लिव इन रिलेशनशिप एक ज्वलंत मुद्दा है जो पश्चिम के देशों के अत्यंत प्रचलित है और धीरे धीरे यह विषय भारत में भी आम हो चला है। लिव इन रिलेशनशिप मैरिज का एक विकल्प है। यदि दो व्यक्ति एक साथ पति पत्नी के तरह निवास कर रहे हैं और उन्होंने मैरिज नहीं की है तब इसे लिव इन रिलेशनशिप कहा जाता है। इसे लेकर भी भारत में लॉ है।
सामाजिक स्तर पर लिव इन को भले ही मान्यता न दी जाती हो तथा विभिन्न धर्मों में इसे गलत माना जाता हो परंतु इंडियन लॉ लिव इन रिलेशनशिप को कोई अपराध नहीं मानता है। भारत राष्ट्र में लिव इन रिलेशनशिप जैसी प्रथा वैध है तथा कोई भी दो लोग लिव इन कर सकते हैं यह भारतीय विधि में पूर्णतः वैध है।
लिव इन रिलेशनशिप और इंडियन लॉ
अब तक तो भारत की पार्लियामेंट तथा किसी स्टेट के विधानमंडल ने लिव इन रिलेशनशिप पर कोई व्यवस्थित सहिंताबद्ध अधिनियम का निर्माण नहीं किया है परंतु घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 2(f) के अंतर्गत लिव इन रिलेशनशिप की परिभाषा प्राप्त होती है, क्योंकि घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत लिव इन रिलेशनशिप में साथ रहने वाले लोग भी संरक्षण प्राप्त कर सकते हैं अधिनियम की धारा के अनुसार-
"घरेलू नातेदारी से ऐसे दो व्यक्तियों के बीच नातेदारी अभिप्रेत है जो साझी गृहस्थी में एक साथ रहते हैं या किसी समय एक साथ रह चुके हैं जब वे समररक्तता, विवाह द्वारा या विवाह, दत्तक ग्रहण की प्रकृति की किसी नातेदारी द्वारा संबंधित है या एक अविभक्त कुटुंब के रूप में एक साथ रहने वाले कुटुंब के सदस्य हैं"
घरेलू हिंसा अधिनियम की इस धारा से यह प्रतीत होता है कि लिव इन रिलेशनशिप जैसे संबंधों को भारतीय विधानों में स्थान दिया गया है। इस धारा के अतिरिक्त समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट में लिव इन रिलेशनशिप से संबंधित मुकदमे आते रहे हैं जिन पर लिव इन रिलेशनशिप जैसी व्यवस्था को लेकर विधानों का निर्माण होता रहा है।
भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय किसी सहिंताबद्ध कानून जैसा स्थान रखते हैं तथा किसी संहिताबद्ध कानून के अभाव में सुप्रीम कोर्ट के दिए गए निर्णय कानून की तरह कार्य करते हैं। भले ही कोई सहिंताबद्ध कानून लिव इन रिलेशनशिप व्यवस्था के संदर्भ में उपस्थित नहीं हो परंतु सुप्रीम कोर्ट के न्याय निर्णय लिव इन रिलेशनशिप से संबंधित व्यवस्था पर मार्गदर्शन कर रहे हैं।
लिव इन रिलेशनशिप के लिए शर्तें-
भारत के सुप्रीम कोर्ट में इंदिरा शर्मा बनाम वीएवी शर्मा 2013 के मामले में लिव इन रिलेशनशिप से संबंधित संपूर्ण गाइडलाइंस को प्रस्तुत किया है। लिव इन रिलेशनशिप व्यवस्था से संबंधित सभी प्रश्नों के उत्तर दे दिए गए हैं तथा उन शर्तों को तय किया है जिनके अधीन रहते हुए वैध लिव इन रिलेशनशिप किया जा सकता है।
साथ साथ रहने का रिजनेबल टाइम पीरियड-
किसी भी लिव इन रिलेशनशिप के दोनों पक्षकार साथ रहने की एक युक्तियुक्त अवधि में होना चाहिए। कोई भी पक्षकार इस तरह से नहीं होंगे कि किसी भी समय साथ रह रहे हैं और किसी भी समय साथ नहीं रह रहे हैं।
साथ रहने के लिए एक युक्तियुक्त अवधि आवश्यक है। यदि उपयुक्त अवधि को पूरा कर लिया जाता है तो लिव इन रिलेशनशिप माना जाएगा। युक्तियुक्त अवधि से आशय ऐसी अवधि से है जिससे यह माना जा सकें कि किसी एक विशेष समय से लिव इन रिलेशनशिप के पक्षकार साथ में रहे है। ऐसा नहीं होना चाहिए कि कहीं एक-दो दिन के लिए दो पक्षकार एक साथ रह लिए तथा फिर चले गए, फिर कुछ महीनों या वर्षों के बाद साथ रहने लगे फिर चले गए। निरंतर युक्तियुक्त अवधि लिव इन रिलेशनशिप के लिए आवश्यक है। ऐसी अवधि 1 माह, 2 माह भी हो सकती है पर इसके लिए कोई तय समय सीमा नहीं है।
एक ही घर में साथ रहना
लिव इन रिलेशनशिप के पक्षकारों का पति पत्नी के भांति एक घर में साथ रहना आवश्यक है। एक घर को लिव इन रिलेशनशिप के पक्षकार उपयोग में लाते हैं तथा एक ही छत के नीचे रहते हैं उनका अपना एक ठिकाना होता है एक घर होता है।
एक ही घर की वस्तुओं का उपयोग
