
क्रॉस के क्रॉस को क्रॉस खोलना भी कहा जाता है। क्रॉस के खोलने या इसे रद्द करने के सम्बन्ध में कोई विशिष्ट उपबन्ध अधिनियम में नहीं है, परन्तु प्रथाओं से उत्पन्न और स्थापित हुआ है और अब यह बैंकिंग का स्थापित नियम बन गया है। रेखांकित चेकों का संदाय बैंक की खिड़की पर नकद नहीं किया जा सकता है एवं कभी-कभी रेखांकित चेक धारक को कठिनाई में डाल सकता है जहाँ उसका कोई बैंक खाता न हो अथवा तत्काल धन की आवश्यकता में हो, तब धारक क्रॉस को रद्द करने के लिए लेखीवाल के पास जा सकता है।
जब लेखीवाल क्रॉस को रद्द करता है और नकद भुगतान करे" चेक के ऊपर लिखकर अपना वैसा ही हस्ताक्षर करता है जैसा कि उसने चेक पर किया है, क्रॉस का खोलना होता है। अब यह खुला चेक के समान हो जाता है। जहाँ कई सह लेखीवाल हैं, वहाँ ऐसा सभी लेखीवालों के हस्ताक्षर से होना चाहिए।
सभी प्रकार के रेखांकन, सामान्य विशेष कुछ शब्दों के बिना या साथ अर्थात् "परक्राम्य नहीं", "एकाउन्ट पेयी" भी रद्द किया जा सकता है। इसे चेक का खोलना कहा जाता है। चेक का खोलना चेक के किसी भी स्तर पर किया जा सकता है। चेक का खोलना केवल लेखीवाल के द्वारा ही किया जा सकता है यहाँ तक कि जहाँ चेक का क्रॉस या विशिष्ट शब्दों का उल्लेख उसके द्वारा या उसके अभिकर्ता के द्वारा नहीं किया गया है।
"जब लेखीवाल ने चेक को अपने कब्जे से हटा दिया है तो वह अपने आदेश से न तो पीछे हट सकता है और न तो तटस्थ बना सकता है, किसी व्यक्ति के प्रतिकूल जिसने ऐसे विश्वास पर चेक को प्राप्त किया है पर अब इस सिद्धान्त में कोई बल नहीं है।
भुगतानी बैंक की सतर्कता- भुगतानी बैंक को चेक को खोलने में लेखीवाल के हस्ताक्षर की वैधता एवं सही होने के सम्बन्ध में बहुत ही सतर्कता बरतनी होगी अन्यथा बैंकर को कई खतरे हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, माना कि लेखीवाल एक रेखांकित चेक पाने वाले को पस्दित कर देता है और चेक किसी तरह से एक चोर के हाथ में आ जाता है और वह लेखीवाल के हस्ताक्षर एवं क्रॉस की कूटरचना करके बैंकर से चेक का नकद संदाय प्राप्त कर लेता है।
ऐसे मामले में बैंकर निश्चित ही अपने ग्राहक से डेबिट नहीं कर सकेगा और चेक के सही मालिक होने वाली हानि के प्रति दायी होगा इसका कोई मतलब नहीं होगा कि क्रॉस मूलतः लेखीवाल या पाने वाला द्वारा किया गया है।
इन दोनों मामलों में बैंकर ने क्रॉस के उल्लंघन में संदाय किया है। अतः बैंक को चेक का संदाय नहीं किया जाना चाहिए या और यदि संदत्त कर दिया जाता है तो ग्राहक एक नया चेक जारी करने की माँग कर सकता है।
क्रॉस को मिटाना या लुप्त करना-
क्रॉस चेक को किसी गलत व्यक्ति को संदाय लेने से संरक्षण प्रदान करता है। कभी-कभी बेईमान व्यक्ति क्रॉस को मिटाते या लुप्त करते हैं, इस बारीकी के साथ कि बैंकर इसे समझ न सके एवं बावजूद अपनी ओर से अधिक से अधिक प्रयास से बैंक ऐसे मिटाने या लुप्त करने को खोजने में असफल रहता है और चेक को खुले चेक के समान संदाय कर देता है। ऐसी दशा में परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 89 के अधीन भुगतानी बैंकर का संरक्षण उबन्धित है।
इसके अनुसार-
"जहाँ कि वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक तात्विक रूप में परिवर्तित किया गया है, किन्तु यह प्रतीत नहीं होता है कि वह ऐसे परिवर्तित किया गया है या जहाँ कि ऐसा चेक जो कि उपस्थापन के समय ऐसा प्रतीत नहीं होता कि वह क्रास किया हुआ है अथवा उदर पर क्रासिंग थी, जो मिटा दी गई है, संदाय के लिए उपस्थापित किया जाता है, वहाँ संदाय के लिए दायी व्यक्ति या बैंककार द्वारा उसका संदाय और संदाय के समय उसके प्रकट शब्दों के अनुकूल संदाय और सम्यक् अनुक्रम में अन्यथा उसके संदाय से ऐसा व्यक्ति या बैंककार उसके सब दायित्व से उन्मोचित हो जाएगा और ऐसा संदाय लिखत के परिवर्तित किए जाने या चेक के क्रास किए जाने के कारण प्रश्नगत न किया जाएगा।"
अतः यह स्पष्ट है कि बैंकर सम्यक् अनुक्रम में संदाय से उन्मोचित हो सकेगा भुगतानी बैंक इस धारा के अधीन संरक्षण पाने का हकदार होगा, यदि:-
चेक का क्रास होना मालूम नहीं होता है
चेक पर क्रासिंग है
क्रासिंग को मिटा दिया गया है, जो ऐसे दिखाई नहीं देता है, अर्थात् क्रासिंग को मिटाना स्पष्ट नहीं होता है
चेक के प्रकट शब्दों के अनुसार सम्यक् रूप से संदाय कर दिया जाता है
भुगतानी बैंक अपने दायित्व से उन्मुक्त हो जाएगा यदि ऐसे चेक का संदाय उपस्थापन पर बैंक अपने काउन्टर पर कर देता है। वह चेक की धनराशि को लेखीवाल के खाते से डेबिट कर सकेगा।