, अपील या आवेदन CrPC के तहत लंबित है, तो वह उसी कानून के तहत समाप्त किया जाएगा। यह न्याय की निरंतरता और असमंजस को दूर करने के लिए आवश्यक है।

उदाहरण

अगर किसी आरोपी की ट्रायल 2023 से पहले शुरू हो गई थी और वह अब भी लंबित है, तो उसकी ट्रायल CrPC, 1973 के अनुसार ही पूरी होगी।

(b) पुरानी अधिसूचनाओं और आदेशों की वैधता

जो अधिसूचनाएँ, आदेश, नियुक्तियाँ, नियम, क्षेत्राधिकार, दंड और अन्य कानूनी कृत्य CrPC के तहत पहले से लागू थे, उन्हें अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अनुरूप माना जाएगा। इसका उद्देश्य यह है कि पूर्व में लिए गए वैध कार्य अब नए कानून के तहत भी मान्य रहें।

उदाहरण

अगर राज्य सरकार ने CrPC के तहत किसी क्षेत्र को मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र में शामिल किया था, तो अब वह क्षेत्र BNSS के तहत भी वैध रूप से शामिल माना जाएगा।

(c) पूर्व स्वीकृति या सहमति की निरंतरता

यदि किसी मामले में CrPC के अंतर्गत किसी अधिकारी द्वारा स्वीकृति दी गई थी, लेकिन अब तक उस आधार पर कोई कार्यवाही शुरू नहीं हुई थी, तो वह स्वीकृति अब भी वैध रहेगी और BNSS के अंतर्गत उसी आधार पर कार्यवाही शुरू की जा सकती है।

उदाहरण

अगर किसी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध अभियोजन की अनुमति CrPC के तहत ली गई थी, लेकिन मुकदमा शुरू नहीं हुआ था, तो अब BNSS के तहत मुकदमा उसी अनुमति के आधार पर शुरू किया जा सकता है।

उपधारा (3):

इसमें यह प्रावधान है कि यदि CrPC के अंतर्गत कोई आवेदन या कार्यवाही करने की अवधि समाप्त हो चुकी है, तो सिर्फ इस कारण से कि BNSS में उस अवधि को अधिक बढ़ाया गया है, ऐसा नहीं माना जाएगा कि अब नया आवेदन किया जा सकता है।

उदाहरण

मान लीजिए कि किसी निर्णय के विरुद्ध अपील की अवधि CrPC में 30 दिन थी और वह अवधि समाप्त हो गई थी। अब यदि BNSS में वही अवधि 60 दिन कर दी गई है, तो इससे पुराने मामले में नया आवेदन करने की अनुमति नहीं मिलेगी।

यह उपधारा न्यायिक स्पष्टता और विगत मामलों में अनावश्यक पुनर्जीवन से बचाव का कार्य करती है।

धारा 529 से 531 तक भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता का वह हिस्सा है जो न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता, तकनीकी सशक्तिकरण और कानूनी संक्रमण को संबोधित करता है। धारा 529 के माध्यम से उच्च न्यायालयों को उनके अधीन न्यायालयों पर नियंत्रण और निगरानी का औचित्यपूर्ण अधिकार दिया गया है, जिससे न्याय में देरी रोकी जा सके।

धारा 530 से न्याय प्रणाली में डिजिटल बदलाव की नींव रखी गई है जो वर्तमान तकनीकी युग के अनुरूप न्याय प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बनाएगी। वहीं धारा 531 भारत के आपराधिक कानून में ऐतिहासिक बदलाव को चिन्हित करती है और यह सुनिश्चित करती है कि CrPC, 1973 से BNSS, 2023 तक का संक्रमण न्याय और विधि के सिद्धांतों के अनुरूप हो।

इन धाराओं के माध्यम से भारत की न्याय प्रणाली पारंपरिक बोझ से मुक्त होकर आधुनिक, सुलभ और समयबद्ध व्यवस्था की ओर आगे बढ़ रही है, जो कि संविधान के उद्देश्यों और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक है।

Tags:    

Similar News