संयुक्त कब्जे और संपत्ति प्रशासन से संबंधित मुकदमों में Court Fee का निर्धारण – Rajasthan Court Fees Act, 1961 की धारा 36 और 37

संपत्ति के अधिकार और उसका निष्पक्ष वितरण (Fair Distribution) भारतीय समाज में हमेशा से विवाद का विषय रहा है। अक्सर लोग अदालत का दरवाजा तब खटखटाते हैं जब उन्हें उनके हिस्से की संपत्ति से वंचित कर दिया जाता है या वे यह महसूस करते हैं कि उन्हें उनकी वैधानिक हिस्सेदारी (Legal Share) नहीं मिल रही है।
इसी संदर्भ में दो प्रकार के मुकदमे आम तौर पर दाखिल किए जाते हैं—एक, जब Plaintiff को संयुक्त संपत्ति से बाहर कर दिया गया हो और वह Joint Possession की मांग करता है; और दूसरा, जब कोई संपत्ति या एस्टेट (Estate) का प्रशासन (Administration) अदालत से करवाना हो।
इन दोनों ही मामलों में Court Fee एक अहम विषय होता है, क्योंकि यह इस पर निर्भर करता है कि कौन कितने हिस्से का दावा कर रहा है, और कौन संपत्ति के किस हिस्से को लेकर Relief चाहता है। Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961 की धारा 36 और धारा 37 इन दोनों ही मामलों को विस्तृत रूप से स्पष्ट करती है।
इस लेख में हम धारा 36 और धारा 37 को क्रमवार और सरल भाषा में समझेंगे, उदाहरणों की सहायता से यह बताएँगे कि Court Fee किस प्रकार और कब देनी होगी।
धारा 36 – संयुक्त कब्जे की मांग वाले मुकदमे (Suit for Joint Possession)
जब कोई Plaintiff यह कहता है कि उसे संयुक्त परिवार की संपत्ति या साझे स्वामित्व (Common Ownership) वाली संपत्ति से बाहर कर दिया गया है और वह अब उस संपत्ति में Joint Possession चाहता है, यानी वह यह चाहता है कि उसे बाकी लोगों के साथ उस संपत्ति में रहने, उपयोग करने और हक जताने का अधिकार मिले, तो उसे Court Fee अपनी हिस्सेदारी की Market Value के अनुसार देनी होगी।
इस धारा में केवल एक स्थिति को कवर किया गया है—जब Plaintiff को बाहर कर दिया गया है और वह यह नहीं चाहता कि संपत्ति का बंटवारा हो, बल्कि वह बस यह चाहता है कि उसे भी उसी संपत्ति में शामिल किया जाए।
उदाहरण के तौर पर, यदि राम के तीन भाई हैं और सब मिलकर एक मकान में रहते हैं, लेकिन राम को घर से बाहर कर दिया गया है और वह अदालत में जाकर यह मांग करता है कि उसे दोबारा उस घर में रहने दिया जाए क्योंकि उसका भी 1/4 हिस्सा है, और अगर उस हिस्से की बाज़ार कीमत ₹10 लाख है, तो Court Fee ₹10 लाख के अनुसार लगेगी।
यह ध्यान देने योग्य बात है कि यहाँ Court Fee Market Value के आधार पर ही लगेगी क्योंकि Plaintiff अभी संपत्ति के कब्जे में नहीं है और उसे केवल बंटवारे की नहीं बल्कि पुनः प्रवेश (Re-entry) की आवश्यकता है।
धारा 37 – संपत्ति प्रशासन से संबंधित मुकदमे (Administration Suits)
जब कोई व्यक्ति अदालत से यह मांग करता है कि किसी मृतक की संपत्ति का प्रशासन (Administration of Estate) अदालत के निर्देशन में हो, यानी संपत्ति की सूची बनाई जाए, देनदारियाँ चुकाई जाएँ और लाभार्थियों को उनका हिस्सा बाँटा जाए, तब ऐसा मुकदमा Administration Suit कहलाता है।
धारा 37 में इस प्रकार के मुकदमों में Court Fee के निर्धारण की विस्तृत व्यवस्था दी गई है।
धारा 37(1): मूल Court Fee की गणना (Initial Fee as per Section 45)
जब कोई Plaintiff संपत्ति प्रशासन के लिए मुकदमा दायर करता है, तो उसे धारा 45 में दिए गए दरों (Rates) के अनुसार Court Fee देनी होगी। यहाँ केवल प्रक्रिया शुरू करने के लिए यह प्रारंभिक Fee होती है, जिसमें अभी यह तय नहीं होता कि किसे कितना हिस्सा मिलेगा।
उदाहरण के लिए, यदि गीता अपने मृत पिता की संपत्ति का प्रशासन अदालत से चाहती है क्योंकि संपत्ति का बंटवारा नहीं हुआ है और कोई Will भी नहीं है, तो उसे Section 45 के अनुसार निर्धारित Court Fee अदा करनी होगी।
