एनडीपीएस एक्ट, 1985 भाग 34: एनडीपीएस एक्ट के अंतर्गत गांजा ज़ब्ती का मामला
एनडीपीएस एक्ट (The Narcotic Drugs And Psychotropic Substances Act,1985) की धारा 55 पुलिस को जप्त की गई वस्तु को अपने भार साधन में लेने का अधिकार देती है। इस धारा पर विस्तृत टिप्पणी पिछले आलेख में प्रस्तुत की गई है। इस आलेख के अंतर्गत गांजा से संबंधित महत्वपूर्ण प्रकरण का उल्लेख किया जा रहा है।
शिव कुमार बनाम स्टेट ऑफ छत्तीसगढ़, 2006 (2) क्राइम्स 323 छत्तीसगढ़ के मामले में गाँजा जब्ती का मामला था। अधिनियम की धारा 55 के प्रावधानों का पूरी तौर पर अपालन होना पाया गया। दोषमुक्ति किए जाने का अभिमत दिया गया।
कार्तिक बनाम स्टेट ऑफ छतीसगढ़ 2006 (2) क्राइम्स 314 छतीसगढ़ का मामला गाँजा ज़ब्ती का मामला था। साक्ष्य का मूल्यांकन किया गया। उप निरीक्षक अभियोजन साक्षी 5 ने इस आशय की साक्ष्य दी थी कि गोपनीय सूचना प्राप्त होने पर उसने इसका पंचनामा तैयार किया था और तलाशी वारंट प्राप्त न करने के संबंध में कारणों को अभिलिखित करने के उपरांत उसने स्टाफ व साक्षीगण के साथ बड़े डोंगर ट्रिंगल में जाने की कार्यवाही की थी और यह पाया था कि अपीलाट एक रैग्जीन का बैग लिए हुए था।
अपीलांट ने उसे तलाशी लेने के लिए अनुज्ञात करने के उपरांत उप निरीक्षक ने तलाशी की थी। उप निरीक्षक ने अभियुक्त के द्वारा ले जाए जाने वाले बैग की तलाशी की थी और यह पाया था कि इसमें गाँजा जैसा पदार्थ अंतर्निहित था। अभियोजन साक्षी 3 को उस पदार्थ के वजन के लिए जो कि अपीलांट के द्वारा ले जाए जाने वाले रैग्जीन बैग के अंदर पाया गया था तौलने के लिए बुलाया गया था। उप निरीक्षक ने विनिर्दिष्ट तौर पर यह बताया था कि वजन पंचनामा को उस स्थल पर तैयार किया गया था कि जहां कि तलाशी प्रभावी की गई थी।
यह पाया गया था कि अभियुक्त के आधिपत्य में होने वाले पदार्थ का भार 8 किलोग्राम था। इसका अन्यथा समर्थन वजन पंचनामा प्रदर्श पी- 7 के द्वारा होता था उसने अन्यथा यह साक्ष्य दी थी कि बैग की अंतर्वस्तु से 50-50 ग्राम के 2 नमूने तैयार किए गए थे और इन्हें सील किया गया था व आर्टीकल ए-1 एवं आर्टीकल ए-2 के रूप में चिन्हित किया गया था।
इसे पंचनामा प्रदर्श पी-7 में स्पष्ट तौर पर वर्णित होना पाया गया। वस्तुओं को सील करने के लिए उपयोगित सील नमूने को भी प्रदर्श पी-15 के द्वारा तैयार किया गया था उन निरीक्षक अभियोजन साक्षी 5 स्टेशन हाउस ऑफिसर होने के कारण स्वयं उसने अन्यथा यह बताया था कि पुलिस स्टेशन पर लौटने पर सील सेम्पिल पैकेटों को व रैगजीन बैग जिसमें कि गाँजा जैसा पदार्थ अंतर्निहित था मालाखाना के मोहर्रिर को सुपुर्द कर दिया था।
