धारा 14 राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 के तहत किराया संशोधन की प्रक्रिया

Update: 2025-03-26 10:20 GMT
धारा 14 राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 के तहत किराया संशोधन की प्रक्रिया

राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 (Rajasthan Rent Control Act, 2001) में मकान मालिक (Landlord) और किरायेदार (Tenant) के अधिकारों को संतुलित करने के लिए स्पष्ट प्रावधान हैं। इस अधिनियम की धारा 14 में किराया संशोधन (Rent Revision) की प्रक्रिया बताई गई है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि किराए में कोई भी बदलाव उचित और पारदर्शी (Transparent) तरीके से किया जाए।

यदि मकान मालिक धारा 6 या धारा 7 के तहत किराया बढ़ाना चाहता है, तो उसे किराया अधिकरण (Rent Tribunal) में एक याचिका (Petition) दायर करनी होगी। इस प्रक्रिया में दोनों पक्षों को अपनी बात रखने का पूरा अवसर मिलता है, और किराया संशोधन एक निश्चित कानूनी फार्मूला (Legal Formula) के आधार पर किया जाता है।

किराया संशोधन के लिए याचिका दायर करने की प्रक्रिया (Filing a Petition for Rent Revision)

धारा 14 के तहत, यदि मकान मालिक किराया बढ़ाना चाहता है, तो उसे किराया अधिकरण में एक याचिका दायर करनी होगी। इस याचिका के साथ हलफनामे (Affidavits) और आवश्यक दस्तावेज़ (Documents) भी संलग्न करने होंगे, जो किराया बढ़ाने के कारणों को दर्शाते हों। हलफनामे में यह स्पष्ट रूप से लिखा होना चाहिए कि किराया क्यों बढ़ाया जाना चाहिए, जैसे—

• संपत्ति (Property) के बाजार मूल्य (Market Value) में वृद्धि

• मकान या दुकान में किए गए सुधार (Renovation)

• रखरखाव (Maintenance) का बढ़ता खर्च

उदाहरण के लिए, यदि मकान मालिक ने अपनी किराए की दुकान में नया फर्श (Flooring) और बिजली व्यवस्था (Electrical System) स्थापित करवाई है, तो वह किराया बढ़ाने के लिए याचिका दायर कर सकता है। इसके लिए उसे अपने सुधार कार्यों से संबंधित बिल (Bills), ठेकेदार (Contractor) के समझौते और अन्य प्रासंगिक दस्तावेज़ संलग्न करने होंगे।

किरायेदार को नोटिस जारी करने की प्रक्रिया (Issuance of Notice to the Tenant or Opposite Party)

जब याचिका दायर हो जाती है, तो किराया अधिकरण किरायेदार को नोटिस (Notice) जारी करता है। इस नोटिस में याचिका, हलफनामे और दस्तावेज़ों की प्रतियां (Copies) शामिल होती हैं। नोटिस जारी करने का उद्देश्य किरायेदार को किराया संशोधन की प्रक्रिया से अवगत कराना और उसे अपना जवाब देने का अवसर देना होता है।

नोटिस जारी होने की समय सीमा याचिका दायर करने के 30 दिनों के भीतर होती है। नोटिस निम्नलिखित तरीकों से किरायेदार तक पहुंचाया जाता है—

1. न्यायालय (Tribunal) के प्रक्रिया सर्वर (Process Server) द्वारा – एक अधिकृत अधिकारी व्यक्तिगत रूप से नोटिस देता है।

2. पंजीकृत डाक (Registered Post) द्वारा, रसीद सहित (Acknowledgement Due) – यह एक आधिकारिक डाक सेवा है, जिसमें प्राप्तकर्ता (Recipient) से पुष्टि ली जाती है।

यदि नोटिस इन तरीकों में से किसी से भी दिया जाता है, तो इसे वैध (Valid) माना जाएगा। इसका अर्थ यह है कि यदि किरायेदार नोटिस लेने से मना कर देता है, तब भी न्यायालय इसे पर्याप्त सूचना (Sufficient Service) मान सकता है और आगे की कार्रवाई कर सकता है।

किरायेदार द्वारा जवाब प्रस्तुत करना (Filing of Reply by the Opposite Party)

नोटिस मिलने के बाद, किरायेदार को एक निश्चित समय सीमा के भीतर जवाब देने का अधिकार होता है। उसे नोटिस प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर अपने जवाब के साथ हलफनामे और दस्तावेज़ प्रस्तुत करने होंगे।

