एनडीपीएस एक्ट, 1985 भाग 8: खेतिहर द्वारा अफीम का गबन

Update: 2023-11-03 04:51 GMT

एनडीपीएस एक्ट (The Narcotic Drugs And Psychotropic Substances Act,1985) पूरी तरह से नारकोटिक्स ड्रग्स को सरकार के नियंत्रण में करता है। अफीम नशीले पदार्थों में से एक है, अफीम के पौधे से निकलने वाले रस से अफीम तैयार की जाती है। कोई भी खेतिहर सरकार के नियंत्रण में ही अफीम की खेती कर सकते हैं। यदि उसके द्वारा तय मानक का उल्लंघन कर खेती की जाती है तब इसे अफीम का गबन कहा जाता है। एनडीपीएस एक्ट इसे अधिनियम की धारा 19 के तहत दंडनीय बनाता है, जहां कठोर दंड एवं जुर्माने का प्रावधान है।

यह अधिनियम में प्रस्तुत धारा का मूल रूप है-

धारा 19. खेतिहर द्वारा अफीम के गबन के लिए दंड

केन्द्रीय सरकार के लिए अफीम पोस्त की खेती करने के लिए अनुज्ञप्त जो कोई खेतिहर उत्पादित अफीम या उसके किसी भाग का गबन करेगा या उसका अन्यथा अवैध व्ययन करेगा वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु बीस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, जो एक लाख रुपए से कम का नहीं होगा किंतु दो लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा:

परंतु न्यायालय ऐसे कारणों से, जो निर्णय में लेखबद्ध किए जाएंगे, दो लाख रुपए से अधिक का जुर्माना अधिरोपित कर सकेगा।

स्वापक औषधि एवं मनः प्रभावी पदार्थ (संशोधन) अधिनियम, 2001 (2001 का 9) द्वारा धारा 19 में संशोधन किया गया है। किए गए संशोधन के विवरण को इस धारा की टीप में इंगित किया गया है। यह संशोधन दिनांक 2/10/2001 से प्रभावी किया गया है।

अफीम गबन के मामले में अभियुक्त का संस्वीकृति कथन

गोरधनसिंह बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान, 2006 (1) क्राइम्स 808 राजस्थान अभियुक्त के संस्वीकृति कथन का अवलोकन किया गया। हालांकि अभियुक्त के संस्वीकृति कथन को साक्ष्य में ग्राह्य माना जा सकता है परंतु इसे सम्यक सतर्कता व सावधानी से अवलोकित किया जाना चाहिए। अभियोजन साक्ष्य से भी यह स्पष्ट था कि अभियुक्त की पिटाई की गई थी। कथन की भाषा से भी यह दर्शित होता था कि इसे विभाग के प्रतिनिधियों के द्वारा स्वयं ही अभिलिखित किया गया था तो ऐसी स्थिति में ऐसे कथन मात्र को दोषसिद्धि का आधार नहीं बनाया जा सकता।

अभियुक्त अफीम की खेती का लायसेंसधारी

गोरधनसिंह के मामले में ही अभियुक्त के पास अफीम की खेती का लायसेंस था। दैनिक वजन रजिस्टर में दिनांक 6/3/1999 से दिनांक 23/3/1999 की अवधि के दौरान होने वाले उत्पाद को इस रजिस्टर में लिखा गया था। इस पर अभियुक्त व अफीम लम्बरदार के हस्ताक्षर थे।

अभियुक्त मात्र 5.500 किलोग्राम पदार्थ लाया था जो कि प्रारंभिक वजन रजिस्टर के अनुसार 6.250 किलोग्राम कम मात्रा में थी। कथित अवधि के दौरान का वजन 11.750 किलोग्राम था। अन्वेषण में अभियुक्त से 3.807 किलोग्राम अफीम बरामद होना बताया गया था। अभियुक्त के विरुद्ध अधिनियम की धारा 8/18 एवं 19 के तहत अभियोजन किया गया था।

रजिस्टर की प्रविष्टि का मूल्यांकन किया गया। अफीम लम्बरदार अभियोजन साक्षी 3 का कथन वर्तमान मामले में अत्याधिक महत्वपूर्ण माना गया। उसने प्रतिपरीक्षण में यह मंजूर किया था कि रजिस्टर पर लिखा गया वजन कृषक के द्वारा मौखिक बताए जाने पर आधारित था। उसने अन्यथा यह मंजूर किया था कि उसने रजिस्टर में कोई वजन नहीं लिखा था अपितु उसका पुत्र इसे लिखा करता था।

अभियोजन साक्षी 3 के द्वारा दिए गए कथन से यह स्पष्ट दर्शित होना पाया गया कि उसके द्वारा मेन्टेन किए जाने वाले रजिस्टर में होने वाली प्रविष्टियाँ प्रमाणित स्वरुप की नहीं थीं। उन्हें कल्पनात्मक परीक्षण के आधार पर अथवा कृषक के रिप्रजेंटेशन के आधार पर किया गया था।

कृषकों के द्वारा लाई जाने वाली अफीम के वजन करने के लिए लम्बरदार को कोई स्केल प्रावधानित नहीं की गई थी न ही अभियुक्त के आधिपत्य में कोई स्केल थी। इस प्रकार यह स्पष्ट होना पाया गया कि रजिस्टर में की गई सभी प्रविष्टियां प्राकलित थीं और इसलिए इन पर निर्भरता व्यक्त नहीं की जा सकती उन्हें कल्पनात्मक आधार पर किया गया था। अभियुक्त के विरुद्ध अपराध प्रमाणित नहीं माना गया।

आरोप की अंतर्वस्तु

आरोप की अंतर्वस्तु पर दृष्टिपात किया गया। इसमें अपराध स्थल, उसका वर्ष, माठ, दिनांक वर्णित नहीं थी। अभियुक्त की प्रास्थिति अशक्षित कृषक की थी। उक्त आरोप के आधार पर उसे प्रतिकूलता होना मानी गई।

वजन रजिस्टर की प्रविष्टियाँ

इस धारा से संबंधित गोरधन के मामले में वजन रजिस्टर में की जाने वाली सभी प्रविष्टियाँ प्राकलित व कल्पनात्मक थीं। अफीम लम्बरदार को विभाग के द्वारा वस्तु का वजन करने के लिए स्केल प्रावधानित नहीं की गई थी। अभियुक्त के पास भी कोई स्केल अथवा वजन नहीं था। अधिकारी ने रजिस्टर में प्रविष्ट अफीम के प्रारंभिक वजन को निरीक्षित एवं अधिप्रमाणित नहीं किया था यह माना गया कि इससे यह स्पष्ट था कि एनडीपीएस नियम 1985 के नियम 13 व 26 के आदेशात्मक प्रावधानों का संपूर्ण तौर पर अपालन था।

यह निष्कर्ष दिया गया कि विचारण न्यायालय ने अभियोजन साक्ष्य का सही तौर पर मूल्यांकन नहीं किया था और अभियुक्त को दोषपूर्ण तरीके से दोषसिद्ध व दण्डादिष्ट किया था। परिणामतः अपील स्वीकार की गई। विचारण न्यायालय के द्वारा पारित दोषसिद्धि का निर्णय व दण्डादेश अपास्त कर दिया गया।

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