
इस में किसी भी चेक के मामले में पेमेंट प्राप्त करने वाले बैंक को जिम्मेदारी दी गयी है। इसका उल्लेख इस एक्ट की धारा 131 में मिलता है। संग्राहक बैंक वह होता है जो समाशोधन द्वारा चेक की धनराशि का संग्रहण करता है। चेकों का संग्रहण महत्वपूर्ण सुविधा है जो बैंक अपने ग्राहक को प्रदान करता है। चेकों का संग्रहण खुला एवं क्रास दोनों चेकों का होता है, पर धारा 131 केवल क्रास चेक के संदाय के सम्बन्ध में संग्राहक बैंक को संरक्षण प्रदान करती है। धारा 131क अब माँग ड्राफ्ट को भी ऐसी संरक्षण प्रदान करती है। बैंक जो क्रास चेकों का संदाय अपने ग्राहकों के लिए प्राप्त करता है, संग्राहक बैंक होता है।
धारा 128 के अधीन भुगतानी बैंक को संरक्षण प्रदान किया गया है, पर यह धारा संग्राहक बैंक को संरक्षण देती है। ग्राहक जिसके लिए बैंक संग्रह करता है, यह हो सकता है कि वह चेक का हकदार न हो। अतः बैंकर चेक के सही स्वामी के प्रति संपरिवर्तन के लिए उत्तरदायी हो सकता है, क्योंकि उसने ऐसे व्यक्ति को चेक को संदाय करने में सहयोग किया है जो संदाय पाने का हकदार नहीं था।
वर्तमान धारा यह प्रावधानित करती है कि जहाँ एक बैंकर एक ग्राहक से क्रास चेक के संग्रह के लिए प्राप्त करता है और संदाय अपने ग्राहक के लिए प्राप्त करता है, यह तथ्य कि ग्राहक का स्वत्व चेक के प्रति दोषपूर्ण है, वहाँ बैंकर सही स्वामी के प्रति के लिए उत्तरदायी नहीं होगा यह संरक्षण बहुत ही महत्वपूर्ण है। धारा 131 बैंकर जो सद्भावनापूर्वक एवं बिना किसी उपेक्षा के अपने किसी ग्राहक के क्रास चेक का संग्रह करता है जो उसका स्वत्व नहीं रखता है, उसे संरक्षण प्रदान करता है। यह भी धारित किया गया है कि ऐसा संरक्षण जहाजी बिल्टी के देयता को संग्रह करता है जिसे यह पृष्ठांकित किया गया है, उसे भी प्राप्त होता है।
सेक्शन 131 के अनुसार,
"जिस बैंक ने अपने ग्राहक के पक्ष में साधारण या विशेष क्रास किए हुए चेक का संदाय अपने व्यवहारी (ग्राहक) लेखे सद्भावपूर्वक एवं उपेक्षा के बिना प्राप्त किया है वह बैंककार उस चेक पर हक के त्रुटिपूर्ण साबित होने की दशा में सही स्वामी के प्रति कोई दायित्व ऐसा संदाय प्राप्त करने के कारण ही उपगत न करेगा।"
संग्राहक बैंक के विधिक संरक्षण के सम्बन्ध में स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, बंगलौर बनाम विश्वेसरीयाह को-आप० बैंक लि० का मामला नियम को स्पष्ट करता है। इस मामले में एक धोखेबाज ने प्रतिवादी बैंक में खाता खोला और खोए हुए ड्राफ्ट की धनराशि को नकद किया। यह कहा गया कि प्रतिवादी बैंक ने धोखेबाज का खाता खोलने में उपेक्षा बरती है और इससे उसने डी० डी० का नकदीकरण करा लिया।
भुगतानी बैंक का कथन था कि संग्राहक बैंक ने खाता खोलने में खाता खुलवाने वाले का समुचित परिचय नहीं प्राप्त किया था। परिस्थितियों से यह स्पष्ट नहीं था कि ग्राहक डी० डी० का स्वामी नहीं था। अन्तर्ग्रस्त धनराशि 25,000 रुपये कम धनराशि की थी जो विशेष और विस्तृत जाँच करने की अपेक्षा नहीं करता था विशेषकर खाता खोलने के कई दिनों के बाद डी० डी० संग्रह के लिए जमा किया गया था। अत: संग्राहक बैंक धारा 131 के अधीन संरक्षण का हकदार था।
यह प्रश्न कि क्या बैंक ने खाता खोलने में उपेक्षा बरती है धारा 131 के लिए इस सीमा तक संगत में होगी कि खाता खोलने एवं चेक को जमा करना वास्तव में एक ही योजना में थी। क्या खाता प्रश्नगत चेक के साथ खोला गया? या क्या खाता खोलने के तुरन्त बाद चेक को खाते में डाला गया जिससे यह स्पष्ट हो कि खाता खोलना एवं चेक जमा करना एक हो भाग है, तब खाता खोलने में उपेक्षा माना जाएगा कि चेक के वसूली के सम्बन्ध में था।
