भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धाराएं 498, 499 और 500: आपराधिक मामलों में संपत्ति के अंतिम निपटान और उससे जुड़ी अपील
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) के अध्याय 36 में न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत संपत्ति के निपटान से जुड़े महत्वपूर्ण प्रावधान सम्मिलित किए गए हैं। इनमें धारा 498 आपराधिक मामले की जांच, पूछताछ या विचारण के पूर्ण हो जाने के बाद संपत्ति के अंतिम निपटान का अधिकार प्रदान करती है।
धारा 499 निर्दोष खरीदार को राहत देने से संबंधित है, जबकि धारा 500 ऐसे निपटान आदेशों के विरुद्ध अपील की व्यवस्था प्रदान करती है। यह तीनों धाराएं आपस में गहराई से जुड़ी हैं और आपराधिक न्याय प्रक्रिया में संपत्ति से संबंधित विवादों को सुलझाने की एक सुसंगत व्यवस्था प्रदान करती हैं।
धारा 498: विचारण के पूर्ण होने के बाद संपत्ति के निपटान का आदेश
मूल प्रावधान और न्यायालय का अधिकार
जब किसी आपराधिक मामले की जांच, पूछताछ या विचारण पूर्ण हो जाता है, तो उस स्थिति में न्यायालय या मजिस्ट्रेट उस संपत्ति के संबंध में आदेश पारित कर सकता है जो उसके समक्ष प्रस्तुत की गई थी, उसकी अभिरक्षा में थी, जिससे कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है, या जो अपराध करने के लिए उपयोग में लाई गई थी।
न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि ऐसी संपत्ति को नष्ट किया जाए, जब्त कर लिया जाए (अर्थात् सरकार की संपत्ति घोषित की जाए), या उसे उस व्यक्ति को सौंप दिया जाए जो उसका वैध स्वामी होने का दावा करता हो।
उदाहरण:
मान लीजिए कि किसी आरोपी के पास से एक चोरी की गई मोटरसाइकिल बरामद होती है और विचारण के बाद आरोपी दोषी ठहराया जाता है। इस स्थिति में न्यायालय उस मोटरसाइकिल को उसके असली मालिक को सौंपने का आदेश दे सकता है। यदि वह मोटरसाइकिल किसी अन्य अपराध में उपयोग हुई हो, तो न्यायालय उसके जब्ती या विनष्ट करने का आदेश भी दे सकता है।
धारा 498(2): संपत्ति की सुपुर्दगी शर्तों के साथ या बिना शर्तों के
न्यायालय यह भी आदेश दे सकता है कि संपत्ति को उस व्यक्ति को सौंपा जाए जो उस पर दावा करता है, बिना किसी शर्त के या इस शर्त के साथ कि वह व्यक्ति एक बांड (Bond) देगा—संपत्ति को वापस न्यायालय में प्रस्तुत करने की शर्त पर। बांड में गारंटर (Surety) देने की आवश्यकता हो सकती है या नहीं, यह न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है।
यह व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि यदि भविष्य में उच्च न्यायालय द्वारा उक्त आदेश में कोई संशोधन हो या उसे निरस्त कर दिया जाए, तो संपत्ति पुनः न्यायालय को लौटाई जा सके।
उदाहरण:
यदि किसी व्यक्ति को विचारण के बाद बरी कर दिया जाता है और उसका मोबाइल फोन उसे वापस देने का आदेश होता है, तो न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि वह व्यक्ति एक साधारण बांड भरे कि यदि निर्णय पलटा गया, तो वह फोन पुनः न्यायालय को सौंपेगा।
धारा 498(3): सत्र न्यायालय का विशेष प्रावधान
सत्र न्यायालय (Court of Session) चाहें तो खुद निपटान का आदेश न देकर वह संपत्ति मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate) को सौंपने का निर्देश दे सकता है। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट तब उस संपत्ति का निपटान भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धाराएं 503, 504 और 505 के अनुसार करेगा।
यह व्यवस्था इसलिए बनाई गई है ताकि उच्च न्यायालय की कार्यवाही के बोझ को कम किया जा सके और संपत्ति के निपटान का काम अधीनस्थ न्यायालयों को सौंपा जा सके।
धारा 498(4): आदेश को क्रियान्वयन में लाने की समयसीमा
सामान्यतः जब तक दो महीने की अवधि पूरी न हो जाए, या जब तक कोई अपील लंबित हो, तब तक धारा 498(1) के अंतर्गत पारित आदेश को लागू नहीं किया जाएगा।
हालांकि, यदि संपत्ति जीवित पशु है, या शीघ्र नष्ट हो सकती है, या यदि संपत्ति सुपुर्दगी बांड के साथ दी गई हो, तो यह दो महीने की प्रतीक्षा आवश्यक नहीं होती।
उदाहरण:
