भारतीय सेना में महिला अधिकारियों के स्थायी कमीशन का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट केकर्नल नितीशा फैसले का संवैधानिक विश्लेषण
लेफ्टिनेंट कर्नल नितीशा और अन्य बनाम भारत संघ मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय सेना में लिंग समानता (Gender Equality) का मुद्दा उठाया। यह मामला महिला शॉर्ट सर्विस कमीशन (WSSC) अधिकारियों के स्थायी कमीशन (Permanent Commission, PC) पाने के अधिकार से जुड़ा था।
यह केस 2020 में सेक्रेटरी, मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस बनाम बबीता पूनिया के फैसले के बाद महत्वपूर्ण हो गया था, जिसमें कोर्ट ने महिला अधिकारियों को पुरुष अधिकारियों के समान शर्तों पर स्थायी कमीशन देने का आदेश दिया था। इस मामले में महिला अधिकारियों ने बबीता पूनिया के फैसले के कार्यान्वयन में हो रही असमानताओं और भेदभावपूर्ण प्रक्रियाओं को चुनौती दी।
सुप्रीम कोर्ट का लेफ्टिनेंट कर्नल नितीशा और अन्य बनाम भारत संघ में दिया गया फैसला भारतीय सेना में लैंगिक समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कोर्ट ने महिला अधिकारियों के साथ किए गए प्रणालीगत भेदभाव को संबोधित किया और संविधान में दिए गए समानता, गैर-भेदभाव और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों की पुष्टि की।
यह फैसला न केवल याचिकाकर्ताओं के लिए, बल्कि सेना में सेवा करने वाली सभी महिला अधिकारियों के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है, क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि उन्हें पुरुषों के समान स्थायी कमीशन पाने का अधिकार है।
मामले के तथ्य (Facts of the Case)
यह विवाद सुप्रीम कोर्ट के 2020 के बबीता पूनिया फैसले के बाद शुरू हुआ, जिसमें कोर्ट ने यह फैसला दिया था कि महिला अधिकारियों को सभी युद्ध और गैर-युद्ध भूमिकाओं में पुरुषों के समान स्थायी कमीशन का अधिकार होना चाहिए। हालांकि, याचिकाकर्ताओं का दावा था कि सरकार इस फैसले को सही तरीके से लागू नहीं कर रही है और कई महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने से इनकार किया जा रहा है।
उन्होंने आरोप लगाया कि चिकित्सा फिटनेस (Medical Fitness) और वार्षिक गोपनीय रिपोर्टों (Annual Confidential Reports, ACRs) जैसे मानदंडों का इस्तेमाल करके भेदभावपूर्ण तरीके से PC से वंचित किया जा रहा है। याचिकाकर्ताओं ने सरकारी प्रक्रियाओं में देरी और पुराने चिकित्सा मानदंडों के आधार पर महिला अधिकारियों के साथ हो रहे भेदभाव को चुनौती दी।
संविधान से जुड़े प्रमुख प्रावधान (Constitutional Provisions Involved)
यह मामला संविधान के कई महत्वपूर्ण प्रावधानों के इर्द-गिर्द घूमता है, जो समानता और मौलिक अधिकारों की रक्षा करते हैं:
1. अनुच्छेद 14 – समानता का अधिकार (Right to Equality)
अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण की गारंटी देता है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि महिला और पुरुष अधिकारियों के बीच अलग-अलग व्यवहार उनके समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
2. अनुच्छेद 16 – सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर (Equality of Opportunity in Public Employment)
अनुच्छेद 16 सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर सुनिश्चित करता है। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि पुराने चिकित्सा मानदंडों और ACRs में भेदभावपूर्ण मूल्यांकन के आधार पर महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने से इनकार करना इस प्रावधान का उल्लंघन है।
3. अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा (Protection of Life and Personal Liberty)
याचिकाकर्ताओं ने अनुच्छेद 21 का हवाला दिया, यह तर्क देते हुए कि उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सेना में सेवा करने का अधिकार पुरानी और भेदभावपूर्ण प्रक्रियाओं के कारण बाधित हो रहा है।
उठाए गए प्रमुख मुद्दे (Key Issues Raised)
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कई मुद्दे प्रस्तुत किए गए:
1. महिला अधिकारियों के लिए चिकित्सा फिटनेस के मानदंड (Medical Fitness Criteria for Women Officers)
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि महिला अधिकारियों का मूल्यांकन कठोर चिकित्सा फिटनेस मानदंडों के आधार पर किया जा रहा था, जो आमतौर पर युवा पुरुष अधिकारियों के लिए लागू होते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि प्रसव के बाद महिलाओं में होने वाले शारीरिक बदलावों को ध्यान में नहीं रखा गया और इन्हीं कारणों से उन्हें स्थायी कमीशन से वंचित किया जा रहा था।
