निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 32: विशेष क्रॉस किया चेक (धारा 124)

Update: 2021-09-29 08:49 GMT

परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) के अंतर्गत इससे पूर्व के आलेख में चेकों के रेखांकन से संबंधित प्रावधानों पर चर्चा की गई थी। चेकों का रेखांकन व्यापारिक व्यवहारों के लिए अत्यधिक आवश्यक होता है।

रेखांकन से चेक को लिखने वाले उसके लेखीवाल के आशय का आकलन किया जा सकता है तथा ऐसा रेखांकन बैंक को दिया जाने वाला एक निर्देश भी होता है। इस अधिनियम की धारा 124 विशेष प्रकार के क्रॉस किए हुए चेक के संबंध में प्रावधान प्रस्तुत करती है। इस आलेख के अंतर्गत अधिनियम की धारा 124 की विवेचना प्रस्तुत की जा रही है तथा विशेष क्रॉस चेक से संबंधित प्रावधानों पर प्रकाश डाला जा रहा है।

एक चेक विशेषत: रेखांकित कहा जाएगा जब दो समानान्तर रेखाओं के बीच किसी बैंक का नाम कुछ संक्षेपाक्षर शब्दों के साथ या बिना इसके बढ़ा दिया गया है अर्थात् जहाँ चेक का रेखांकन किसी बैंक के नाम से किया गया है। इस बैंक का नाम ऊपरवाल (बैंक) से भिन्न होगा।

विशेष रेखांकन के लक्षण-

(i) दो आड़ी समानान्तर रेखाओं को खींचना। हालांकि केवल बैंक का नाम एवं "एकाउन्ट पेयी" बिना इन रेखाओं के लिखना, विशेष रेखांकन होगा।

(ii) किसी विशेष बैंक का नाम लिखना आवश्यक है। बिना इन रेखाओं के किसी बैंक का नाम लिखना भी विशेष रेखांकन होगा।

(iii) 'परक्राम्य नहीं है" शब्दों को भी विशेष रेखांकन में जोड़ा जा सकता है।

रेखांकन का प्रभाव-

रेखांकन का मुख्य प्रयोजन चेक को उसके सही स्वामी के लिए सुरक्षा एवं संरक्षण प्रदान करना है। चूँकि ऐसे चेकों का संदाय बैंक के माध्यम से किया जाता है अत: यह अनधिकृत व्यक्तियों द्वारा चेक को प्राप्त करने और उसके नकदीकरण का खतरा कम हो जाता है। अनधिकृत व्यक्तियों को संदाय की दशा में इसे पता लगाना एवं अभिनिश्चित करने में सुविधा होती है।

रेखांकन के प्रभाव को स्पष्ट किया जा सकता है:-

(1) ऐसे चेकों का भुगतान बैंक के खिड़की पर नकद नहीं पाया जा सकता है। रेखांकन ऐसे चेकों ऐसे बैंकों के भुगतान के तरीके का निर्देश होता है।

अधिनियम की धारा 125 उपबन्धित करती है :-

(क) साधारणतः क्रास किए हुए चेक का संदाय-जहाँ कि चेक साधारणत: क्रास किया हुआ है, यहाँ यह बैंककार, जिस पर वह लिखा गया है, उसका संदाय किसी बैंककार को करने से अन्यथा नहीं करेगा।

(ख) विशेषतः क्रास किए हुए चैक का संदाय-जहाँ कि चेक विशेषतः क्रास किया हुआ है, वहाँ वह बैंककार, जिस पर वह लिखा गया है, उसका संदाय उस बैंककार को जिसके पक्ष में वह क्रास किया हुआ है, या संग्रह करने के लिए उसके अभिकर्ता को करने से अन्यथा नहीं करेगा।

(2) यदि क्रास चेक का संदाय क्रासिंग के उल्लंघन में किया जाता है, ऐसा संदाय-

(i) सम्यक् अनुक्रम में संदाय नहीं होता है।

(ii) भुगतानी बैंक विधिक संरक्षण का हकदार नहीं होगा।

(iii) भुगतानी बैंक लेखीवाल के प्रति हानि का उत्तरदायी होगा जो वह सहन करता है।

(iv) भुगतानी बैंक ऐसे संदाय को लेखीवाल के खाते से डेबिट नहीं कर सकता है।

(3) जहाँ चेक एक से अधिक बैंकों को विशेषत: क्रास किया गया है, सिवाय संग्रह करने के प्रयोजन के लिए अभिकर्ता को क्रास किया गया है, वह बैंककार, जिस पर यह लिखा गया है, उसका संदाय करने से इन्कार करेगा।