उदाहरण के लिए, यदि किरायेदार को लगता है कि मकान मालिक का दावा झूठा या अनुचित (Unfair) है, तो वह दस्तावेज़ों के माध्यम से अपनी बात रख सकता है। यदि मकान मालिक ने कहा है कि उसने बड़ी मरम्मत करवाई है, लेकिन किरायेदार के पास मरम्मत से पहले और बाद की तस्वीरें हैं, जिससे कोई बड़ा परिवर्तन नहीं दिखता, तो वह इन्हें अपने जवाब के साथ प्रस्तुत कर सकता है।

मकान मालिक द्वारा प्रत्युत्तर दायर करना (Petitioner's Rejoinder to the Reply)

जब मकान मालिक को किरायेदार का जवाब प्राप्त हो जाता है, तो उसे भी अपनी बात रखने का अवसर मिलता है। मकान मालिक अपने जवाब के समर्थन में एक प्रत्युत्तर (Rejoinder) दाखिल कर सकता है। यह प्रत्युत्तर किरायेदार के जवाब प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर दायर किया जाना चाहिए।

उदाहरण के लिए, यदि किरायेदार ने दावा किया कि मकान में कोई सुधार नहीं हुआ, लेकिन मकान मालिक के पास मरम्मत के बिल हैं, तो वह इन्हें अपने प्रत्युत्तर में पेश कर सकता है।

सुनवाई की तारीख तय करना (Fixing of Hearing Date by the Rent Tribunal)

जब दोनों पक्षों ने अपने-अपने जवाब और प्रत्युत्तर दाखिल कर दिए हों, तो किराया अधिकरण मामले की सुनवाई (Hearing) की तारीख तय करता है। यह तारीख नोटिस जारी होने के 90 दिनों के भीतर होनी चाहिए।

सुनवाई के दौरान, दोनों पक्षों को अपने तर्क (Arguments) पेश करने का पूरा अवसर मिलता है। न्यायालय यदि आवश्यक समझे, तो वह अतिरिक्त दस्तावेज़ या गवाह (Witness) मांग सकता है।

संक्षिप्त जांच और किराया निर्धारण (Summary Inquiry and Determination of Rent)

किराया अधिकरण के पास संक्षिप्त जांच (Summary Inquiry) करने का अधिकार होता है। इसका मतलब है कि मामले की लंबी सुनवाई किए बिना न्यायालय आवश्यक साक्ष्यों (Evidence) को देखकर निष्कर्ष निकाल सकता है। अधिकरण धारा 6 या धारा 7 में दिए गए कानूनी फार्मूले के अनुसार किराया तय करेगा।

उदाहरण के लिए, यदि धारा 6 के तहत यह निर्धारित है कि हर 5 साल में किराया एक निश्चित प्रतिशत (Fixed Percentage) से बढ़ सकता है, तो अधिकरण इसी फार्मूले के अनुसार नया किराया तय करेगा।

वसूली प्रमाण पत्र जारी करना (Issuance of Recovery Certificate)

यदि अधिकरण तय करता है कि किराया बढ़ाया जाना चाहिए, तो वह एक वसूली प्रमाण पत्र (Recovery Certificate) जारी करेगा। इस प्रमाण पत्र में यह स्पष्ट रूप से लिखा होगा कि नया किराया कब से लागू होगा।

उदाहरण के लिए, यदि अधिकरण ने 1 जनवरी 2024 से ₹10,000 के स्थान पर ₹13,500 किराया तय किया है, तो किरायेदार को इस तिथि से नया किराया देना होगा। यदि किरायेदार भुगतान नहीं करता, तो मकान मालिक इस प्रमाण पत्र के आधार पर कानूनी कार्रवाई कर सकता है।

याचिका का निपटारा करने की समय सीमा (Timeframe for Disposal of the Petition)

धारा 14 के अनुसार, पूरी प्रक्रिया नोटिस जारी होने के 150 दिनों के भीतर पूरी हो जानी चाहिए।

अगर मामला 150 दिनों से अधिक लंबा खिंचता है, तो पक्षकार (Parties) उच्च न्यायालय (High Court) में अपील कर सकते हैं।

राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 की धारा 14 मकान मालिकों को किराया संशोधन के लिए कानूनी प्रक्रिया प्रदान करती है। यह प्रक्रिया किरायेदारों को भी उचित सुनवाई का अवसर देती है, जिससे किराया वृद्धि निष्पक्ष और पारदर्शी बनी रहती है। सुनवाई की पूरी प्रक्रिया एक निश्चित समय सीमा में पूरी की जाती है, ताकि अनावश्यक देरी न हो। यह कानून मकान मालिक और किरायेदार दोनों के अधिकारों की रक्षा करता है और विवादों को न्यायपूर्ण तरीके से सुलझाने में मदद करता है।

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