Multifarious Suits – राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 की धारा 6

Update: 2025-03-26 10:17 GMT
Multifarious Suits – राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 की धारा 6

राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961) में यह स्पष्ट किया गया है कि न्यायालय में दाखिल किए जाने वाले दस्तावेजों पर किस प्रकार का शुल्क (Court Fee) लगेगा। इस अधिनियम की पिछली धाराओं में यह बताया गया कि न्यायालयों और सार्वजनिक कार्यालयों में प्रस्तुत दस्तावेजों पर शुल्क देना अनिवार्य है (धारा 4), और अगर गलती से बिना शुल्क वाले दस्तावेज़ को स्वीकार कर लिया जाए, तो क्या किया जाएगा (धारा 5)।

अब, धारा 6 बहु-विषयक वादों (Multifarious Suits) से संबंधित है, जिसमें एक ही वाद (Suit) में कई दावे (Claims) या अलग-अलग कारणों (Causes of Action) को शामिल किया जाता है। यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि ऐसे मामलों में उपयुक्त शुल्क वसूला जाए ताकि अनावश्यक जटिलताओं से बचा जा सके और सरकार को राजस्व का नुकसान न हो।

बहु-विषयक वाद (Multifarious Suits) का अर्थ

बहु-विषयक वाद का तात्पर्य उन मामलों से है जिनमें एक ही मुकदमे में कई राहतें (Reliefs) या विभिन्न कारणों पर आधारित दावे होते हैं। धारा 6 यह स्पष्ट करती है कि जब किसी मुकदमे में कई दावे होते हैं, तो न्यायालय शुल्क कैसे निर्धारित किया जाएगा। इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वादी (Plaintiff) कई दावों को एक मुकदमे में जोड़कर शुल्क बचाने की कोशिश न करे।

कोई मुकदमा निम्नलिखित परिस्थितियों में बहु-विषयक हो सकता है:

1. जब एक ही कारण (Cause of Action) के आधार पर कई राहतें मांगी जाती हैं।

2. जब एक ही कारण पर वैकल्पिक (Alternative) राहतें मांगी जाती हैं।

3. जब अलग-अलग कारणों को एक मुकदमे में जोड़ा जाता है और उनके आधार पर राहत मांगी जाती है।

धारा 6 के विभिन्न उपधाराओं (Sub-sections) में इन सभी स्थितियों का विस्तार से उल्लेख किया गया है।

एक ही कारण (Cause of Action) के आधार पर कई राहतें मांगने वाले वाद (Sub-section 1)

धारा 6(1) के अनुसार, यदि किसी मुकदमे में एक ही कारण के आधार पर कई राहतें मांगी जाती हैं, तो न्यायालय शुल्क सभी राहतों के कुल मूल्य (Aggregate Value) के अनुसार लिया जाएगा। इसका अर्थ यह है कि वादी को प्रत्येक राहत के लिए शुल्क देना होगा।

उदाहरण:

मान लीजिए कि A, B के खिलाफ मुकदमा दायर करता है और हर्जाने (Damages) के लिए मुआवजा (Compensation) और एक निषेधाज्ञा (Injunction) मांगता है ताकि B आगे कोई नुकसान न पहुंचाए। चूंकि दोनों दावे एक ही कारण यानी B के गलत कार्य पर आधारित हैं, इसलिए शुल्क दोनों दावों के कुल मूल्य के आधार पर लगेगा।

लेकिन इसमें एक अपवाद (Exception) भी है। यदि कोई राहत केवल मुख्य राहत (Main Relief) के पूरक (Ancillary) के रूप में मांगी जाती है, तो शुल्क केवल मुख्य राहत के मूल्य के अनुसार लगेगा।

उदाहरण:

यदि A, B के खिलाफ मुकदमा दायर करता है कि एक फर्जी बिक्री विलेख (Fraudulent Sale Deed) को रद्द किया जाए और साथ ही यह घोषित किया जाए कि वह संपत्ति का असली मालिक है, तो इसमें मुख्य राहत बिक्री विलेख को रद्द करना होगी और स्वामित्व की घोषणा केवल पूरक राहत होगी। ऐसे में शुल्क केवल मुख्य राहत के मूल्य पर लगेगा।

वैकल्पिक (Alternative) राहतों वाले वाद (Sub-section 2)

