दूसरी पत्नी और उसके बच्चों को क्या कानूनी अधिकार होते हैं जानिए प्रावधान

Update: 2022-01-23 07:30 GMT

भारतीय कानून में दूसरे विवाह को प्रतिबंधित करने का प्रयास किया गया है। इस उद्देश्य से ही भारतीय दंड संहिता की धारा 494 में पहली पत्नी के रहते हुए दूसरा विवाह करना दंडनीय अपराध बनाया गया है। इससे यह प्रतीत होता है कि कानून ने एक पत्नी सिद्धांत को अपनाया है, इसके बाद भारत में कुछ प्रथाओं के अंतर्गत दूसरी शादी को मान्यता दी गई है।

कानून की मनाही के बाद भी दूसरी शादी के अनेक प्रकरण सामने आते हैं। अब यहां पर एक विवादास्पद स्थिति उत्पन्न हो जाती है की दूसरी शादी जिस महिला से की गई है उस महिला के अधिकार क्या होंगे और उससे जो संतान उत्पन्न हुई है, उनके अधिकार क्या होंगे।

अगर किसी व्यक्ति की पहली पत्नी मर चुकी है या उसकी पहली पत्नी से उसका तलाक हो गया है, तब कानून दूसरी शादी करने पर दूसरी पत्नी को पहली पत्नी ही मानता है, लेकिन पहली पत्नी जीवित है, पहली पत्नी से तलाक नहीं हुआ है, उसके बाद किसी व्यक्ति द्वारा दूसरा विवाह कर लिया जाता है, तब उसे दूसरी पत्नी कहा जाता है।

ऐसा दूसरा विवाह हिंदू मैरिज एक्ट,1955 और विशेष विवाह अधिनियम,1956 दोनों के ही अंतर्गत अवैध होता है और इसे शून्य विवाह माना गया है। हालांकि ऐसी शादी साफ तौर पर शून्य मानी गई है अर्थात इसका कोई भी अस्तित्व नहीं होता है।

लेकिन कानून इस मामले में एक महिला और बच्चों के प्रति कानून उदार होता है। बच्चे प्रकृति की देन है, किसी भी बच्चे के पैदा होने में उसका कोई भी हाथ नहीं होता है, न ही उसका कोई निर्णय होता है। अगर किसी अवैध शादी से कोई बच्चा पैदा हो गया है, तब उस बच्चे को दंडित नहीं किया जा सकता।

दूसरी पत्नी के अधिकार

अगर पहली पत्नी के जीवित होते हुए दूसरा विवाह कर लिया गया है, तब ऐसी पत्नी दूसरी पत्नी कहलाती है। इस दूसरी पत्नी को भी कानून ने कुछ अधिकार दिए हैं। इस दूसरी पत्नी को अपने पति से भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार है, पर कानून यहां पर उस दूसरी पत्नी को पति की स्वयं अर्जित संपत्ति या उसकी पैतृक संपत्ति के हिस्से में या उसकी किसी अन्य पैतृक संपत्ति में कोई भी कानूनी अधिकार नहीं देता है।

यहाँ यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि दूसरी पत्नी को संपत्ति में किसी भी प्रकार का कोई अधिकार नहीं होता है। अगर उसके पति की मौत हो जाती है और उसके पति ने कोई संपत्ति स्वयं से अर्जित की है या उसके पति को अपने परिवार से पैतृक संपत्ति में कोई हिस्सा मिला है, तब उसकी पत्नी को कोई अधिकार नहीं मिलता है।

वह व्यक्ति अपने जीवित रहते कोई न कोई फैसला ले कर दूसरी पत्नी के हिस्से में कोई संपत्ति वसीयत दान के माध्यम से तो दे सकता है, लेकिन अगर वह बगैर कोई फैसला लिए मर जाता है, तब उसकी पत्नी न्यायालय में यह क्लेम नहीं कर सकती कि वह उसकी उत्तराधिकारी है। दूसरी पत्नी को किसी भी सूरत में उत्तराधिकारी नहीं माना गया है, अगर वह दूसरी पत्नी है, तब पति का उत्तराधिकार उसकी पहली पत्नी को ही मिलेगा जो उसकी वैध पत्नी है।

