भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धाराएँ 513 से 515 : आपराधिक मामलों में वाद की सीमा

Update: 2025-06-12 11:22 GMT

भूमिका (Introduction)

भारतीय न्याय व्यवस्था में केवल अपराध के घटित होने मात्र से आरोपी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही (Legal Proceedings) अनिश्चित काल तक नहीं चलाई जा सकती।

कुछ मामलों में कानून ने एक निश्चित समय सीमा (Limitation Period) निर्धारित की है, जिसके भीतर संबंधित अदालत को अपराध के संज्ञान (Cognizance) में लेना होता है। यह समय सीमा इसलिए निर्धारित की जाती है ताकि न्याय में अनावश्यक देरी न हो, साक्ष्य समय रहते उपलब्ध हों, और आरोपी को अनिश्चित काल तक कानूनी अनिश्चितता में न रहना पड़े।

(Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) के अध्याय 38 में इस विषय को विस्तार से समझाया गया है। इसमें धारा 513, 514 और 515 के अंतर्गत बताया गया है कि किन अपराधों पर समय सीमा लागू होती है, यह सीमा कितनी है, और इसकी गणना कैसे की जाती है।

धारा 513 – परिभाषा: "वाद की सीमा" का अर्थ (Definition of Period of Limitation)

धारा 513 में इस अध्याय की मूलभूत परिभाषा दी गई है। यह धारा स्पष्ट करती है कि जब तक संदर्भ से कोई और अर्थ न निकलता हो, "वाद की सीमा" (Period of Limitation) से तात्पर्य वही अवधि है जो धारा 514 में उल्लिखित है।

अर्थात, जब भी इस अध्याय में “Limitation” शब्द प्रयोग होगा, उसका आशय धारा 514 में दी गई अवधि से ही लिया जाएगा। यह अवधि उस समय सीमा को दर्शाती है जिसके भीतर किसी अपराध के लिए अदालत संज्ञान (Cognizance) ले सकती है।

यह एक तकनीकी परिभाषा है लेकिन पूरी व्यवस्था को समझने के लिए इसे जानना आवश्यक है।

धारा 514 – सीमावधि बीत जाने के बाद संज्ञान पर रोक (Bar to Taking Cognizance After Expiry of Period of Limitation)

यह धारा अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अदालत की शक्ति को सीमित करती है। इसके अनुसार, यदि इस संहिता में कहीं और विशेष रूप से प्रावधान नहीं किया गया है, तो अदालत निम्नलिखित अपराधों का संज्ञान नहीं ले सकती, यदि नीचे दी गई समय सीमा बीत चुकी हो।

उपधारा (2): विभिन्न अपराधों की सीमा (Different Limitation Periods for Different Offences)

धारा 514 की उपधारा (2) में तीन श्रेणियों के लिए समय सीमा निर्धारित की गई है:

पहली श्रेणी – केवल जुर्माने से दंडनीय अपराध (Punishable with Fine Only)

यदि किसी अपराध में केवल जुर्माने की सजा है और कोई कारावास नहीं है, तो वाद की सीमा छह माह (6 months) होगी। इसका अर्थ है कि अपराध होने के छह महीने के भीतर अदालत को संज्ञान लेना होगा।

उदाहरण: मान लीजिए किसी व्यक्ति ने सार्वजनिक स्थान पर कचरा फेंकने जैसा अपराध किया, जो केवल जुर्माने से दंडनीय है, और यह अपराध 1 जनवरी को हुआ। तो 30 जून तक अदालत को इस अपराध का संज्ञान लेना होगा, अन्यथा मामला आगे नहीं बढ़ सकेगा।

दूसरी श्रेणी – एक वर्ष तक की सजा वाले अपराध (Punishable with Imprisonment up to 1 Year)

यदि किसी अपराध की अधिकतम सजा एक वर्ष की कारावास है, तो उस पर संज्ञान लेने की सीमा एक वर्ष (1 year) होगी।

उदाहरण: मान लीजिए झूठा शिकायत दर्ज कराने पर अधिकतम सजा एक वर्ष है। यदि अपराध 1 फरवरी को हुआ तो अदालत को 31 जनवरी अगली वर्ष तक ही उसका संज्ञान लेना होगा।

तीसरी श्रेणी – एक से तीन वर्ष की सजा वाले अपराध (Punishable with Imprisonment Between 1 to 3 Years)

ऐसे अपराधों के लिए तीन वर्ष (3 years) की सीमा तय की गई है।

उदाहरण: एक व्यक्ति ने ऐसा अपराध किया जो अधिकतम तीन वर्षों की सजा से दंडनीय है (जैसे साधारण मारपीट)। यदि घटना 10 मार्च 2023 को हुई, तो 9 मार्च 2026 तक उसका संज्ञान लिया जा सकता है।

उपधारा (3): एक साथ सुनवाई योग्य अपराधों की स्थिति (Joint Trials of Multiple Offences)

