भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 437 और 438: संदर्भ का निर्णय और पुनरीक्षण की शक्ति

Update: 2025-04-29 10:44 GMT

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) में आपराधिक मामलों की सुनवाई, प्रक्रिया और पुनरीक्षण (Revision) से संबंधित कई महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल किए गए हैं। अध्याय 32 (Chapter XXXII) विशेष रूप से “संदर्भ और पुनरीक्षण” (Reference and Revision) से संबंधित है। इस अध्याय की धारा 436 पहले से यह व्यवस्था देती है कि अगर किसी निचली अदालत को लगता है कि किसी कानून या नियम की वैधता (Validity) पर प्रश्न उठता है, तो वह हाईकोर्ट को संदर्भ भेज सकती है।

अब हम धारा 437 और 438 की चर्चा करेंगे, जो यह बताती हैं कि हाईकोर्ट उस संदर्भ पर क्या आदेश दे सकता है, और साथ ही, पुनरीक्षण (Revision) की शक्तियों का प्रयोग किस प्रकार किया जा सकता है।

धारा 437: हाईकोर्ट द्वारा आदेश और निचली अदालत द्वारा उसका पालन

धारा 437 का पहला उपखंड यह व्यवस्था करता है कि जब किसी अदालत द्वारा कोई प्रश्न हाईकोर्ट को संदर्भ के रूप में भेजा गया है (जैसा कि धारा 436 में कहा गया है), तो हाईकोर्ट उस संदर्भ पर जो उचित समझे, वह आदेश पारित कर सकता है।

इस आदेश की एक प्रति उस निचली अदालत को भेजी जाएगी जिसने संदर्भ भेजा था। उस अदालत का कर्तव्य होगा कि वह अपने सामने लंबित मामले को हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार निपटाए।

उदाहरण से समझें:

मान लीजिए, एक मजिस्ट्रेट अदालत को यह संदेह है कि किसी विशेष अधिनियम की एक धारा संविधान के विरुद्ध है। अदालत इस प्रश्न को धारा 436 के अंतर्गत हाईकोर्ट को भेजती है। हाईकोर्ट जांच के बाद निर्णय देता है कि वह धारा वैध है। अब मजिस्ट्रेट अदालत को उस निर्णय के अनुरूप आगे की कार्यवाही करनी होगी।

धारा 437 का दूसरा उपखंड हाईकोर्ट को यह शक्ति देता है कि वह यह निर्देश दे सके कि संदर्भ की लागत (Cost) किस पक्ष द्वारा वहन की जाएगी। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी पक्ष को अनुचित आर्थिक बोझ न उठाना पड़े।

धारा 438: रिकॉर्ड मंगवाकर पुनरीक्षण करने की शक्ति

धारा 438 हाईकोर्ट और सत्र न्यायाधीश (Sessions Judge) को यह अधिकार देती है कि वे किसी भी अधीनस्थ (Inferior) आपराधिक अदालत की कार्यवाही का रिकॉर्ड मंगवा सकते हैं। इसका उद्देश्य यह होता है कि यह देखा जा सके कि उस अदालत का कोई निर्णय, आदेश या कार्यवाही विधि के अनुरूप है या नहीं।

यह अधिकार मुख्यतः तीन बातों की जांच के लिए प्रयोग किया जाता है:

1. निर्णय, सजा या आदेश की सही होने की जांच

2. उसकी कानूनी वैधता

3. आदेश या कार्यवाही की उचितता और प्रक्रिया की नियमितता

यदि हाईकोर्ट या सत्र न्यायाधीश को संदेह होता है कि कोई आदेश गलत है या प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण रही है, तो वे उस मामले का रिकॉर्ड मंगवा सकते हैं।

दृष्टांत:

मान लीजिए, एक न्यायिक मजिस्ट्रेट ने एक आरोपी को संज्ञेय अपराध में बिना पर्याप्त साक्ष्य के दोषी ठहरा दिया और उसे सजा सुना दी। आरोपी हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल करता है। हाईकोर्ट उस मामले का रिकॉर्ड मंगवाकर देखता है कि क्या निर्णय उचित था। यदि नहीं, तो वह निर्णय को पलट भी सकता है।

