भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 461 और 462 : जुर्माने की वसूली और वारंट की प्रभावशीलता से जुड़ी प्रक्रिया

Update: 2025-05-14 09:44 GMT

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अध्याय XXXIV में दंड निष्पादन से संबंधित महत्वपूर्ण प्रक्रियाएँ दी गई हैं। इस अध्याय के अंतर्गत “अंश – 'ग' : जुर्माना वसूल करना” (Levy of Fine) में धारा 461 और 462 में बताया गया है कि जब किसी अभियुक्त पर जुर्माना लगाया गया हो, लेकिन वह भुगतान नहीं करता है, तो उस जुर्माने की वसूली किस प्रकार की जाएगी। इसके साथ ही, इन धाराओं में यह भी स्पष्ट किया गया है कि जुर्माना वसूल करने हेतु जारी किए गए वारंट की क्षेत्रीय सीमा क्या होगी और उसे कैसे लागू किया जाएगा।

यह लेख इन दोनों धाराओं को विस्तार से, सरल हिंदी में समझाता है ताकि आमजन और विधि के विद्यार्थी जुर्माना वसूलने की न्यायिक प्रक्रिया को अच्छी तरह से समझ सकें।

धारा 461 – जुर्माने की वसूली का तरीका

इस धारा के अनुसार, जब किसी व्यक्ति को जुर्माना भरने की सजा दी जाती है और वह उसका भुगतान नहीं करता है, तो न्यायालय दो तरीकों से उस जुर्माने की राशि की वसूली कर सकता है। ये दोनों तरीके एक साथ भी अपनाए जा सकते हैं।

पहला तरीका – चल संपत्ति को जब्त कर बेचना

न्यायालय उस व्यक्ति की कोई भी चल संपत्ति (जैसे—वाहन, घरेलू सामान, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि) जब्त करने और उसे बेचकर जुर्माने की राशि वसूल करने का वारंट जारी कर सकता है। यह वारंट न्यायालय द्वारा उस संपत्ति की कुर्की और विक्रय के लिए आदेश के रूप में कार्य करता है।

दूसरा तरीका – ज़िलाधिकारी को भूमि राजस्व की तरह वसूली का आदेश देना

न्यायालय एक वारंट ज़िलाधिकारी (कलेक्टर) को जारी कर सकता है, जिसमें उसे निर्देश दिया जाएगा कि वह उस व्यक्ति की चल या अचल संपत्ति (जैसे घर, जमीन आदि) से जुर्माने की राशि भूमि राजस्व के बकाये के रूप में वसूल करे। इस प्रक्रिया में ज़िलाधिकारी को राजस्व कानूनों के अंतर्गत अधिकार मिल जाता है कि वह उस व्यक्ति की संपत्ति से बकाया जुर्माना वसूल कर न्यायालय को सौंपे।

प्रथम उपबंध – अपवाद की स्थिति

यदि न्यायालय द्वारा जुर्माने के भुगतान न करने पर अभियुक्त को जेल भेजने का आदेश दिया गया था, और उसने वह पूरी सजा (कारावास की अवधि) भुगत ली है, तो फिर सामान्यतः न्यायालय द्वारा उक्त जुर्माने की वसूली के लिए उपरोक्त दोनों प्रकार के वारंट जारी नहीं किए जा सकते। किंतु दो स्थितियों में यह किया जा सकता है—

पहली, यदि न्यायालय लिखित रूप में विशेष कारण दर्ज करके ऐसा आवश्यक समझता है।

दूसरी, यदि न्यायालय ने जुर्माने की राशि से किसी अन्य व्यक्ति को मुआवजा देने या किसी खर्च का भुगतान करने का आदेश दिया है, जैसा कि धारा 395 में प्रावधान है।

उदाहरण

मान लीजिए किसी व्यक्ति को न्यायालय ने ₹20,000 जुर्माना भरने की सजा दी है। वह व्यक्ति तय समय तक जुर्माना नहीं भरता है। ऐसी स्थिति में न्यायालय या तो उसके स्कूटर, फ्रिज आदि को जब्त कर बेचने का आदेश दे सकता है, या ज़िलाधिकारी को उसके मकान या खेत से राशि वसूलने का निर्देश दे सकता है। लेकिन अगर वह व्यक्ति पहले ही वैकल्पिक रूप से 6 महीने की जेल की सजा भुगत चुका है, तो सामान्य रूप से अब जुर्माना वसूलने के लिए वारंट जारी नहीं होगा, जब तक कि न्यायालय विशेष कारण न बताए।

धारा 461(2) – चल संपत्ति कुर्की संबंधी नियम बनाना

राज्य सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह ऐसे नियम बना सकती है जिनसे यह तय हो कि उपधारा (1) के खंड (a) के अंतर्गत जो वारंट जारी होता है, उसे किस प्रकार निष्पादित किया जाएगा। इसके अतिरिक्त, यदि किसी व्यक्ति को जब्त की गई संपत्ति पर अधिकार होने का दावा है (जो कि अभियुक्त नहीं है), तो राज्य सरकार इस विवाद को संक्षिप्त रूप से सुलझाने की प्रक्रिया भी निर्धारित कर सकती है।