उप निरीक्षक की साक्ष्य का यह भाग संपूर्ण तौर पर बिना खंडन के प्रतिपरीक्षण में रहा था और इसका समर्थन मुख्य आरक्षक अभियोजन साक्षी 2 से होता था जिसने कि इस आशय की साक्ष्य दी थी कि स्टेशन हाउस ऑफिसर ने रैगजीन बैग जिसमें कि गाँजा जैसा पदार्थ था उसे न्यसित किया था व 2 सीलबंद पैकेट को एवं 100 रुपए के नोट को सुरक्षित अभिरक्षा में न्यसित किया था।
मालखाना रजिस्टर की प्रविष्टि एवं एक्नॉलेजमेंट से भी यह प्रमाणित था। प्रतिपरीक्षण में इस साक्षी ने बताया था कि उसने मालखाना के अंदर वस्तुओं को उस समान अवस्था में रखा था जिसमें कि उसे न्यसित की गई थीं। उप निरीक्षक अभियोजन साक्षी 5 ने अन्यथा यह प्रमाणित किया था कि प्रदर्श पी- 24 सुपरिन्टेंट ऑफ पुलिस का पत्रक था यह फारेंसिक साइंस लेबोट्री रायपुर को रासायनिक परीक्षण के लिए भेजे जाने से संबंधित था।
इसमें यह स्पष्ट तौर पर वर्णित किया गया था कि सील के स्पेसीमेन इम्प्रेशन जिसे कि स्टेशन हाउस ऑफिसर के द्वारा नमूनों को सील करने के लिए उपयोग में लाया गया था, को भी इसके साथ भेजा गया था। फोरेंसिक साइंस लेबोट्री की रिपोर्ट प्रदर्श पी-26 में भी यह था कि सील नमूने पैकेट पर स्पेसीमेन इम्प्रेशन ऑफ सील पाया गया था। इसका मिलान उस स्पेसीमेन इम्प्रेशन ऑफ सील से पूरी तौर पर होता था।
इस प्रकार मामले में अधिनियम की धारा 55 के प्रावधान का भी पालन होना पाया गया। अभिलेख पर यह दर्शित करने के लिए कुछ भी नहीं था जिससे यह सुझावित होता हो कि नमूने को बिगाड़े जाने की कोई दूरस्थ संभावना भी थी अपराध प्रमाणित होना माना गया।
हुजुल अकबर बनाम स्टेट ऑफ एम.पी. आई.एल.आर. 2011 म.प्र. 221 के मामले में मालखाना रजिस्टर में सील एवं सील की छाप जमा किए जाने बाबत प्रविष्टि होने का अभाव मालखाना रजिस्टर में सील एवं सील की छाप जमा किए जाने बाबत प्रविष्टि होने का अभाव होना पाया गया। अपराध प्रमाणित माने जाने से अनिच्छा व्यक्त की गयी।
कुलेश्वर बनाम स्टेट ऑफ छत्तीसगढ़, 2008 (3) छत्तीसगढ़ लॉ जजमेंट्स 257 छत्तीसगढ़ के मामले में अपीलांट स्वामी नहीं था अपितु मात्र मोटर साइकिल चलाने वाला था। जबकि अन्य उसकी गोदी में गांजा अंतर्निहित होने वाले बैग को पकड़े हुए था अपीलांट का भानपूर्वक आधिपत्य होना नहीं माना गया।
न्याय दृष्टांत नवीन कुमार बनाम स्टेट ऑफ गुजरात, 2006 क्रिमिनल लॉ जर्नल एन ओ सी 189 गुजरात के मामले में हाई कोर्ट की खंडपीठ ने यह अभिनिर्धारित किया था कि मुद्दे माल नमूनों पर होने वाली स्लिपों को नमूनों पर चस्पा नहीं किया गया था अपितु खुला रखा गया था। यदि स्लिप को चस्पा नहीं किया गया था और खुला रखा गया था तो ऐसी स्थिति में अभियुक्त दोषमुक्ति का हकदार होगा।