कुछ मामलों में, वादी एक ही कारण पर अलग-अलग वैकल्पिक राहतें मांग सकता है, ताकि यदि एक राहत नहीं मिले, तो दूसरी दी जा सके। धारा 6(2) कहती है कि ऐसे मामलों में न्यायालय शुल्क उस राहत पर लगेगा जिसका मूल्य सबसे अधिक होगा।

उदाहरण:

अगर A, B के खिलाफ मुकदमा दायर करता है और कहता है कि या तो उसे ₹5,00,000 का मुआवजा दिया जाए या उसे एक संपत्ति (Property) दी जाए जिसका मूल्य ₹8,00,000 है, तो न्यायालय शुल्क ₹8,00,000 पर आधारित होगा क्योंकि यह अधिक मूल्यवान दावा है।

यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि वादी शुल्क बचाने के लिए कम मूल्य की राहत को प्राथमिकता देकर मुकदमा दायर न करे।

अलग-अलग कारणों (Causes of Action) पर आधारित वाद (Sub-section 3)

कुछ मामलों में, एक मुकदमे में कई स्वतंत्र कारण हो सकते हैं, जिनके लिए अलग-अलग राहत मांगी जाती है। धारा 6(3) के अनुसार, यदि एक वाद में अलग-अलग कारणों पर आधारित राहतें मांगी जाती हैं, तो प्रत्येक कारण के लिए अलग-अलग शुल्क देना होगा।

उदाहरण:

मान लीजिए कि A, B के खिलाफ अनुबंध (Contract) के उल्लंघन (Breach) के लिए और भूमि पर अतिक्रमण (Trespass) के लिए मुकदमा दायर करता है। ये दोनों स्वतंत्र कारण हैं—एक अनुबंध कानून (Contract Law) से संबंधित है और दूसरा संपत्ति कानून (Property Law) से। ऐसे में न्यायालय शुल्क दोनों दावों पर अलग-अलग लगेगा।

हालांकि, यदि वैकल्पिक राहतें एक ही लेन-देन (Transaction) से उत्पन्न हुई हैं, तो शुल्क केवल सबसे अधिक मूल्य वाली राहत पर लगेगा।

उदाहरण:

अगर A, B को पैसे उधार देता है और मुकदमा करता है कि या तो उसे नगद राशि वापस दी जाए या समान मूल्य की संपत्ति दी जाए, तो दोनों दावे एक ही वित्तीय लेन-देन से जुड़े हैं। इसलिए, न्यायालय शुल्क केवल उच्चतम मूल्य वाली राहत पर लगेगा।

अदालत को अलग-अलग मुकदमे दर्ज करने का अधिकार (Sub-section 4)

धारा 6(4) स्पष्ट करती है कि उपधारा (3) में दी गई व्यवस्था से अदालत की शक्ति प्रभावित नहीं होगी, जो इसे आदेश 2 नियम 6 (Order II Rule 6) के तहत मुकदमों को अलग-अलग दर्ज करने की शक्ति प्रदान करती है।

यदि अदालत को लगता है कि एक ही मुकदमे में बहुत अधिक अलग-अलग दावे शामिल किए गए हैं और यह उचित नहीं है, तो वह निर्देश दे सकती है कि अलग-अलग मुकदमे दर्ज किए जाएं।

उदाहरण:

यदि A, B के खिलाफ अनुबंध उल्लंघन, मानहानि (Defamation), और अतिक्रमण के लिए एक ही मुकदमा दायर करता है, तो अदालत यह तय कर सकती है कि ये मामले अलग-अलग हैं और इन्हें अलग-अलग मुकदमों के रूप में दर्ज किया जाना चाहिए।

यह प्रावधान अपीलों, आवेदनों और लिखित बयानों पर भी लागू (Sub-section 5)

धारा 6(5) कहती है कि यह नियम केवल वादों (Plaints) पर ही नहीं बल्कि अपीलों (Appeals), आवेदनों (Applications), याचिकाओं (Petitions) और लिखित बयानों (Written Statements) पर भी लागू होगा।

उदाहरण:

अगर किसी अपील में एक ही समय में दोषसिद्धि (Conviction) और सजा (Sentence) दोनों को चुनौती दी जाती है, तो शुल्क दोनों विषयों के कुल मूल्य पर लगेगा।

धारा 6 यह सुनिश्चित करती है कि न्यायालय शुल्क का भुगतान उचित रूप से किया जाए और वादियों को मुकदमों में अनुचित लाभ लेने से रोका जाए। यह प्रावधान न्यायालयों के संसाधनों को बचाने और मुकदमों को सुव्यवस्थित बनाए रखने में सहायक है।

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