रिकॉर्ड मंगवाते समय कार्यवाही पर रोक और जमानत का निर्देश

धारा 438 यह भी स्पष्ट करती है कि जब हाईकोर्ट या सत्र न्यायाधीश किसी मामले का रिकॉर्ड मंगवाते हैं, तो वे यह निर्देश दे सकते हैं कि उस आदेश या सजा पर रोक (Stay) लगाई जाए। साथ ही, यदि आरोपी हिरासत (Custody) में है, तो उसे निजी मुचलके या जमानत पर रिहा भी किया जा सकता है जब तक रिकॉर्ड की जांच चल रही हो।

इस प्रावधान का उद्देश्य यह है कि यदि किसी व्यक्ति को गलत तरीके से सजा दी गई है, तो उसे उस समय तक राहत मिल सके जब तक न्यायालय मामले की पूरी जांच नहीं कर लेता।

स्पष्टीकरण: कौन-कौन 'अधीनस्थ अदालतें' मानी जाएंगी

इस धारा में यह स्पष्ट किया गया है कि सभी मजिस्ट्रेट, चाहे वे कार्यपालक (Executive) हों या न्यायिक (Judicial), और चाहे वे मूल अधिकार क्षेत्र (Original Jurisdiction) में कार्य कर रहे हों या अपीलीय (Appellate), सभी को सत्र न्यायाधीश के अधीन माना जाएगा। इसका अर्थ है कि वे सभी न्यायालय जिनका स्तर सत्र न्यायालय से नीचे है, वे इस धारा के अंतर्गत अधीनस्थ माने जाएंगे।

धारा 438(2): अपील या अन्य कार्यवाही में दिए गए अस्थायी आदेशों पर पुनरीक्षण नहीं

इस धारा का दूसरा उपखंड यह कहता है कि पुनरीक्षण की शक्ति उन आदेशों पर प्रयोग नहीं की जा सकती जो 'अंतरिम' (Interlocutory) प्रकृति के होते हैं। यानी कोई ऐसा आदेश जो अंतिम निर्णय नहीं है बल्कि कार्यवाही के बीच में दिया गया है, उस पर पुनरीक्षण नहीं किया जा सकता।

उदाहरण:

यदि किसी मामले में मजिस्ट्रेट यह आदेश देता है कि अभियोजन पक्ष को एक अतिरिक्त गवाह पेश करने की अनुमति दी जाए, तो यह एक अंतरिम आदेश है। इस पर पुनरीक्षण नहीं किया जा सकता।

धारा 438(3): दोहरी पुनरीक्षण याचिका की मनाही

तीसरे उपखंड में यह प्रावधान किया गया है कि अगर किसी व्यक्ति ने धारा 438 के अंतर्गत हाईकोर्ट या सत्र न्यायाधीश में आवेदन कर दिया है, तो वह वही विषय लेकर दूसरी जगह (दूसरे न्यायालय में) पुनरीक्षण की याचिका नहीं दाखिल कर सकता। इसका उद्देश्य प्रक्रिया की शुचिता बनाए रखना और न्यायालयों पर अनावश्यक दबाव कम करना है।

पूर्व की धाराओं से संबंध

धारा 436 और 437 को साथ पढ़ने से स्पष्ट होता है कि कैसे संदर्भ (Reference) की प्रक्रिया और उसके निपटारे का क्रमबद्ध तंत्र है। वहीं धारा 438 आपराधिक न्याय व्यवस्था में हाईकोर्ट और सत्र न्यायालय को यह सुनिश्चित करने की शक्ति देती है कि निचली अदालतों में न्याय संगत प्रक्रिया अपनाई जा रही है या नहीं।

धारा 437 और 438 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत न्यायिक नियंत्रण और संतुलन की बुनियाद हैं। एक ओर, हाईकोर्ट को यह अधिकार है कि वह संदर्भित प्रश्नों पर अंतिम निर्णय दे और उसका पालन सुनिश्चित कराए। वहीं दूसरी ओर, उसे यह भी शक्ति प्राप्त है कि वह निचली अदालतों के रिकॉर्ड की समीक्षा कर सके और गलत निर्णयों को सुधार सके।

ये प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि न्याय व्यवस्था पारदर्शी, अनुशासित और त्रुटिहीन बनी रहे, और किसी भी व्यक्ति को अन्याय का शिकार न होना पड़े।

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