भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 465 से 467: दंड निष्पादन से जुड़ी सामान्य विधियाँ
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) एक विस्तृत प्रक्रिया संहिता है जो भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए मार्गदर्शक दस्तावेज के रूप में कार्य करती है। इस संहिता ने भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) का स्थान लिया है और यह 1 जुलाई 2024 से प्रभाव में आ चुकी है।
इसकी धारा 455 से लेकर धारा 473 तक “दंड के निष्पादन” (Execution of Sentences) से संबंधित प्रावधान दिए गए हैं। इस खंड के अंतर्गत विभिन्न स्थितियों में दी गई सजाओं को व्यवहार में कैसे लाया जाए, इसका विस्तृत विवरण मिलता है।
इस लेख में हम "भाग-घ" (Part D – General provisions regarding execution) के अंतर्गत धारा 465, 466 और 467 का सरल हिंदी में विस्तृत विश्लेषण करेंगे। यह धाराएँ यह स्पष्ट करती हैं कि किस प्रकार दंड निष्पादन के वारंट जारी किए जाते हैं, जेल से भागे हुए दोषियों को नई सजा दिए जाने पर क्या प्रक्रिया अपनाई जाती है, और किसी व्यक्ति को पहले से चल रही सजा के दौरान दूसरी सजा मिलने पर दंडों की गणना कैसे की जाती है।
धारा 465 – दंड निष्पादन के लिए वारंट जारी करने का अधिकार
यह धारा कहती है कि जब किसी व्यक्ति को कोई सजा दी जाती है, जैसे कि मृत्यु-दंड, आजीवन कारावास, कारावास या जुर्माना, तो उस सजा के निष्पादन के लिए जो वारंट (Warrant) जारी किया जाएगा, वह या तो वही न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट जारी कर सकता है जिसने वह सजा सुनाई है, या फिर उस पद का वर्तमान उत्तराधिकारी।
इसका तात्पर्य यह है कि यदि सजा सुनाने वाला न्यायिक अधिकारी सेवानिवृत्त हो गया है या किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित हो गया है, तब भी उस सजा के निष्पादन हेतु वारंट जारी करने का अधिकार उसके उत्तराधिकारी को प्राप्त होता है। इससे न्यायिक प्रक्रिया में कोई रुकावट नहीं आती और प्रशासनिक कार्यवाही निर्बाध रूप से आगे बढ़ सकती है।
इस प्रावधान की उपयोगिता न्यायिक अनुशासन को बनाए रखने में है, ताकि अभियुक्त दंड से बचने के लिए समय का लाभ न उठा सके। इसके अलावा, यह प्रावधान इस सिद्धांत पर आधारित है कि न्यायिक कार्य व्यक्तिगत नहीं बल्कि संस्थागत होते हैं।
धारा 466 – जेल से भागे हुए अपराधियों पर नई सजा के प्रभाव का निर्धारण
यह धारा उन अपराधियों के संदर्भ में है जो पहले से किसी अपराध के लिए सजा भुगत रहे थे और जेल से भाग गए। इसके पश्चात यदि उन्हें किसी नए अपराध के लिए सजा मिलती है, तो उस सजा का निष्पादन कैसे होगा, यह धारा 466 में बताया गया है।
धारा 466(1) में कहा गया है कि यदि किसी फरार अपराधी को नई सजा मृत्यु-दंड, आजीवन कारावास या जुर्माना के रूप में दी जाती है, तो वह सजा तुरंत प्रभावी हो जाएगी। इसमें कोई देरी नहीं होगी, भले ही पहले की सजा अधूरी क्यों न हो।
धारा 466(2) दो प्रकार की स्थितियाँ बताती है जहाँ किसी फरार अपराधी को एक निश्चित अवधि (term) की कारावास की सजा दी जाती है। इन दोनों स्थितियों में यह देखा जाता है कि नई सजा पहले वाली सजा की तुलना में “प्रकार में अधिक कठोर” (severer in kind) है या नहीं।
अगर नई सजा कठोर है, जैसे कि कठोर कारावास (rigorous imprisonment), और पुरानी सजा साधारण कारावास (simple imprisonment) थी, तो नई सजा तुरंत शुरू होगी। लेकिन अगर नई सजा पुरानी से कठोर नहीं है, जैसे दोनों ही साधारण कारावास हैं, तो नई सजा तब शुरू होगी जब पहले वाली सजा की बची हुई अवधि पूरी मानी जाएगी।
धारा 466(3) यह स्पष्ट करती है कि कठोर कारावास को साधारण कारावास की तुलना में अधिक कठोर माना जाएगा।
