विशेष कारणों का उल्लेख और न्यायालय द्वारा निर्णय में बदलाव पर रोक: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 402 और 403

Update: 2025-04-01 14:51 GMT
विशेष कारणों का उल्लेख और न्यायालय द्वारा निर्णय में बदलाव पर रोक: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 402 और 403

न्यायिक प्रणाली का मुख्य उद्देश्य केवल अपराधियों को दंड देना नहीं बल्कि उन्हें सुधारने और पुनर्वास (Rehabilitation) का अवसर देना भी है। कई मामलों में, अपराध की गंभीरता को देखते हुए न्यायालय आरोपी को सीधे सजा देने की बजाय प्रोबेशन (Probation) पर छोड़ सकता है या युवा अपराधियों (Juvenile Offenders) के लिए विशेष पुनर्वास कार्यक्रम लागू कर सकता है।

हालांकि, कुछ मामलों में न्यायालय को यह उपयुक्त नहीं लगता और वह प्रोबेशन या पुनर्वास की सुविधा नहीं देता। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) की धारा 402 यह प्रावधान करती है कि यदि न्यायालय प्रोबेशन या पुनर्वास का विकल्प नहीं अपनाता, तो उसे अपने निर्णय में विशेष कारणों (Special Reasons) का स्पष्ट उल्लेख करना होगा।

वहीं, धारा 403 यह सुनिश्चित करती है कि एक बार जब न्यायालय किसी मामले में अपना अंतिम निर्णय (Judgment) सुना देता है, तो वह बाद में उसमें कोई बदलाव (Alteration) या समीक्षा (Review) नहीं कर सकता, सिवाय छोटी-मोटी गणनात्मक या टंकण संबंधी त्रुटियों को सुधारने के।

धारा 402: विशेष कारणों का उल्लेख (Special Reasons to Be Recorded in Certain Cases)

कब लागू होती है धारा 402?

धारा 402 उन मामलों पर लागू होती है, जहां न्यायालय के पास आरोपी को निम्नलिखित दो तरीकों से राहत देने का विकल्प होता है, लेकिन फिर भी वह ऐसा नहीं करता:

1. धारा 401 (Section 401) या प्रोबेशन ऑफ ऑफेंडर्स एक्ट, 1958 (Probation of Offenders Act, 1958) के तहत प्रोबेशन पर छोड़ने का अवसर

o धारा 401 के तहत, यदि कोई व्यक्ति पहली बार अपराध करता है और उसकी उम्र 21 वर्ष से कम है, या वह महिला है, और अपराध की सजा मृत्यु दंड (Death Penalty) या आजीवन कारावास (Life Imprisonment) नहीं है, तो उसे सीधे सजा देने की बजाय प्रोबेशन पर छोड़ा जा सकता है।

o इसी प्रकार, Probation of Offenders Act, 1958 भी पहली बार अपराध करने वाले व्यक्तियों को जेल जाने से बचाने के लिए बनाया गया था।

2. युवा अपराधियों के लिए विशेष कानूनों का उपयोग न करना

o यदि आरोपी Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2015 के तहत एक युवा अपराधी (Youthful Offender) है, तो उसे सीधे जेल भेजने की बजाय सुधार गृह (Juvenile Rehabilitation Center) में भेजा जा सकता है।

o इसके अलावा, अन्य कानून भी युवा अपराधियों के पुनर्वास के लिए बनाए गए हैं।

विशेष कारणों का उल्लेख क्यों आवश्यक है?

अगर न्यायालय आरोपी को उपरोक्त विशेष प्रावधानों का लाभ नहीं देता है, तो उसे अपने निर्णय में यह स्पष्ट करना होगा कि ऐसा क्यों किया गया।

उदाहरण:

1. एक 20 वर्षीय युवक को चोरी के मामले में गिरफ्तार किया गया, लेकिन न्यायालय ने उसे प्रोबेशन पर छोड़ने की बजाय सजा सुनाई।

2. एक 17 वर्षीय बाल अपराधी (Juvenile Offender) को बाल सुधार गृह भेजने की बजाय सीधा जेल भेज दिया गया।

इन दोनों मामलों में, धारा 402 के तहत न्यायालय को अपने निर्णय में स्पष्ट कारण दर्ज करने होंगे कि क्यों उसने आरोपी को विशेष राहत नहीं दी।

न्यायिक पारदर्शिता और जवाबदेही (Judicial Transparency and Accountability)