इसका तात्पर्य यह है कि जब संपत्ति जब्त की जाती है, तो तीसरे पक्ष के दावों की भी सुनवाई का अवसर होता है ताकि किसी निर्दोष व्यक्ति की संपत्ति न बेची जाए।

उदाहरण

अगर किसी अभियुक्त का टीवी सेट जब्त किया गया है, लेकिन उसका भाई दावा करता है कि वह टीवी उसका है और उसने अपनी कमाई से खरीदा है, तो राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार उस दावे की जांच की जाएगी।

धारा 461(3) – जिलाधिकारी द्वारा जुर्माना वसूलने की प्रक्रिया

जब न्यायालय उपधारा (1) के खंड (b) के अंतर्गत कलेक्टर को जुर्माने की वसूली का वारंट भेजता है, तो कलेक्टर उक्त राशि को भूमि राजस्व के बकाया के रूप में वसूल करेगा। यह वसूली ठीक उसी प्रकार होगी जैसे कोई अन्य भूमि कर का बकाया वसूला जाता है, और उस वारंट को ऐसा माना जाएगा जैसे वह संबंधित कानून के तहत प्रमाण पत्र हो।

लेकिन इस प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण शर्त यह है कि कलेक्टर द्वारा अभियुक्त को न तो गिरफ्तार किया जा सकता है, और न ही जेल भेजा जा सकता है। वसूली केवल संपत्ति से होगी।

उदाहरण

किसी व्यक्ति ने ₹50,000 का जुर्माना नहीं भरा। न्यायालय ने कलेक्टर को वारंट भेजा। कलेक्टर ने उस व्यक्ति के नाम पर दर्ज एक प्लॉट की नीलामी कर ₹50,000 वसूल कर न्यायालय को भेज दिया। इस पूरी प्रक्रिया में उस व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया गया।

धारा 462 – ऐसे वारंट की प्रभावशीलता और क्षेत्राधिकार

इस धारा में बताया गया है कि धारा 461(1)(a) के अंतर्गत चल संपत्ति को जब्त और बेचने के लिए जो वारंट जारी किया जाता है, वह उस न्यायालय की स्थानीय सीमा में निष्पादित किया जा सकता है। लेकिन यदि उस संपत्ति को जब्त करना न्यायालय की सीमा से बाहर पड़े, तो वह वारंट संबंधित ज़िले के ज़िलाधिकारी द्वारा प्रमाणित (एन्डोर्स) किया जाना आवश्यक होता है।

इससे यह सुनिश्चित होता है कि कोई भी न्यायालय अपनी सीमा से बाहर जाकर सीधे जब्ती की कार्रवाई न करे, बल्कि उस क्षेत्र के प्रशासनिक अधिकारी की अनुमति से ही कार्यवाही हो।

उदाहरण

दिल्ली की एक अदालत ने अभियुक्त की कार जब्त करने का आदेश दिया। लेकिन वह कार आगरा में है। तब दिल्ली की अदालत द्वारा जारी किया गया वारंट आगरा के ज़िलाधिकारी को भेजा जाएगा, जो उसे प्रमाणित करेगा। इसके बाद ही आगरा प्रशासन उस कार को जब्त कर सकता है।

सम्बंधित प्रावधानों से संबंध

धारा 395 का उल्लेख धारा 461 में सीधे किया गया है। यह धारा बताती है कि न्यायालय जुर्माने की राशि से मुआवजा या व्यय का भुगतान कैसे कर सकता है। यदि किसी पीड़ित को मुआवजा दिया जाना हो और अभियुक्त जुर्माना नहीं देता है, तो धारा 395 के आधार पर जुर्माना वसूली को प्राथमिकता दी जा सकती है।

इसके अलावा धारा 455 में यह बताया गया है कि दंड का निष्पादन किस न्यायालय द्वारा किया जाएगा और न्यायालय का अधिकार क्षेत्र क्या होगा। यह पूरी श्रृंखला, जिसमें धारा 453 से लेकर धारा 462 तक प्रावधान हैं, एक पूर्ण प्रक्रिया का निर्माण करती है जिससे दंड निष्पादन न्यायपूर्ण, संगठित और व्यावहारिक रूप से संभव हो सके।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 461 और 462 जुर्माने की वसूली और न्यायालय द्वारा जारी वारंटों की वैधानिक प्रक्रिया को स्पष्ट करती हैं।

ये प्रावधान केवल दंड को लागू करने के उद्देश्य से नहीं बनाए गए हैं, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए हैं कि व्यक्ति की संपत्ति का जब्तीकरण भी विधिसम्मत ढंग से हो। साथ ही यह सुनिश्चित किया गया है कि यदि अभियुक्त ने पहले ही जेल की सजा भुगत ली हो तो केवल विशेष कारणों से ही उससे राशि की वसूली की जाए।

इन धाराओं से यह संदेश भी मिलता है कि न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता, निष्पक्षता और विधिक नियमों का पालन आवश्यक है। चाहे वह चल संपत्ति की जब्ती हो या कलेक्टर द्वारा अचल संपत्ति से वसूली—हर प्रक्रिया का उद्देश्य केवल दंड नहीं, बल्कि न्याय है।

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