2. वार्षिक गोपनीय रिपोर्टों में पूर्वाग्रह (Bias in Annual Confidential Reports, ACRs)
याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि उनकी ACRs को पुरुष अधिकारियों की तुलना में गंभीरता से नहीं लिया गया। चूंकि महिला अधिकारियों को पहले स्थायी कमीशन के लिए नहीं माना जाता था, इसलिए उनकी ACRs को करियर विकास के दीर्घकालिक नजरिए से नहीं भरा गया, जिससे उनके स्थायी कमीशन पाने के अवसर कम हो गए।
3. बबीता पूनिया फैसले का भेदभावपूर्ण कार्यान्वयन (Discriminatory Implementation of Babita Puniya Judgment)
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के 2020 के बबीता पूनिया फैसले को ईमानदारी से लागू नहीं किया है। उनका दावा था कि स्थायी कमीशन देने के लिए जो मानदंड थे, उन्हें समान रूप से लागू नहीं किया जा रहा था और भेदभाव अभी भी मौजूद था।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण (Supreme Court's Analysis)
1. चिकित्सा फिटनेस और आयु-संबंधी भेदभाव (Medical Fitness and Age-Related Discrimination)
कोर्ट ने स्वीकार किया कि SHAPE-1 जैसे चिकित्सा मानदंड (जो मानसिक, सुनने, अंग संचालन, शारीरिक क्षमता और दृष्टि को मापते हैं) सेना में फिटनेस का आकलन करने के लिए आवश्यक हैं। हालांकि, कोर्ट ने महिला अधिकारियों पर वही मानदंड लागू करने की आलोचना की जो आमतौर पर पुरुष अधिकारियों पर लागू होते हैं। कोर्ट ने कहा कि चिकित्सा मानदंड व्यावहारिक होने चाहिए और महिला अधिकारियों के प्राकृतिक शारीरिक परिवर्तनों के कारण उन्हें नुकसान नहीं होना चाहिए।
2. प्रणालीगत भेदभाव और ACRs (Systemic Discrimination and ACRs)
कोर्ट ने पाया कि महिला अधिकारियों के साथ वाकई प्रणालीगत भेदभाव किया गया था। चूंकि पहले महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन के लिए नहीं माना जाता था, इसलिए उनकी ACRs को उसी गंभीरता से नहीं भरा गया। कोर्ट ने कहा कि ACRs के मूल्यांकन में निष्पक्षता होनी चाहिए और महिलाओं के साथ पूर्वाग्रह (Bias) नहीं होना चाहिए।
3. बबीता पूनिया फैसले का कार्यान्वयन (Implementation of Babita Puniya Judgment)
कोर्ट ने भारत सरकार की आलोचना की कि उसने बबीता पूनिया फैसले को पूरी तरह से लागू नहीं किया। कोर्ट ने नोट किया कि सरकार ने महिलाओं को स्थायी कमीशन देने के लिए कुछ कदम उठाए थे, लेकिन कई बाधाएं, जैसे भेदभावपूर्ण चिकित्सा मानदंड और मूल्यांकन प्रक्रिया, अभी भी मौजूद थीं। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि इन मुद्दों को ठीक किया जाए और महिला अधिकारियों को समान रूप से स्थायी कमीशन दिया जाए।
निर्णय (Judgment)
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में निर्णायक फैसला दिया। कोर्ट ने कहा कि महिला अधिकारियों के साथ किया गया भेदभाव संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 का उल्लंघन करता है।
कोर्ट ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण घोषणाएँ कीं:
1. चिकित्सा मानदंडों का लिंग-निरपेक्ष उपयोग (Gender-Neutral Application of Medical Standards)
कोर्ट ने सेना को निर्देश दिया कि वह महिला अधिकारियों के लिए चिकित्सा मानदंडों का पुनर्मूल्यांकन करे। कोर्ट ने माना कि महिला अधिकारियों के लिए वही शारीरिक फिटनेस मानदंड लागू नहीं हो सकते जो युवा पुरुष अधिकारियों के लिए होते हैं। सेना को निर्देश दिया गया कि वह महिलाओं की चिकित्सा जांच में उनके शारीरिक पहलुओं का ध्यान रखे।
2. ACRs का निष्पक्ष मूल्यांकन (Fair Assessment of ACRs)
कोर्ट ने सेना को महिला अधिकारियों की ACRs का निष्पक्ष दृष्टिकोण से पुनर्मूल्यांकन करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि ACRs में ऐतिहासिक भेदभाव को दूर किया जाना चाहिए और एक निष्पक्ष मूल्यांकन प्रणाली लागू की जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि महिला अधिकारियों के योगदान को बिना किसी पूर्वाग्रह के मापा जाना चाहिए।
3. बबीता पूनिया फैसले का पूर्ण कार्यान्वयन (Full Implementation of Babita Puniya Judgment)
कोर्ट ने कहा कि बबीता पूनिया फैसले को पूरी तरह से लागू किया जाना चाहिए। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि जो महिला अधिकारी स्थायी कमीशन के लिए पात्र हैं, उन्हें मनमाने मानदंडों के आधार पर इससे वंचित न किया जाए। कोर्ट ने जोर दिया कि महिला अधिकारियों को करियर में वही अवसर दिए जाने चाहिए जो पुरुष अधिकारियों को मिलते हैं।