पर्याप्त और अपर्याप्त सबूत होने पर जांच का परिणाम रिपोर्ट करना : BNSS, 2023 की धारा 188 से 190
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, जो दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) की जगह आई है, 1 जुलाई 2024 को लागू हो गई। इस संहिता की धारा 188, 189, और 190 पुलिस द्वारा की गई जांच के बाद की प्रक्रिया का वर्णन करती हैं। ये धाराएँ जांच अधिकारियों की जिम्मेदारियों, आरोपी की रिहाई की शर्तों, और मजिस्ट्रेट (Magistrate) की भूमिका को विस्तार से समझाती हैं। नीचे इन धाराओं का सरल हिंदी में विस्तृत वर्णन दिया गया है, जिसमें उदाहरणों के साथ समझाया गया है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 188 से 190 यह सुनिश्चित करती हैं कि जांच के बाद पुलिस और मजिस्ट्रेट के बीच एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया हो। ये प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि जांच का परिणाम उचित तरीके से रिपोर्ट किया जाए, आरोपी को पर्याप्त सबूत न मिलने पर रिहा किया जाए, और यदि सबूत पर्याप्त हों, तो उसे मजिस्ट्रेट के पास भेजा जाए। सबूतों और गवाहों को ठीक से अदालत में प्रस्तुत करने की अनिवार्यता न्याय प्रणाली को और अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष बनाती है।
धारा 188: जांच का परिणाम रिपोर्ट करना (Reporting the Result of Investigation)
इस धारा के अनुसार, जब कोई अधीनस्थ पुलिस अधिकारी इस अध्याय के तहत कोई जांच करता है, तो उसे उस जांच का परिणाम पुलिस स्टेशन (Police Station) के प्रभारी अधिकारी को रिपोर्ट करना अनिवार्य है। यह सुनिश्चित करता है कि जांच के निष्कर्षों का औपचारिक रिकॉर्ड हो और प्रभारी अधिकारी कानून के अनुसार अगले कदम उठा सके।
उदाहरण:
मान लीजिए कि चोरी की एक घटना होती है और उसकी जांच किसी निचले स्तर के अधिकारी द्वारा की जाती है। जांच पूरी होने के बाद, अधिकारी अपने निष्कर्ष पुलिस स्टेशन के प्रभारी को सौंपेगा। अगर सबूत पर्याप्त नहीं हैं, तो आगे कोई कार्रवाई नहीं हो सकती, लेकिन यदि पर्याप्त सबूत मिलते हैं, तो आरोपी को मजिस्ट्रेट के पास भेजने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
धारा 189: अपर्याप्त सबूत होने पर आरोपी की रिहाई (Release of Accused in Case of Insufficient Evidence)
धारा 189 कहती है कि अगर जांच के बाद पुलिस स्टेशन का प्रभारी अधिकारी यह पाता है कि पर्याप्त सबूत या संदेह के आधार नहीं हैं ताकि आरोपी को मजिस्ट्रेट के पास भेजा जा सके, तो अगर आरोपी हिरासत (Custody) में है, तो उसे रिहा कर दिया जाएगा। लेकिन रिहाई से पहले आरोपी को एक बांड (Bond) या जमानत बांड (Bail Bond) पर हस्ताक्षर करना होगा, जिसमें वह मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित होने का वादा करेगा। यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि सबूतों की कमी के कारण निर्दोष व्यक्ति को अनावश्यक रूप से हिरासत में न रखा जाए, लेकिन भविष्य में आवश्यक होने पर उसकी उपस्थिति सुनिश्चित की जा सके।
उदाहरण:
एक व्यक्ति पर मामूली सार्वजनिक शांति भंग (Public Disturbance) का आरोप है। जांच के बाद, अधिकारी पाता है कि सबूत कमजोर हैं। इस स्थिति में, आरोपी को जमानत पर रिहा किया जा सकता है, लेकिन उसे यह वादा करना होगा कि वह मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित होगा यदि आगे की कार्रवाई की आवश्यकता हुई।
धारा 190: पर्याप्त सबूत होने पर कार्रवाई (Procedure When Evidence is Sufficient)