(4) "परक्राम्य नहीं है" शब्दों वाला साधारण या विशेष क्रास किए हुए चेक, लेने वाला व्यक्ति उस चेक पर उससे बेहतर हक न रखेगा और न देने के लिए समर्थ होगा जैसा उस व्यक्ति का था जिससे उसने उसे लिया है।

(5) "एकाउन्ट पेयी" क्रॉस प्रतिबन्धात्मक माना जाता है कि इसे पृष्ठांकित नहीं किया जा सकता है। इन शब्दों को वसूली बैंक के लिए निर्देश माना जाता है कि चैक को संग्रहीत धनराशि पाने वाले के खाते में ही जमा किया जाए।

(6) एक विशेष रेखांकन सामान्य रेखांकन से अधिक संरक्षण देता है।

(7) रेखांकन चेक का सारवान् भाग होता है एवं इसका मिटाना या परिवर्तन करना कूटरचना माना जाता है।

(8) क्रास करना चेक का तात्विक परिवर्तन नहीं माना जाता है, क्योंकि इसे अधिनियम द्वारा हो अनुज्ञात किया गया है।

क्रास चेक का तात्विक भाग-

प्रश्न है कि क्या क्रास चेक का तात्विक भाग क्या होता है-

इस सम्बन्ध में अधिनियम के अन्तर्गत कोई विशेष प्रावधान नहीं है, पर अब यह बैंकिंग का स्थापित मान्य सिद्धान्त बन गया है कि रेखांकन चेक का तात्विक भाग होता है और इसमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन उन पक्षकारों के बीच जो परिवर्तन के समय थे, चेक को शून्य बनाता है जिन्होंने सहमति प्रदान नहीं की थी। [धारा 87]

इंग्लिश लॉ में इस बिन्दु पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। 1858 में यह अधिनियम (1882) में यह उपबन्धित किया गया था कि रेखांकन चेक का तात्विक भाग है और इसका मिटाना या परिवर्तन कूटरचना होगा और जो व्यक्ति ऐसा कपट करता है आजीवन कारावास के लिए दायी होगा।

विनिमय पत्र अधिनियम, 1882 यह उपबन्धित करता है कि:-

"इस अधिनियम द्वारा प्राधिकृत रेखांकन चेक का तात्विक भाग होता है, यह किसी व्यक्ति के लिए विधिमान्य नहीं होगा कि वह इसे मिटाए या सिवाय इस अधिनियम से प्राधिकृत होने पर रेखांकन में कुछ जोड़े या परिवर्तन करे।"

सिमांस बनाम टेलर के मामले में यह धारित किया गया है कि रेखांकन चेक का तात्विक भाग नहीं है और इसका मिटाना कूटरचना नहीं होता है। इस स्थिति को (1882) इंग्लिश अधिनियम से अब उलट दिया गया है।

रेखांकन का खोलना (रेखांकन को रद्द करना) -

सामान्य रूप से रेखांकन खोलने का अर्थ इसको रद्द करने से होता है। रेखांकन के खोलने या इसे रद्द करने के सम्बन्ध में कोई विशिष्ट उपबन्ध अधिनियम में नहीं है, परन्तु प्रथाओं से उत्पन्न और स्थापित हुआ है और अब यह बैंकिंग का स्थापित नियम बन गया है।

रेखांकित चेकों का संदाय बैंक की खिड़की पर नकद नहीं किया जा सकता है एवं कभी-कभी रेखांकित चेक धारक को कठिनाई में डाल सकता है जहाँ उसका कोई बैंक खाता न हो अथवा तत्काल धन की आवश्यकता में हो, तब धारक रेखांकन को रद्द करने के लिए लेखीवाल के पास जा सकता है।

जब लेखीवाल रेखांकन को रद्द करता है और नकद भुगतान करे" चेक के ऊपर लिखकर अपना वैसा ही हस्ताक्षर करता है जैसा कि उसने चेक पर किया है, रेखांकन का खोलना होता है। अब यह खुला चेक के समान हो जाता है। जहाँ कई सह लेखीवाल हैं, वहाँ ऐसा सभी लेखीवालों के हस्ताक्षर से होना चाहिए।

सभी प्रकार के रेखांकन, सामान्य विशेष कुछ शब्दों के बिना या साथ अर्थात् "परक्राम्य नहीं", "एकाउन्ट पेयी" भी रद्द किया जा सकता है। इसे चेक का खोलना कहा जाता है। चेक का खोलना चेक के किसी भी स्तर पर किया जा सकता है। चेक का खोलना केवल लेखीवाल के द्वारा ही किया जा सकता है यहाँ तक कि जहाँ चेक का रेखांकन या विशिष्ट शब्दों का उल्लेख उसके द्वारा या उसके अभिकर्ता के द्वारा नहीं किया गया है।

