फैसले की घोषणा की प्रक्रिया – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 392

Update: 2025-03-19 11:38 GMT
फैसले की घोषणा की प्रक्रिया – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 392

किसी भी आपराधिक (Criminal) मामले में न्यायालय (Court) का अंतिम निर्णय फैसला (Judgment) होता है। यह फैसला यह तय करता है कि आरोपी (Accused) दोषी (Guilty) है या नहीं, और अगर दोषी है, तो उसे कौन सी सजा (Punishment) दी जाएगी।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 392 यह स्पष्ट करती है कि किसी भी आपराधिक मामले में न्यायालय को फैसले की घोषणा कैसे करनी चाहिए।

यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि फैसला खुले न्यायालय (Open Court) में सुनाया जाए ताकि सभी संबंधित पक्ष (Concerned Parties) को इसके बारे में जानकारी हो और न्याय की पारदर्शिता (Transparency) बनी रहे।

खुले न्यायालय में फैसले की घोषणा (Pronouncement of Judgment in Open Court)

धारा 392(1) के अनुसार, हर आपराधिक मामले का फैसला खुले न्यायालय में सुनाया जाना चाहिए।

फैसले की घोषणा या तो मुकदमे (Trial) के तुरंत बाद की जानी चाहिए या अधिकतम 45 दिनों के भीतर। यदि फैसला तुरंत नहीं सुनाया जा सकता, तो अदालत (Court) को सभी पक्षों को पहले से सूचना (Notice) देनी होगी कि फैसला किस दिन सुनाया जाएगा।

न्यायालय के पास फैसला सुनाने के तीन तरीके होते हैं –

1. पूरा फैसला सुनाना – जज (Judge) पूरा फैसला पढ़कर सुनाएगा।

2. पूरा फैसला पढ़कर सुनाना – न्यायालय बिना कोई अतिरिक्त व्याख्या (Explanation) किए पूरा फैसला पढ़ सकता है।

3. केवल निर्णय वाला भाग पढ़ना और संक्षिप्त व्याख्या देना – न्यायालय केवल निर्णय (Decision) सुनाएगा कि आरोपी दोषी है या नहीं और फैसले का सार (Substance) आरोपी या उसके वकील को समझा दिया जाएगा।

इस प्रक्रिया का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि फैसला स्पष्ट और समझने योग्य हो।

फैसले के दस्तावेज़ीकरण की प्रक्रिया (Process of Documenting the Judgment)

धारा 392(2) के अनुसार, यदि फैसला पूरा सुनाया गया है, तो इसे स्टेनोग्राफर (Stenographer) द्वारा शॉर्टहैंड (Shorthand) में लिखा जाएगा। इसके बाद, न्यायाधीश (Judge) को फैसले के प्रत्येक पृष्ठ (Page) पर हस्ताक्षर (Sign) करना होगा और फैसले की तारीख दर्ज करनी होगी।

इसी तरह, धारा 392(3) कहती है कि अगर फैसला पूरी तरह से पढ़कर या सिर्फ निर्णय वाला भाग पढ़कर सुनाया गया है, तो न्यायाधीश को खुले न्यायालय में हस्ताक्षर और तारीख दर्ज करनी होगी। अगर फैसला न्यायाधीश ने अपने हाथ से नहीं लिखा है, तो उसे प्रत्येक पृष्ठ पर हस्ताक्षर करने होंगे ताकि उसकी प्रमाणिकता (Authenticity) बनी रहे।

यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि फैसले के बाद कोई भी बदलाव नहीं किया जा सके और फैसला पूरी तरह से आधिकारिक हो।

पक्षकारों को फैसले की प्रति उपलब्ध कराना (Providing a Copy of the Judgment to the Parties)

धारा 392(4) यह कहती है कि यदि केवल फैसले का निष्कर्ष (Operative Part) पढ़कर सुनाया गया है, तो पूरी फैसले की प्रति (Copy) संबंधित पक्षों को मुफ्त में उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

इसके अलावा, इस धारा में एक आधुनिक डिजिटल प्रावधान (Digital Provision) जोड़ा गया है। अब, न्यायालय को यह सुनिश्चित करना होगा कि फैसला 7 दिनों के भीतर न्यायालय की आधिकारिक वेबसाइट (Portal) पर अपलोड कर दिया जाए।

यह न्यायपालिका (Judiciary) में पारदर्शिता (Transparency) और सुगमता (Accessibility) को बढ़ाने का एक बड़ा कदम है।

फैसले की घोषणा के समय आरोपी की उपस्थिति (Presence of the Accused During Judgment Pronouncement)

