बलात्कार पीड़िता के मेडिकल जांच की प्रक्रिया - भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 184 का विश्लेषण

Update: 2024-09-12 11:58 GMT

परिचय: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023), जो 1 जुलाई 2024 से लागू हुई और जिसने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) को बदल दिया है, धारा 184 के अंतर्गत बलात्कार या बलात्कार के प्रयास से संबंधित मामलों में पीड़िता के चिकित्सा परीक्षण (Medical Examination) की प्रक्रिया निर्धारित करती है। इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पीड़िता के अधिकारों और गरिमा का सम्मान करते हुए जांच हो और उसे न्याय मिल सके। यहां हम धारा 184 के सभी प्रावधानों को सरल हिंदी में समझेंगे ताकि कोई भी इसे आसानी से समझ सके।

बलात्कार पीड़िता का चिकित्सा परीक्षण - धारा 184(1)

जब पुलिस बलात्कार या बलात्कार के प्रयास की जांच कर रही होती है और यह आवश्यक होता है कि पीड़िता का चिकित्सा परीक्षण किया जाए, तो यह परीक्षण किसी पंजीकृत चिकित्सा प्रैक्टिशनर (Registered Medical Practitioner) द्वारा किया जाना चाहिए। यह प्रैक्टिशनर किसी सरकारी अस्पताल या स्थानीय प्राधिकरण (Local Authority) द्वारा संचालित अस्पताल में होना चाहिए। यदि ऐसे चिकित्सक उपलब्ध नहीं हैं, तो कोई अन्य पंजीकृत चिकित्सा प्रैक्टिशनर यह परीक्षण कर सकता है।

हालांकि, यह परीक्षण तभी किया जा सकता है जब पीड़िता की सहमति (Consent) हो। यदि पीड़िता अपनी स्थिति (जैसे कि बेहोशी या मानसिक अस्थिरता) के कारण सहमति देने में असमर्थ है, तो उसके स्थान पर कोई सक्षम व्यक्ति (Competent Person) यह सहमति दे सकता है। इसके अलावा, इस अपराध की सूचना मिलने के 24 घंटों के भीतर पीड़िता को चिकित्सा परीक्षण के लिए भेजा जाना चाहिए।

उदाहरण के लिए, यदि सुबह 10 बजे किसी महिला द्वारा बलात्कार की सूचना दी जाती है, तो पुलिस को सुनिश्चित करना होगा कि अगले दिन सुबह 10 बजे तक उसका परीक्षण किसी योग्य डॉक्टर द्वारा किया जाए।

 मेडिकल रिपोर्ट में आवश्यक विवरण - धारा 184(2)

रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर (Registered Medical Practitioner) जो पीड़िता का परीक्षण करता है, उसे परीक्षण के बाद एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करनी होगी। इस रिपोर्ट में कुछ विशेष जानकारी शामिल करनी होती है ताकि जांच स्पष्ट और पारदर्शी हो सके।

रिपोर्ट में निम्नलिखित जानकारी होनी चाहिए:

• पीड़िता का नाम और पता, और जिस व्यक्ति ने उसे डॉक्टर के पास लाया, उसका नाम और पता।

• पीड़िता की आयु।

• डीएनए प्रोफाइलिंग (DNA Profiling) के लिए पीड़िता के शरीर से एकत्रित सामग्री का विवरण।

• यदि पीड़िता के शरीर पर कोई चोट के निशान हैं, तो उनका विवरण।

• पीड़िता की सामान्य मानसिक स्थिति, जिससे यह समझा जा सके कि उसने किस प्रकार की मानसिक यातना झेली है।

• अन्य महत्वपूर्ण विवरण जो मामले से संबंधित हो सकते हैं।

उदाहरण के लिए, यदि पीड़िता के शरीर पर किसी प्रकार के घाव या चोट के निशान हैं, तो डॉक्टर को यह रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से लिखना होगा।

निष्कर्षों का विवरण - धारा 184(3)

चिकित्सा रिपोर्ट में केवल निष्कर्ष ही नहीं दिए जाने चाहिए, बल्कि प्रत्येक निष्कर्ष के पीछे के कारण भी स्पष्ट होने चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर डॉक्टर यह निष्कर्ष निकालता है कि पीड़िता के शरीर पर चोट के निशान हैं जो शारीरिक हमले का संकेत देते हैं, तो रिपोर्ट में यह बताया जाना चाहिए कि किस प्रकार की चोटें मिलीं और क्यों वे शारीरिक हमले का संकेत देती हैं।

परीक्षण के लिए सहमति - धारा 184(4)

रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट रूप से दर्ज होना चाहिए कि पीड़िता या उसकी ओर से सक्षम व्यक्ति से चिकित्सा परीक्षण के लिए सहमति ली गई थी। सहमति इस कानून का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और बिना सहमति के कोई भी परीक्षण नहीं किया जा सकता। इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पीड़िता की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाए।

उदाहरण के लिए, यदि पीड़िता परीक्षण कराने से इनकार करती है, तो डॉक्टर को यह भी रिपोर्ट में लिखना होगा कि परीक्षण नहीं किया गया क्योंकि पीड़िता ने मना कर दिया।

परीक्षण का समय - धारा 184(5)

मेडिकल जांच कब शुरू हुआ और कब पूरा हुआ, इसका सटीक समय भी रिपोर्ट में दर्ज किया जाना चाहिए। इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि परीक्षा कितनी देर तक चली, इसका रिकॉर्ड हो, ताकि भविष्य में जांच या कानूनी प्रक्रिया में इसका संदर्भ लिया जा सके।

उदाहरण के लिए, यदि परीक्षण दोपहर 3 बजे शुरू हुआ और 4 बजे समाप्त हुआ, तो डॉक्टर को रिपोर्ट में इन समयों को सही-सही दर्ज करना होगा।

रिपोर्ट की अधिकारी को प्रेषण (Submission) - धारा 184(6)

जब चिकित्सा परीक्षण पूरा हो जाए, तो रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर (Registered Medical Practitioner) को यह रिपोर्ट सात दिनों के भीतर जांच अधिकारी (Investigating Officer) को भेजनी होगी। जांच अधिकारी इस रिपोर्ट को धारा 193 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट को भेजेगा, ताकि यह रिपोर्ट मामले के दस्तावेज़ों में शामिल हो सके।

उदाहरण के लिए, अगर चिकित्सा परीक्षण 10 जुलाई को होता है, तो डॉक्टर को 17 जुलाई तक रिपोर्ट जांच अधिकारी को भेजनी होगी, और फिर जांच अधिकारी इसे मजिस्ट्रेट को भेजेगा।

सहमति के बिना कोई परीक्षण नहीं - धारा 184(7)

धारा 184 स्पष्ट करती है कि इस प्रावधान में कुछ भी ऐसा नहीं है जो पीड़िता की सहमति के बिना परीक्षण को वैध (Lawful) बना सके। इसका मतलब यह है कि अगर पीड़िता सहमति नहीं देती है, तो कोई भी परीक्षण जबरन नहीं किया जा सकता। यह प्रावधान पीड़िता के अधिकारों की रक्षा करता है और सुनिश्चित करता है कि चिकित्सा परीक्षण की प्रक्रिया नैतिक और मानवीय बनी रहे।

धारा 184 में प्रयुक्त शब्दों का स्पष्टीकरण (Explanation)

धारा 184 में "परीक्षण" (Examination) और "पंजीकृत चिकित्सा प्रैक्टिशनर" (Registered Medical Practitioner) के वही अर्थ हैं जो धारा 51 में दिए गए हैं। "पंजीकृत चिकित्सा प्रैक्टिशनर" से तात्पर्य एक ऐसे डॉक्टर से है जो कानूनी रूप से योग्य हो और चिकित्सा प्रैक्टिस (Medical Practice) करने के लिए लाइसेंस प्राप्त हो। "परीक्षण" का मतलब उस चिकित्सा जांच से है, जो यह निर्धारित करने के लिए की जाती है कि पीड़िता के शरीर या मानसिक स्थिति पर कोई चोट या आघात (Trauma) है या नहीं।

पीड़िता के अधिकारों की रक्षा के लिए उठाए गए कदम

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 184 यह सुनिश्चित करती है कि बलात्कार या बलात्कार के प्रयास से संबंधित मामलों में पीड़िता के अधिकारों का सम्मान हो। यह कानून चिकित्सा परीक्षण को केवल पीड़िता की सहमति के आधार पर करवाने पर जोर देता है, चिकित्सा रिपोर्टिंग प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करता है, और पीड़िता की गरिमा और गोपनीयता की रक्षा के लिए स्पष्ट निर्देश देता है।

धारा 184 यह सुनिश्चित करती है कि पीड़िता को न्याय मिले और उसकी गरिमा को बनाए रखा जाए। परीक्षण प्रक्रिया को सही समय सीमा में पूरा करने और योग्य डॉक्टर की देखरेख में यह सुनिश्चित किया जाता है कि पीड़िता को त्वरित न्याय मिले और उसके अधिकारों का पूरी तरह से सम्मान हो।

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