यदि न्यायालय किसी फल या सब्ज़ी के ट्रक को नष्ट करने का आदेश देता है, तो दो महीने प्रतीक्षा नहीं की जाएगी, क्योंकि ऐसी वस्तुएँ जल्दी खराब हो सकती हैं। वहीं, यदि एक गाड़ी किसी व्यक्ति को सुपुर्द की जाती है और उसने बांड भर दिया है, तो न्यायालय दो महीने की प्रतीक्षा किए बिना उसे गाड़ी सौंप सकता है।
धारा 498(5): "संपत्ति" की विस्तृत परिभाषा
इस धारा के अंतर्गत "संपत्ति" शब्द की परिभाषा को विस्तृत किया गया है। इसमें केवल वही संपत्ति नहीं आती जो अपराध के समय आरोपी के कब्जे में थी, बल्कि वह संपत्ति भी आती है जो उस मूल संपत्ति को बदलकर या बेचकर प्राप्त की गई हो।
उदाहरण:
अगर किसी व्यक्ति ने चोरी की गई सोने की अंगूठी को बेचकर मोबाइल खरीद लिया है, तो वह मोबाइल भी न्यायालय द्वारा "संपत्ति" माना जाएगा और धारा 498 के अधीन उसका निपटान किया जा सकता है।
धारा 499: निर्दोष खरीदार को भुगतान का आदेश
जब कोई व्यक्ति ऐसे अपराध में दोषी ठहराया जाता है जिसमें चोरी या चोरी की संपत्ति को खरीदना शामिल हो, और यह प्रमाणित हो जाता है कि किसी अन्य व्यक्ति ने वह संपत्ति उससे खरीदी थी—बिना यह जाने या संदेह किए कि वह चोरी की है—तो न्यायालय उस निर्दोष खरीदार को कुछ राशि लौटाने का आदेश दे सकता है।
यह राशि उस रकम से अधिक नहीं हो सकती जो खरीदार ने चोर से संपत्ति खरीदने में खर्च की थी। इस आदेश की पूर्वशर्त यह है कि वह चोरी की गई वस्तु असली मालिक को लौटा दी गई हो।
यह आदेश केवल तब पारित किया जा सकता है जब दोषी व्यक्ति की गिरफ्तारी के समय उसकी जेब से कुछ पैसे बरामद हुए हों। आदेश पारित होने की तारीख से छह महीने के भीतर यह रकम निर्दोष खरीदार को दी जा सकती है।
उदाहरण:
मान लीजिए कि किसी चोर ने एक महंगा मोबाइल चोरी किया और उसे एक दुकानदार को ₹10,000 में बेच दिया। दुकानदार ने यह विश्वास करते हुए कि मोबाइल वैध है, उसे खरीद लिया। बाद में चोर पकड़ा गया और मोबाइल असली मालिक को लौटा दिया गया। अगर चोर की जेब से ₹5,000 मिले, तो न्यायालय आदेश दे सकता है कि दुकानदार को ₹5,000 तक की राशि चोर की बरामद रकम में से दी जाए।
धारा 500: धारा 498 और 499 के आदेशों के विरुद्ध अपील का अधिकार
धारा 500 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति धारा 498 या 499 के अंतर्गत पारित किसी आदेश से असंतुष्ट है, तो वह संबंधित न्यायालय में अपील दायर कर सकता है। यह अपील उस न्यायालय में की जाएगी जहां सामान्यतः उसी न्यायालय की सजा के विरुद्ध अपील की जाती है।
अपील लंबित होने के दौरान अपीलीय न्यायालय यह निर्देश दे सकता है कि मूल आदेश पर तब तक अमल न किया जाए जब तक अपील का निपटारा नहीं हो जाता। इसके अतिरिक्त, अपीलीय न्यायालय आदेश को बदल भी सकता है, उसे रद्द कर सकता है या ऐसा अन्य आदेश पारित कर सकता है जो न्यायसंगत हो।
इन अधिकारों का प्रयोग केवल अपीलीय न्यायालय द्वारा ही नहीं, बल्कि पुष्टि (confirmation) या पुनरीक्षण (revision) सुनवाई कर रहे न्यायालय द्वारा भी किया जा सकता है।
उदाहरण:
मान लीजिए कि किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति नहीं लौटाई गई और न्यायालय ने उसका दावा खारिज कर दिया। वह व्यक्ति उच्चतर न्यायालय में अपील दायर करता है। अपीलीय न्यायालय आदेश को रद्द कर सकता है और कह सकता है कि संपत्ति उसे सौंपी जाए।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धाराएं 498, 499 और 500 संपत्ति के निपटान और उससे संबंधित अधिकारों को विस्तारपूर्वक और न्यायसंगत ढंग से परिभाषित करती हैं।
धारा 498 यह सुनिश्चित करती है कि विचारण के पूर्ण होने के बाद संपत्ति के संबंध में उचित आदेश पारित हो। धारा 499 निर्दोष खरीदार की आर्थिक सुरक्षा करती है जबकि धारा 500 अपील का कानूनी रास्ता खोलती है जिससे कोई भी पक्ष अपनी बात उच्चतर न्यायालय के समक्ष रख सके।
इन धाराओं से स्पष्ट होता है कि भारतीय आपराधिक प्रक्रिया न केवल अभियोजन पर केंद्रित है, बल्कि वह संपत्ति के साथ जुड़े हर पक्ष—मालिक, खरीदार, आरोपी और राज्य—की न्यायपूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित करती है।