यदि आरोपी हिरासत (Custody) में हो

धारा 392(5) के अनुसार, अगर आरोपी जेल (Custody) में है, तो उसे न्यायालय में फैसले की घोषणा के समय लाया जाएगा। लेकिन अगर परिस्थिति कठिन है, तो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (Audio-Video Electronic Means) के माध्यम से भी आरोपी को पेश किया जा सकता है।

यदि आरोपी हिरासत में न हो

धारा 392(6) के अनुसार, अगर आरोपी जेल में नहीं है, तो उसे न्यायालय में उपस्थित होने के लिए कहा जाएगा ताकि वह फैसला सुन सके।

हालांकि, कुछ स्थितियों में, आरोपी को आने की जरूरत नहीं होती –

• अगर उसकी व्यक्तिगत उपस्थिति पूरी सुनवाई के दौरान माफ (Dispensed) कर दी गई हो।

• अगर सजा सिर्फ जुर्माने (Fine) तक सीमित हो।

• अगर आरोपी को बरी (Acquitted) कर दिया गया हो।

यदि एक मामले में एक से अधिक आरोपी (Multiple Accused) हैं और सभी आरोपी फैसले के दिन उपस्थित नहीं हो सकते, तो न्यायाधीश उनके बिना भी फैसला सुना सकता है ताकि अनावश्यक देरी न हो।

फैसले की वैधता (Validity of Judgment) और पक्षकारों की अनुपस्थिति का प्रभाव

धारा 392(7) यह सुनिश्चित करती है कि अगर किसी पक्षकार (Party) या उनके वकील की अनुपस्थिति (Absence) के कारण कोई फैसला सुनाया जाता है, तो वह अवैध (Invalid) नहीं माना जाएगा।

अगर किसी कारणवश अभियुक्त, वकील, या अभियोजन (Prosecution) पक्ष न्यायालय में मौजूद नहीं हो पाते, तो भी न्यायालय का फैसला वैध रहेगा।

यह भी स्पष्ट किया गया है कि अगर फैसले की सूचना देने में कोई गलती होती है, तो भी फैसला अवैध नहीं माना जाएगा।

अन्य कानूनी प्रावधानों पर कोई प्रभाव नहीं (No Effect on Other Legal Provisions)

धारा 392(8) स्पष्ट करती है कि यह धारा संहिता के अन्य प्रावधानों, विशेष रूप से धारा 511 को सीमित नहीं करती। इसका मतलब यह है कि यह धारा अन्य कानूनी प्रक्रियाओं पर कोई बाधा नहीं डालती।

उदाहरण (Illustrations) से समझें

उदाहरण 1: पूरा फैसला सुनाया गया

रामलाल पर चोरी (Theft) का मामला था। जज ने पूरा फैसला पढ़कर सुनाया, जिसमें उन्होंने विस्तार से समझाया कि रामलाल को क्यों दोषी ठहराया गया।

उदाहरण 2: केवल फैसला सुनाया गया

सीता पर धोखाधड़ी (Fraud) का आरोप था। अदालत ने केवल यह घोषणा की कि वह निर्दोष (Acquitted) है और इसके पीछे की वजहों को संक्षेप में समझाया।

उदाहरण 3: वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए फैसला सुनाना

अजय, जो एक खतरनाक अपराधी था, उच्च सुरक्षा जेल में था। अदालत ने उसे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए फैसला सुनाया।

उदाहरण 4: वकील की अनुपस्थिति के बावजूद फैसला वैध

मीना धोखाधड़ी के मामले में आरोपी थी, लेकिन फैसले के दिन उसका वकील उपस्थित नहीं था। फिर भी, अदालत ने फैसला सुना दिया और यह कानूनी रूप से वैध रहा।

उदाहरण 5: फैसला न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड किया गया

एक व्यापारी को वित्तीय धोखाधड़ी के मामले में दोषी पाया गया। अदालत ने आदेश दिया कि फैसले की प्रति 7 दिनों के भीतर वेबसाइट पर अपलोड कर दी जाए ताकि कोई भी इसे देख सके।

धारा 392 न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) की पारदर्शिता और सुगमता सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई है। इसमें फैसले की घोषणा, दस्तावेज़ीकरण, आरोपी की उपस्थिति, और फैसले की उपलब्धता जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को स्पष्ट रूप से बताया गया है।

यह प्रावधान आधुनिक तकनीकों (Modern Technologies) को अपनाते हुए भारतीय न्याय प्रणाली को और अधिक प्रभावी (Efficient) और न्यायसंगत (Just) बनाता है।

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