धारा 37(2): Plaintiff को राशि या हिस्सा मिलने पर अतिरिक्त Fee की देनदारी (Additional Fee by Plaintiff when Share Found Due)
अगर मुकदमे की सुनवाई के दौरान अदालत यह पाती है कि Plaintiff को किसी खास राशि या संपत्ति का हिस्सा मिलना चाहिए, और उस हिस्से की Market Value के अनुसार Court Fee, पहले अदा की गई Fee से ज्यादा है, तो जब तक यह अंतर नहीं चुकाया जाएगा, तब तक न तो कोई भुगतान किया जाएगा और न ही Plaintiff के हक में कोई Decree पारित की जाएगी।
उदाहरण के लिए, कल्पना कीजिए कि मुकदमा दायर करते समय Plaintiff ने Court Fee ₹1,000 की दी थी, लेकिन अदालत के अनुसार उसे जो हिस्सा मिलना चाहिए उसकी Market Value ₹5 लाख है और इस पर ₹5,000 की Fee देनी चाहिए थी। तो अब अतिरिक्त ₹4,000 तब तक जमा नहीं होंगे, तब तक अदालत Plaintiff को उसका हिस्सा नहीं देगी।
धारा 37(3): Defendant के हक में राशि या हिस्सा तय होने पर Court Fee की आवश्यकता (Fee by Defendant for Relief Obtained)
यदि किसी Administration Suit में कोई Defendant को भी अदालत से यह अधिकार मिल जाता है कि उसे भी किसी राशि या संपत्ति का हिस्सा दिया जाए, तो वह तब तक अपनी संपत्ति प्राप्त नहीं कर सकेगा जब तक वह उस हिस्से की Market Value के अनुसार Court Fee अदा न कर दे।
इसका उद्देश्य यह है कि यदि Defendant को भी लाभ मिल रहा है, तो उसे भी Court Fee उसी तरह से देनी चाहिए जैसे Plaintiff को देना होता है।
उदाहरण के लिए, मुकदमे में गोविंद Defendant है और अदालत यह तय करती है कि उसे ₹2 लाख की संपत्ति मिलेगी, और इस हिस्से पर ₹2,000 की Court Fee बनती है, तो जब तक वह यह राशि जमा नहीं करेगा, उसे उसका हिस्सा नहीं मिलेगा।
धारा 37(4): पहले से दी गई Fee का समायोजन (Adjustment of Previously Paid Fee)
यदि Plaintiff या Defendant ने पहले किसी अन्य मुकदमे या प्रक्रिया में वही दावा करते हुए Court Fee दी है, तो उस Fee को इस मुकदमे में एडजस्ट किया जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि दुबारा उसी दावे पर Court Fee नहीं ली जाएगी, और पहले दी गई Fee को इसमें समाहित किया जाएगा।
उदाहरण के तौर पर, यदि Plaintiff ने पहले वसीयत (Will) को चुनौती देने वाले मुकदमे में ₹1,000 Court Fee दी थी, और अब वही हिस्सा उसे Administration Suit में मिल रहा है, तो उसकी पुरानी Fee को इस मुकदमे में गिन लिया जाएगा।
Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961 की धारा 36 और 37 संपत्ति विवादों के दो महत्वपूर्ण क्षेत्रों को कवर करती है—संयुक्त कब्जा और संपत्ति प्रशासन। धारा 36 स्पष्ट करती है कि जब Plaintiff को संयुक्त संपत्ति से बाहर कर दिया गया हो और वह संयुक्त कब्जे की मांग करता है, तो उसे Court Fee उसकी हिस्सेदारी की बाजार कीमत पर देनी होगी।
वहीं धारा 37 यह बताती है कि जब किसी मृतक की संपत्ति का प्रशासन अदालत से करवाया जाता है, तो प्रारंभिक Court Fee Section 45 के अनुसार देनी होती है, लेकिन अगर बाद में Plaintiff या Defendant को संपत्ति मिलती है, तो उन्हें उसके अनुसार अतिरिक्त Court Fee देनी होगी। यदि पहले किसी अन्य प्रक्रिया में Fee दी गई हो, तो उसका समायोजन भी किया जा सकता है।
इन दोनों धाराओं का उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना है, जहाँ न सिर्फ सही निर्णय हो, बल्कि सभी पक्ष न्याय के समान अवसर प्राप्त करें। Court Fee की स्पष्ट व्यवस्था यह सुनिश्चित करती है कि मुकदमेबाज़ी एक ईमानदार प्रक्रिया बनी रहे और कोई भी व्यक्ति गलत तरीके से संपत्ति हड़पने के लिए Court System का दुरुपयोग न कर सके।
इसलिए, धारा 36 और 37 संपत्ति से जुड़े न्यायिक विवादों में Court Fee को लेकर एक स्पष्ट, व्यावहारिक और न्यायसंगत व्यवस्था प्रस्तुत करती है।