यहाँ पर कमिश्नर ऑफ टैक्सेसन बनाम इंग्लिश स्काटिस एण्ड आस्ट्रेलियन बैंक लि में प्रिवी कौन्सिल का निर्मय का उल्लेख करना महत्वपूर्ण है।
इस वाद के तथ्य में-
एक 'अ' सिडनी का मित्र अपने द्वारा लिखे गए चेक 786 रुपये और अपने परिवार के अन्य सदस्यों के चेक को एक लिफाफे में रखा और उसे भेजने के लिए लिफाफे पर पता लिखा- कमिश्नर टैक्सेसन, जार्ज स्ट्रीट, नार्थ सिडनी। सभी चेक आयकर निर्धारण में संदाय के लिए थे। सभी चेक 'बैंक' शब्द से साधारणतः क्रास थे। इन चेकों को किसी व्यक्ति ने चुरा लिया और चेक कमिश्नर आफ टैक्सेसन द्वारा कभी भी नकद नहीं कराए गए। इसके बाद एक व्यक्ति जिसने अपना नाम स्टेवर्ड थालोन बताते हुए प्रतिवादी बैंक, सिडनी में प्रवेश किया और कहा कि वह एक खाता खोलना चाहता है। बैंक के लेखाकार ने उस व्यक्ति से नाम और पता लिया।
इस आदमी ने सिडनी के सुप्रसिद्ध आवासीय चैम्बर्स का पता दिया। तब उसने 20 रुपये की धनराशि दी। लेखाकार ने 'पेड इन स्लिप' को भरा और सम्यक् रूप से खाता खोला और एक चेक बुक थालोन के नाम से जारी की। इसके दूसरे दिन चोरी गए चेकों को थालान के हाथ में आया और दूसरे दिन थालोन ने तीन धनराशि 483 रुपये, 260 रुपये एवं 50 रुपये अपने नाम से निकाली। इसके बाद थालोन कभी दिखाई नहीं दिया और यह पाया गया कि उसके दिए गये पते पर उस नाम का कोई व्यक्ति उस पते पर नहीं रहता था।
कमिश्नर ने तब एक वाद बैंक के विरुद्ध चेक के संपरिवर्तन के लिए लाया जिसकी अपील प्रिवी काउन्सिल में गयी। न्यू साउथ वेल्स के सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि बैंक उपेक्षा के लिए दोषी नहीं था। यह धारित किया गया कि थालोन द्वारा उपस्थापित चेक में कोई एलार्म या चेतावनी नहीं थी जिससे परिस्थितियों से कोई सन्देह उत्पन्न होता, यह धारित किया गया कि बैंक असावधान नहीं था।
धारा 131 के अधीन संरक्षण प्राप्त करने के लिए बैंकर पर यह आबद्धता है कि वह यह साबित करे -
उसने चेक का संग्रह सद्भावपूर्वक एवं बिना उपेक्षा के किया है। बैंक द्वारा उपेक्षा का बिल्कुल तथ्य का निर्णय है। वहाँ साक्ष्य यह दिखाते हैं कि जहाँ बैंक ने खाता खोलने के पूर्व ऐसे व्यक्ति के बारे में जानकारी नहीं की थी, यह धारित किया गया कि बैंक के उपेक्षा के सम्बन्ध में निर्णय में हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। वादी ने चेक को अभिलिखित परिदान किया। इसे हस्तक्षेप किया गया और धनराशि बढ़ायी गयी।
ऊपरवाल बैंक के वहाँ एक खाता पाने वाले के नाम से खोला गया। बैंक ने परिवर्तित धनराशि का संग्रह किया और निकासी अनुज्ञात किया। बैंक को वादी के नुकसान के लिए दायी ठहराया गया। बैंक को दोनों दशा में अर्थात् खाता खोलने एवं धनराशि को खाते में क्रेडिट करने के लिए बिना परिवर्तन को देखे एवं निकासी को अनुज्ञात करने में बैंक दोषी था। यह कथन कि चेक को अभिलिखित परिदान से भेजने में उपेक्षा बरती गयी थी द्वितीय अपील में प्रथम बार उठाने से मना कर किया गया।
निम्नलिखित सूचक सिद्धान्त जे० नोल्ड द्वारा मरफानी बनाम मिटलैण्ड बैंक लिबे के मामले में सुझाए गए-
सावधानों का स्तर बैंकर के सामान्य व्यवहारों से प्राप्त किया जाना चाहिए।
अपेक्षित सावधानी का स्तर खाते का माइक्रोस्कोपिक परीक्षण करना सम्मिलित करता है।
बैंक को एक नए ग्राहक को स्वीकार करने एवं नया खाता खोलने में उपेक्षा नहीं बरतनी चाहिए।
बैंक पर यह दायित्व है कि वह साबित करे कि उसने बिना उपेक्षा के कार्य किया है। सुप्रीम कोर्ट ने बैंक के इस कर्तव्य के सम्बन्ध में एक और बिन्दु को बल दिया है, अर्थात् एक ग्राहक के चेक का संग्रहण करने में बैंकर इस आवद्धता में होता है कि चेक को तत्काल बिना किसी विलम्ब के उपस्थापित करे जिससे परिस्थितियों के परिवर्तन से होने वाली हानि को बचाया जा सके