लिव इन रिलेशनशिप के दोनों पक्षकार एक ही घर की वस्तुओं का संयुक्त रुप से उपयोग कर रहे हो जिस प्रकार एक पति पत्नी किसी एक घर में साथ रहते हुए चीजों का उपयोग करते हैं।
घर के कामों में एक दूसरे की सहायता
दो पक्षकार घर में एक साथ रहते हुए घर के कामों में एक दूसरे की सहायता करते हो तथा इस प्रकार घर के काम बंटे हुए हो।
बच्चों को स्नेह
लिव इन रिलेशनशिप के पक्षकार अपने बच्चों को स्नेहपूर्वक अपने साथ रखते हो तथा उनसे इसी प्रकार का स्नेह और प्रेम रखते हो जिस प्रकार का स्नेह माता पिता अपने बच्चों से रखते हैं। जिस प्रकार का प्रेम जो पति-पत्नी अपने द्वारा उत्पन्न की गयी संतान के साथ रखते हैं।
लोगों को इस बात की सूचना हो कि वह दोनों साथ रहते हैं
जब लिव इन रिलेशनशिप के पक्षकार साथ रहते हो तो समाज में ऐसी सूचना होना चाहिए कि वह दोनों पक्षकार पति-पत्नी की भांति एक घर को साझा करते हुए एक साथ रहते हैं तथा उन दोनों का एक साथ रहने का सामान्य आशय है। वे दोनों आपस में शारीरिक संबंध भी बनाते होंगे क्योंकि दोनों पति-पत्नी की भांति एक साथ रहेंगे तो यह संभव है कि उनमें शारीरिक संबंध की स्थापना भी होगी। इसका अर्थ यह है कि जारकर्म की भांति का कोई दब छिपकर संबंध नहीं होना चाहिए जिससे जानने वाले लोगों को ही यह जानकारी न हो कि यह साथ रहते है।
लिव इन रिलेशनशिप के पक्षकार वयस्क हो
लिव इन रिलेशनशिप के पक्षकार वयस्क होना चाहिए। उन्होंने वयस्क होने की आयु प्राप्त कर ली हो। भारतीय वयस्कता अधिनियम के अंतर्गत वयस्कता की आयु 18 वर्ष है।
स्वस्थ चित्त हो
एक महत्वपूर्ण शर्त यह है कि लिव इन में रहते समय ऐसे पक्षकारों में से किसी का भी पूर्व में कोई पति या पत्नी नहीं होना चाहिए यदि कोई पति या पत्नी के रहते हुए लिव इन रिलेशनशिप करता है तो यह लिव इन रिलेशनशिप अवैध होगा।
लता सिंह बनाम स्टेट ऑफ यूपी 2006 के एक मामले में दो पक्षकारों ने भागकर मंदिर में विवाह कर लिया था तथा साथ रहने लगे थे। उनका विवाह विवाह के कर्मकांड के अनुसार पूर्ण नहीं हुआ था परंतु सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में यह माना कि दो वयस्कता प्राप्त पक्षकार अपनी स्वेच्छा से पति-पत्नी के रूप में एक साथ रह सकते हैं तथा संतान उत्पत्ति भी कर सकते हैं और इसके लिए किसी धार्मिक कर्मकांड किए जाए या फिर किसी वैध विवाह की कोई आवश्यकता भी नहीं है। इस प्रकार से दो लोगों का साथ में रहना कभी भी अपराध नहीं माना जा सकता।
लिव इन रिलेशनशिप की महिला पक्षकार को भरण पोषण का अधिकार
चनमुनिया बनाम वीरेंद्र कुमार चनमुनिया के मामले में भारत के सुप्रीम ने स्पष्ट करते हुए यह कहा है कि लिव इन रिलेशनशिप की महिला पक्षकार लिव इन रिलेशनशिप के पुरुष पक्षकार से दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार नहीं है तथा महिला को यह कहकर भरण पोषण के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता कि उसने कोई वैध विवाह नहीं किया था।
यदि दोनों पक्ष कार पति-पत्नी की भांति एक साथ लिव इन जैसी व्यवस्था में रहे थे तो महिला पक्षकार पुरुष पक्षकार से दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत भरण पोषण की मांग कर सकती है। अब दंड प्रक्रिया संहिता निरसित हो चुकी है और उसके स्थान पर नागरिक सुरक्षा संहिता आ चुकी है इसलिए यहाँ पर उसके प्रावधान लागू होंगे।
लिव इन रिलेशनशिप से उत्पन्न हुई संतान को संपत्ति में उत्तराधिकार-
लिव इन रिलेशनशिप की अवधि में साथ रहते हुए लिव इन रिलेशनशिप के पक्षकारों में यदि कोई संतान उत्पन्न होती है तो इस प्रकार से उत्पन्न हुई संतान को पिता की संपत्ति में तथा माता की संपत्ति में और इन दोनों को विरासत में मिली हुई संपत्ति में उत्तराधिकार का इस भांति ही अधिकार होगा जिस भांति एक वैध विवाह से उत्पन्न हुई संतानों को होता है। यह बात रविंद्र सिंह बनाम मल्लिका अर्जुन के मामले में 2011 को भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा कही गयी है।
नंदकुमार बनाम स्टेट ऑफ केरल के मामले में यह कहा गया है कि यदि पुरुष की आयु विवाह के समय 21 वर्ष नहीं थी तथा वह पुरुष 18 वर्ष से अधिक का था तो ऐसी परिस्थिति में विवाह भले न हो पर लिव इन रिलेशनशिप माना जा सकता है।