धारा 402 न्यायालय को जवाबदेह (Accountable) बनाती है और यह सुनिश्चित करती है कि हर निर्णय तार्किक और उचित हो। यदि न्यायालय प्रोबेशन या पुनर्वास का विकल्प नहीं अपनाता है, तो उसे अपने आदेश में यह दर्ज करना होता है कि उसने ऐसा क्यों किया।

धारा 403: न्यायालय द्वारा निर्णय में बदलाव पर रोक (Court Not to Alter Judgment)

धारा 403 का उद्देश्य

एक बार जब न्यायालय किसी मामले में अंतिम निर्णय (Final Judgment) या अंतिम आदेश (Final Order) पारित कर देता है, तो धारा 403 यह सुनिश्चित करती है कि उस निर्णय को बदला या संशोधित (Alter or Review) नहीं किया जा सकता।

हालांकि, कुछ विशेष परिस्थितियों में निर्णय में मामूली सुधार (Correction of Errors) किया जा सकता है:

1. लेखकीय त्रुटियां (Clerical Errors) – यदि निर्णय में कोई टंकण (Typing) या लिखावट (Handwriting) संबंधी त्रुटि हो, तो उसे सुधारा जा सकता है।

2. गणनात्मक त्रुटियां (Arithmetical Errors) – यदि किसी जुर्माने की राशि गलत गणना के कारण अधिक या कम लिख दी गई हो, तो उसे सुधारा जा सकता है।

न्यायालय द्वारा निर्णय को बदलने की मनाही क्यों है?

1. न्यायिक प्रक्रिया की स्थिरता (Judicial Finality)

o यदि न्यायालय बार-बार अपने निर्णय बदलने लगे, तो इससे न्यायिक प्रक्रिया में अस्थिरता (Instability) आ सकती है।

2. अत्यधिक मुकदमों की रोकथाम (Preventing Excessive Litigation)

o यदि न्यायालय को किसी भी समय अपने निर्णय को बदलने की अनुमति दी जाए, तो इससे मुकदमों (Litigation) की संख्या अनावश्यक रूप से बढ़ सकती है।

उदाहरण:

1. गलत निर्णय में सुधार:

o न्यायालय ने एक अभियुक्त पर ₹50,000 का जुर्माना लगाया, लेकिन बाद में यह पता चला कि यह राशि ₹5,000 होनी चाहिए थी। ऐसी स्थिति में, न्यायालय टंकण त्रुटि को ठीक कर सकता है।

2. निर्णय को न बदला जाना:

o यदि किसी अभियुक्त को न्यायालय ने 2 वर्ष की जेल की सजा दी है, तो न्यायालय बाद में यह नहीं कह सकता कि उसे 1 वर्ष की सजा दी जानी चाहिए थी।

धारा 402 और 403 का परस्पर संबंध (Interconnection of Section 402 and 403)

• धारा 402 यह सुनिश्चित करती है कि यदि न्यायालय किसी आरोपी को प्रोबेशन या पुनर्वास का लाभ नहीं देता, तो उसे इसके विशेष कारण दर्ज करने होंगे।

• धारा 403 यह सुनिश्चित करती है कि जब न्यायालय ने एक बार अंतिम निर्णय दे दिया, तो वह बाद में इसे संशोधित (Modify) या बदल (Change) नहीं सकता, सिवाय छोटी-मोटी गणनात्मक त्रुटियों को सुधारने के।

समाज पर प्रभाव (Impact on Society)

धारा 402 का प्रभाव

• युवा अपराधियों को सुधार का अवसर मिलता है।

• प्रथम बार अपराध करने वालों को समाज में पुनः स्थापित होने में मदद मिलती है।

• न्यायालय के निर्णयों में पारदर्शिता बनी रहती है।

धारा 403 का प्रभाव

• न्यायालय की विश्वसनीयता बनी रहती है।

• मुकदमों की संख्या कम होती है।

• न्यायिक प्रक्रिया में स्थिरता बनी रहती है।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 402 और 403 न्यायिक प्रणाली को जवाबदेह, पारदर्शी और स्थिर बनाती हैं।

• धारा 402 यह सुनिश्चित करती है कि यदि न्यायालय किसी आरोपी को प्रोबेशन या पुनर्वास का लाभ नहीं देता, तो उसे इसका स्पष्ट कारण अपने निर्णय में दर्ज करना होगा।

• धारा 403 यह सुनिश्चित करती है कि न्यायालय अपने अंतिम निर्णय में बिना किसी ठोस कारण के बदलाव या संशोधन न करे, जिससे न्यायिक प्रक्रिया की स्थिरता बनी रहे।

ये दोनों प्रावधान अपराधियों के पुनर्वास, न्यायिक पारदर्शिता और समाज में विधि व्यवस्था बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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