यदि कई अपराध एक साथ सुने जाने हैं (tried together), और उनकी सजा की अवधि अलग-अलग है, तो सबसे गंभीर सजा वाले अपराध की सीमा को लागू माना जाएगा।

उदाहरण: मान लीजिए किसी व्यक्ति पर दो आरोप हैं – एक ऐसा जिसमें अधिकतम सजा छह माह है और दूसरा जिसमें तीन वर्ष तक की सजा है, और दोनों को एक साथ सुनना है। तो तीन वर्षों की सीमा को पूरे मामले के लिए लागू माना जाएगा।

स्पष्टीकरण (Explanation): शिकायत और एफआईआर की तारीख के आधार पर सीमा की गणना (Computation of Limitation Period)

वाद की सीमा की गणना के लिए धारा 223 के तहत की गई शिकायत (Complaint) की तिथि या धारा 173 के तहत दर्ज की गई सूचना (Information/FIR) की तिथि को महत्वपूर्ण माना जाएगा, जो पहले हुई हो।

उदाहरण: यदि एफआईआर 1 अप्रैल 2024 को दर्ज हुई है, तो समय सीमा उसी दिन से शुरू मानी जाएगी।

धारा 515 – वाद की सीमा की शुरुआत (Commencement of Period of Limitation)

इस धारा में यह बताया गया है कि किसी अपराध के लिए वाद की सीमा कब से शुरू होगी। इसका सीधा अर्थ है कि सीमा गिनना कब से शुरू किया जाए।

उपधारा (1): वाद की सीमा कब प्रारंभ होगी (When Limitation Period Starts)

क्लॉज (a): अपराध घटित होने की तिथि से (From the Date of Offence)

सामान्यतः वाद की सीमा अपराध होने की तिथि से शुरू होती है।

उदाहरण: अगर चोरी 1 जून 2023 को हुई, तो उसी दिन से सीमा शुरू होगी।

क्लॉज (b): अपराध का ज्ञात होना (When Offence Comes to Knowledge)

यदि अपराध होने के समय पीड़ित या पुलिस को उसकी जानकारी नहीं थी, तो सीमा उस दिन से शुरू होगी जब उन्हें पहली बार अपराध के बारे में पता चला हो, और दोनों में से जो तारीख पहले हो।

उदाहरण: मान लीजिए किसी व्यक्ति के नाम से फर्जी दस्तावेज़ 1 जनवरी 2023 को बनाए गए, लेकिन पीड़ित को इसकी जानकारी 1 मार्च 2023 को हुई। यदि पुलिस को 15 मार्च को सूचना मिली, तो 1 मार्च से समय सीमा शुरू होगी।

क्लॉज (c): अपराधी की पहचान का ज्ञात होना (When Identity of Offender Becomes Known)

यदि यह ज्ञात नहीं है कि अपराध किसने किया, तो सीमा उस दिन से शुरू होगी जब पहली बार अपराधी की पहचान हुई, और यह जानकारी पीड़ित या जांचकर्ता पुलिस अधिकारी – जो भी पहले हो – को प्राप्त हुई हो।

उदाहरण: अगर अपराध 1 जुलाई को हुआ लेकिन अपराधी का नाम 1 अगस्त को पुलिस को पता चला, तो 1 अगस्त से सीमा की गणना होगी।

उपधारा (2): गणना में प्रारंभ का दिन शामिल नहीं होगा (Exclusion of First Day)

जब वाद की सीमा की गणना की जाती है, तो उस दिन को नहीं गिना जाएगा जिस दिन से समय शुरू होता है।

उदाहरण: अगर समय सीमा 1 जून से शुरू होती है, तो गणना 2 जून से मानी जाएगी।

सारांश (Summary)

धारा 513 से 515 तक का संयुक्त उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि छोटे-मोटे अपराधों की कार्यवाही को अनिश्चित काल तक न लटकाया जाए और आरोपी को समयबद्ध तरीके से मुकदमे का सामना करने का अवसर मिले।

जहाँ गंभीर अपराधों में कोई समय सीमा लागू नहीं होती, वहीं अपेक्षाकृत कम गंभीर अपराधों में यह सुनिश्चित किया गया है कि न्यायिक संज्ञान सीमित समय में लिया जाए। इससे न्यायिक संसाधनों का सही उपयोग होता है और अनावश्यक मुकदमों को समय रहते समाप्त किया जा सकता है।

भारत की आपराधिक प्रक्रिया में Limitation का सिद्धांत केवल तकनीकी नहीं बल्कि न्यायिक संतुलन (Judicial Balance) का उदाहरण है। यह न केवल आरोपी को अनावश्यक उत्पीड़न से बचाता है, बल्कि न्यायिक प्रणाली को यह संकेत भी देता है कि न्याय समय पर ही सार्थक होता है।

अतः धारा 513, 514 और 515 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में समय की मर्यादा का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती हैं और यह सिद्ध करती हैं कि न्याय का अर्थ केवल निर्णय नहीं, बल्कि समयबद्ध निर्णय है।

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