अगर जांच में पर्याप्त सबूत या संदेह की उचित आधार मिले, तो धारा 190 के तहत, पुलिस स्टेशन का प्रभारी अधिकारी आरोपी को मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा, जो कि आरोपी पर लगे आरोपों की सुनवाई (Trial) करने या उसे मुकदमे (Trial) के लिए भेजने का अधिकार रखता है। अगर अपराध जमानतीय (Bailable) है और आरोपी जमानत (Bail) देने के लिए सक्षम है, तो अधिकारी उससे जमानत लेकर उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने का आदेश देगा। अगर आरोपी हिरासत में नहीं है, तो पुलिस अधिकारी उससे सुरक्षा के तौर पर बांड लेगा, ताकि वह मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित हो।
उपधारा (1): आरोपी को भेजना या सुरक्षा लेना (Forwarding Accused or Taking Security)
अगर पर्याप्त सबूत मिलते हैं और अपराध गैर-जमानतीय (Non-bailable) है, तो आरोपी को मजिस्ट्रेट के पास भेजा जाएगा। यदि अपराध जमानतीय है, तो आरोपी से जमानत ली जा सकती है और उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश होने के लिए रिहा किया जा सकता है।
उदाहरण:
मान लें कि किसी व्यक्ति पर हमला (Assault) का आरोप है। यदि जांच में पर्याप्त सबूत मिलते हैं, तो आरोपी को मजिस्ट्रेट के पास भेजा जाएगा या अगर अपराध जमानतीय है और आरोपी जमानत दे सकता है, तो उसे जमानत पर रिहा किया जाएगा ताकि वह मजिस्ट्रेट के सामने उपस्थित हो सके।
उपधारा (2): सबूत और गवाहों को भेजना (Forwarding Evidence and Witnesses)
जब आरोपी को मजिस्ट्रेट के पास भेजा जाता है, तो जांच अधिकारी को कोई भी आवश्यक सबूत जैसे हथियार या दस्तावेज भी मजिस्ट्रेट के पास भेजने होंगे। साथ ही, अधिकारी उन गवाहों (Witnesses) को भी बुलाएगा जो मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित हो सकते हैं, ताकि वे मजिस्ट्रेट के सामने गवाही दे सकें।
उदाहरण:
यदि चोरी के मामले में चाकू एक सबूत के रूप में मिला है, तो पुलिस अधिकारी चाकू को मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा और उन गवाहों को भी बुलाएगा जिन्होंने चोरी होते देखा था। इन गवाहों से बांड पर हस्ताक्षर करवा लिया जाएगा कि वे अदालत में गवाही देने के लिए उपस्थित होंगे।
उपधारा (3): मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate) का उल्लेख (Mentioning Chief Judicial Magistrate in the Bond)
अगर बांड में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट का उल्लेख है, तो इसका मतलब यह है कि वह मामला उस मजिस्ट्रेट की अदालत में भेजा जाएगा, जहां से उसे जांच या सुनवाई के लिए किसी अन्य अदालत में भेजा जा सकता है। हालांकि, इस बदलाव की सूचना शिकायतकर्ता या गवाहों को पहले ही देनी होगी।
उदाहरण:
अगर बांड में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट का उल्लेख किया गया है, लेकिन मामला किसी दूसरी अदालत में स्थानांतरित हो जाता है, तो गवाहों को पहले से ही यह सूचित कर दिया जाएगा ताकि वे जान सकें कि उन्हें किस अदालत में पेश होना है।
उपधारा (4): बांड की कॉपी देना (Delivery of Copy of the Bond)
जब बांड पर हस्ताक्षर हो जाते हैं, तो एक प्रति उस व्यक्ति को दी जाएगी जिसने उस पर हस्ताक्षर किए हैं। फिर जांच अधिकारी मूल बांड को अपनी रिपोर्ट के साथ मजिस्ट्रेट के पास भेज देगा।
उदाहरण:
अगर आरोपी और उसके परिवार के सदस्यों ने बांड पर हस्ताक्षर किए हैं, तो परिवार के एक सदस्य को उस बांड की एक प्रति दी जाएगी। जांच अधिकारी फिर उस बांड को अपनी रिपोर्ट के साथ मजिस्ट्रेट को भेज देगा, जिसमें जांच के निष्कर्षों का विवरण होगा।