उदाहरण के रूप में, मान लीजिए एक अपराधी को 3 साल की साधारण कैद हुई और उसने 1 साल बाद जेल से भाग लिया। फिर उसे एक नए अपराध में 2 साल की साधारण सजा हुई। चूंकि नई सजा पुरानी के समान ही कठोरता की है, इसलिए नई सजा उस समय से मानी जाएगी जब वह पहले की बची हुई 2 साल की अवधि को पूरा कर लेगा। लेकिन यदि नई सजा 2 साल की कठोर कैद है, तो वह सजा तुरंत लागू होगी।
यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि जो अपराधी जेल से भाग जाते हैं, वे दंड से बच न सकें और उन्हें उनकी सजा भुगतनी ही पड़े। यह न्याय के सिद्धांत के अनुरूप है।
धारा 467 – पूर्ववर्ती सजा के दौरान नई सजा मिलने की स्थिति में क्या होगा
यह धारा उन अभियुक्तों से संबंधित है जो पहले से किसी सजा को भुगत रहे होते हैं और फिर उन्हें किसी नए अपराध में दूसरी सजा मिलती है। ऐसे मामलों में यह प्रश्न उठता है कि क्या नई सजा पहले वाली सजा के बाद शुरू होगी या दोनों सजाएँ एक साथ चलेंगी।
धारा 467(1) कहती है कि यदि कोई व्यक्ति पहले से कारावास की सजा भुगत रहा है और उसे किसी अन्य अपराध में फिर से कारावास या आजीवन कारावास की सजा मिलती है, तो सामान्यतः दूसरी सजा पहली सजा पूरी होने के बाद शुरू होगी। लेकिन यदि न्यायालय चाहे तो यह आदेश दे सकता है कि दोनों सजाएँ एक साथ चलें (concurrently)।
इसका एक अपवाद भी है। यदि किसी व्यक्ति को धारा 141 के अंतर्गत सुरक्षा न देने पर जेल भेजा गया है और फिर उसे किसी पहले किए गए अपराध में सजा दी जाती है, तो वह नई सजा तुरंत प्रभाव में आ जाएगी, पहले वाली सजा पूरी होने का इंतज़ार नहीं किया जाएगा।
धारा 467(2) यह कहती है कि यदि किसी व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा भुगतते हुए किसी नए अपराध के लिए फिर से आजीवन कारावास या सीमित अवधि की सजा दी जाती है, तो वह नई सजा पहली सजा के साथ-साथ चलेगी।
उदाहरण के रूप में, मान लीजिए कोई व्यक्ति 10 साल की कारावास की सजा भुगत रहा है और उसी दौरान उसे एक अन्य मामले में 5 साल की सजा और मिलती है। तो न्यायालय के आदेश के अनुसार यह 5 साल की सजा या तो 10 साल के बाद शुरू होगी या दोनों एक साथ चल सकती हैं। लेकिन अगर कोई व्यक्ति पहले से आजीवन कारावास भुगत रहा है और उसे फिर 7 साल की सजा मिलती है, तो दोनों सजाएँ एक साथ चलेंगी।
इस धारा का उद्देश्य यह है कि सजा की निष्पादन प्रक्रिया पारदर्शी और न्यायपूर्ण हो। यह न्यायालय को यह विवेक देता है कि वह परिस्थिति के अनुसार निर्णय करे कि दोनों सजाएँ साथ चलें या अलग-अलग।
संबंधित पूर्ववर्ती धाराओं का महत्व
इस लेख की धाराएँ, विशेष रूप से धारा 466 और 467, तब और अधिक स्पष्ट होती हैं जब हम इन्हें धारा 455, 456, 459, 461 और 464 के साथ मिलाकर पढ़ते हैं।
धारा 455 यह निर्धारित करती है कि सजा का निष्पादन कौन-सा न्यायालय करेगा।
धारा 456 मृत्यु-दंड के निष्पादन से संबंधित है।
धारा 459 यह बताती है कि एक से अधिक सजाएँ कैसे दी जाएँगी।
धारा 461 बताती है कि जुर्माने की वसूली कैसे की जाएगी।
धारा 464 में बताया गया है कि जुर्माने के भुगतान में विफल रहने पर कारावास की सजा कैसे स्थगित की जा सकती है।
इन सभी प्रावधानों को मिलाकर पढ़ने से दंड निष्पादन का समग्र ढांचा स्पष्ट होता है।
धारा 465, 466 और 467 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की दंड निष्पादन प्रणाली के मूल स्तंभ हैं। ये धाराएँ यह सुनिश्चित करती हैं कि कोई भी अभियुक्त तकनीकीताओं या प्रक्रियात्मक देरी का लाभ उठाकर सजा से बच न सके। धारा 465 यह सुनिश्चित करती है कि सजा निष्पादन का अधिकार संस्था के पास बना रहे, न कि किसी व्यक्ति विशेष के पास। धारा 466 जेल से भागे हुए अपराधियों के लिए कड़ा संदेश देती है और धारा 467 पुनः अपराध करने वालों के लिए एक सुस्पष्ट और न्यायिक संरचना प्रदान करती है।