क़ानून में किसी भी अपराध में एक पक्ष अभियुक्त का होता है और एक शिकायतकर्ता का होता है। कभी-कभी देखने में यह आता है कि पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज की गई, एफआईआर दर्ज करने के बाद अन्वेषण किया गया। अन्वेषण के बाद कोर्ट में चालान प्रस्तुत नहीं किया गया और पुलिस ने आरोपियों को क्लीन चिट देते हुए क्लोजर रिपोर्ट या फाइनल रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी।
इस स्थिति में शिकायतकर्ता व्यथित हो जाता है। क्योंकि शिकायतकर्ता अपनी शिकायत लेकर पुलिस के पास जाता है। उसके साथ घटने वाले किसी अपराध की जानकारी उसके द्वारा पुलिस को दी जाती है। उसकी जानकारी के आधार पर पुलिस एफआईआर दर्ज करती हैं। ऐसी एफआईआर के बाद अन्वेषण होता है। हालांकि पुलिस के पास यह अधिकार सुरक्षित है कि यदि अन्वेषण में उसे जिन व्यक्तियों के नाम पर एफआईआर की गई थी उनके संबंध में कोई सबूत नहीं मिले तब पुलिस उन्हें क्लीन चिट दे देती है।
उन्हें कोर्ट में आरोपी बनाकर पेश नहीं किया जाता है बल्कि पुलिस द्वारा यह कह दिया जाता है कि जिन व्यक्तियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज की गई थी उनका अपराध में कोई भाग नहीं है। ऐसे कोई सबूत प्राप्त नहीं हुए जिससे उन पर चालान पेश किया जा सके। कभी कभी आरोपियों के नहीं मिलने पर भी पुलिस क्लोजर रिपोर्ट प्रस्तुत कर देती है।
कानून ने इस स्थिति में शिकायतकर्ता को कुछ अधिकार दिए हैं। शिकायतकर्ता अपनी ओर से कुछ ऐसे कानूनी कदम उठा सकता है जिससे जिन व्यक्तियों पर एफआईआर की गई है उन पर मुकदमा चलाया जा सके।
प्रोटेस्ट पिटिशन
प्रोटेस्ट पिटिशन एक प्रकार की विरोध याचिका है, जिसमें शिकायतकर्ता अपना विरोध दर्ज करता है। BNSS ने एक मजिस्ट्रेट को पुलिस से अधिक शक्तिशाली बनाया है। सहिंता में कुछ ऐसे प्रावधान किए गए हैं जहां पर पुलिस की मनमर्जी चल पाना मुश्किल होती है। अगर कोई शिकायतकर्ता व्यथित है तब जिस कोर्ट में पुलिस ने अपनी क्लोजर या फाइनल रिपोर्ट प्रस्तुत की है उस ही कोर्ट में शिकायतकर्ता प्रोटेस्ट पिटिशन लगा सकता है।
इस प्रोटेस्ट पिटिशन में शिकायतकर्ता को कोर्ट की जानकारी, एफआईआर की जानकारी, जो सबूत शिकायतकर्ता के पास उपलब्ध है उसकी जानकारी और पुलिस द्वारा अन्वेषण में जो चूक की गई है उसकी जानकारी लिखकर कोर्ट के समक्ष पेश करना होती है। कोर्ट ऐसी जानकारी मिलने के बाद चार प्रकार के कदम उठा सकता है जिस के संबंध में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं।
अगर किसी मामले में पुलिस द्वारा क्लोजर रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है। फिर शिकायतकर्ता द्वारा प्रोटेस्ट पिटिशन दाखिल की जाती है, ऐसी स्थिति में एक मजिस्ट्रेट के पास में कुछ शक्तियां होती हैं।
अगर पुलिस क्लोजर रिपोर्ट प्रस्तुत करती है तब शिकायतकर्ता को मजिस्ट्रेट द्वारा एक नोटिस जारी किया जाता है। इस नोटिस में इस बात का उल्लेख होता है कि जिस प्रकरण की आपके द्वारा एफआईआर दर्ज की गई है उस प्रकरण में पुलिस को कोई सबूत नहीं मिले हैं। जिन लोगों के नाम पर एफआईआर दर्ज की गई थी उन लोगों को मामले में आरोपी नहीं बनाया जा रहा है। यदि आपको इस बात पर कोई आपत्ति हो तो कोर्ट में प्रस्तुत होकर अपनी आपत्ति रखें।
अगर शिकायतकर्ता को किसी प्रकार से कोई आपत्ति नहीं है तब मजिस्ट्रेट ऐसी क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार कर लेता है और अपना आदेश पारित कर देता है। लेकिन शिकायतकर्ता अपनी ओर से कोई आपत्ति प्रस्तुत करता है तब मजिस्ट्रेट के पास दूसरी भी शक्तियां है।
शिकायतकर्ता द्वारा प्रोटेस्ट पिटिशन दाखिल करने पर मजिस्ट्रेट मामले में संज्ञान लेता है। धारा 210 के अधीन मजिस्ट्रेट संज्ञान लेकर आरोपियों के विरुद्ध वारंट जारी कर देता है। पुलिस को उनकी गिरफ्तारी करने के दिशा निर्देश देता है और मामले में जांच बैठा देता है। इस जांच में यह देखा जाता है कि पुलिस द्वारा जो क्लोजर रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है क्या वे न्याय के बिंदु पर सही है या फिर अन्वेषण में किसी प्रकार की कोई चूक की गई है। कहीं जानबूझकर आरोपियों को बचाया तो नहीं गया है।
धारा 210 के अधीन मजिस्ट्रेट संज्ञान करने के बाद पुलिस को फिर से अनुसंधान करने तथा फिर चालान प्रस्तुत करने हेतु निर्देशित कर सकता है। मजिस्ट्रेट अपनी जांच में अगर यह पता है कि पुलिस द्वारा अनुसंधान करने में किसी प्रकार की कोई चूक की गई है तब वह पुलिस अधिकारियों को यह निर्देशित करता है कि वह अनुसंधान फिर से करें और अनुसंधान के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करें। इस स्थिति में मजिस्ट्रेट गवाहों को बुलाकर उनके बयान भी दर्ज कर सकता है।
कोई भी मजिस्ट्रेट क्लोजर रिपोर्ट प्रस्तुत होने पर फिर प्रोटेस्ट पिटिशन दाखिल होने पर गवाहों को बुलाकर स्वयं भी उनके बयान दर्ज कर सकता है। इस स्तर पर मजिस्ट्रेट एक प्रकार से सारे मामले को खोल कर देखता है। अगर पुलिस ने बयानों में किसी प्रकार की कोई चुक की है तब मजिस्ट्रेट उन बयानों को देने वाले गवाहों को बुलाकर अपने समक्ष बयान दर्ज कर सकता है। ऐसे बयान विचारण के दौरान लिए गए बयान नहीं माने जाते हैं किंतु इन बयानों के आधार पर मजिस्ट्रेट पुलिस को पुनः अनुसंधान करने का आदेश कर देता है।
साधारण तौर पर यह देखा जाता है कि मजिस्ट्रेट सभी मामलों में क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार नहीं करता है और पुलिस को अनुसंधान कर चालान पेश करने का निर्देश देता है। अनेक मामले ऐसे भी होते हैं जहां पर झूठी एफआईआर दर्ज करवाई जाती है वहां मजिस्ट्रेट मामले की परिस्थितियों को देखकर क्लोजर रिपोर्ट स्वीकार भी कर लेता है। लेकिन प्रोटेस्ट पिटीशन आने के बाद मामले में जांच करने के बाद अपना कोई निर्णय भी दे सकता है।