"जब लेखीवाल ने चेक को अपने कब्जे से हटा दिया है तो वह अपने आदेश से न तो पीछे हट सकता है और न तो तटस्थ बना सकता है, किसी व्यक्ति के प्रतिकूल जिसने ऐसे विश्वास पर चेक को प्राप्त किया है पर अब इस सिद्धान्त में कोई बल नहीं है।

भुगतानी बैंक की सतर्कता- भुगतानी बैंक को चेक को खोलने में लेखीवाल के हस्ताक्षर की वैधता एवं सही होने के सम्बन्ध में बहुत ही सतर्कता बरतनी होगी अन्यथा बैंकर को कई खतरे हो सकते हैं।

उदाहरण के लिए, माना कि लेखीवाल एक रेखांकित चेक पाने वाले को पस्दित कर देता है और चेक किसी तरह से एक चोर के हाथ में आ जाता है और वह लेखीवाल के हस्ताक्षर एवं रेखांकन की कूटरचना करके बैंकर से चेक का नकद संदाय प्राप्त कर लेता है।

ऐसे मामले में बैंकर निश्चित ही अपने ग्राहक से डेबिट नहीं कर सकेगा और चेक के सही मालिक होने वाली हानि के प्रति दायी होगा इसका कोई मतलब नहीं होगा कि रेखांकन मूलतः लेखीवाल या पाने वाला द्वारा किया गया है।

इन दोनों मामलों में बैंकर ने रेखांकन के उल्लंघन में संदाय किया है। अतः बैंक को चेक का संदाय नहीं किया जाना चाहिए या और यदि संदत्त कर दिया जाता है तो ग्राहक एक नया चेक जारी करने की माँग कर सकता है।

रेखांकन को मिटाना या लुप्त करना-

रेखांकन चेक को किसी गलत व्यक्ति को संदाय लेने से संरक्षण प्रदान करता है। कभी-कभी बेईमान व्यक्ति रेखांकन को मिटाते या लुप्त करते हैं, इस बारीकी के साथ कि बैंकर इसे समझ न सके एवं बावजूद अपनी ओर से अधिक से अधिक प्रयास से बैंक ऐसे मिटाने या लुप्त करने को खोजने में असफल रहता है और चेक को खुले चेक के समान संदाय कर देता है। ऐसी दशा में परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 89 के अधीन भुगतानी बैंकर का संरक्षण उबन्धित है।

इसके अनुसार-

"जहाँ कि वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक तात्विक रूप में परिवर्तित किया गया है, किन्तु यह प्रतीत नहीं होता है कि वह ऐसे परिवर्तित किया गया है या जहाँ कि ऐसा चेक जो कि उपस्थापन के समय ऐसा प्रतीत नहीं होता कि वह क्रास किया हुआ है अथवा उदर पर क्रासिंग थी, जो मिटा दी गई है, संदाय के लिए उपस्थापित किया जाता है, वहाँ संदाय के लिए दायी व्यक्ति या बैंककार द्वारा उसका संदाय और संदाय के समय उसके प्रकट शब्दों के अनुकूल संदाय और सम्यक् अनुक्रम में अन्यथा उसके संदाय से ऐसा व्यक्ति या बैंककार उसके सब दायित्व से उन्मोचित हो जाएगा और ऐसा संदाय लिखत के परिवर्तित किए जाने या चेक के क्रास किए जाने के कारण प्रश्नगत न किया जाएगा।"

अतः यह स्पष्ट है कि बैंकर सम्यक् अनुक्रम में संदाय से उन्मोचित हो सकेगा भुगतानी बैंक इस धारा के अधीन संरक्षण पाने का हकदार होगा, यदि:-

(1) चेक का क्रास होना मालूम नहीं होता है।

(2) चेक पर क्रासिंग है।

(3) क्रासिंग को मिटा दिया गया है, जो ऐसे दिखाई नहीं देता है, अर्थात् क्रासिंग को मिटाना स्पष्ट नहीं होता है।

(4) चेक के प्रकट शब्दों के अनुसार सम्यक् रूप से संदाय कर दिया जाता है।

भुगतानी बैंक अपने दायित्व से उन्मुक्त हो जाएगा यदि ऐसे चेक का संदाय उपस्थापन पर बैंक अपने काउन्टर पर कर देता है। वह चेक की धनराशि को लेखीवाल के खाते से डेबिट कर सकेगा।

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