भरण पोषण मांग सकती है

दूसरी पत्नी के मामले में कानून ने थोड़ा सा उदार रवैया रखा है। दूसरी पत्नी को भरण-पोषण का अधिकार दिया है। कोई भी दूसरी पत्नी अगर अपने पति से अलग रह रही है और ऐसे अलग रहने का कारण युक्तियुक्त है, तब दूसरी पत्नी न्यायालय में भरण पोषण के लिए मुकदमा ला सकती है। ऐसा भरण पोषण के लिए मुकदमा दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के अंतर्गत लाया जाता है या फिर घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के अंतर्गत लाया जाता है या फिर हिंदू मैरिज एक्ट के अंतर्गत भी लाया जा सकता है।

यह तीनों कानून भरण पोषण के संबंध में व्यवस्था करते हैं। आमतौर पर लोगों द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत भरण पषण की मांग की जाती है। दूसरी पत्नी भी इस धारा के अंतर्गत भरण पोषण की मांग कर सकती है।

दूसरी पत्नी के बच्चों के अधिकार

अगर किसी व्यक्ति ने अपनी पहली पत्नी के जीवित रहते उससे तलाक हुए बगैर कोई दूसरा विवाह कर लिया है, तब ऐसे विवाह से कोई संतान उत्पन्न हो गई है, ऐसी संतान के प्रति भारतीय कानून उदार है।

कानून बच्चों को किसी प्रकार का दंड नहीं देना चाहता है। एक बालक के पैदा होने में उसका अपना कोई हाथ नहीं है। इस सिद्धांत को मानते हुए हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 16 में दूसरी पत्नी से होने बच्चों को भी वैध बच्चों की तरह ही अधिकार दिए गए है।

जिस तरह से एक वैध बच्चा अपने पिता की संपत्ति में विरासत के लिए अधिकार रखता है, इसी प्रकार से दूसरी पत्नी से हुए बच्चे भी संपत्ति में अधिकार रखते हैं। अगर उस व्यक्ति की मृत्यु बगैर कोई वसीयत किए हो जाती है या अपनी संपत्ति के संबंध में बगैर कोई निर्णय लिए हो जाती है, तब दूसरी पत्नी के बच्चे भी उत्तराधिकार के लिए न्यायालय में उसी तरीके से मुकदमा ला सकते हैं, जिस तरीके से पहली पत्नी के बच्चे लाते हैं।

पैतृक संपत्ति में दूसरी पत्नी के बच्चों का अधिकार

दूसरी पत्नी से होने वाले बच्चों का पैतृक संपत्ति के मामले में अधिकार पहली पत्नी के बच्चों की तरह ही होता है। अंतर केवल इतना है कि उनके पिता को पैतृक संपत्ति में कोई हिस्सा मिला था और पिता की मृत्यु हो जाती है, तब वह अपने हिस्से की मांग कर सकते हैं, उन्हें पैतृक संपत्ति में मिले हिस्से में से भी उत्तराधिकार मिलता है, लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि पैतृक संपत्ति में उत्तराधिकार तब ही मिलता है जब उसके पिता को कोई हिस्सा मिल गया हो।

अगर पैतृक संपत्ति संयुक्त है, तब दूसरी पत्नी के बच्चे उत्तराधिकार की मांग नहीं कर सकते। दूसरी पत्नी के बच्चे संपत्ति में उत्तराधिकार के साथ भरण पोषण का अधिकार भी रखते हैं, वह अपने पिता से भरण-पोषण भी मांग सकते हैं।

दूसरी पत्नी के सौतेले बच्चों के अधिकार

अनेक बार यह होता है कि जब किसी व्यक्ति द्वारा किसी महिला से विवाह किया जाता है, तब उस महिला के पहले पति से भी कोई बच्चे होते हैं। ऐसे बच्चे उसके दूसरे पति के लिए सौतेले बच्चे माने जाते हैं। इन सौतेले बच्चों को महिला के दूसरे पति की संपत्ति में किसी भी प्रकार का कोई अधिकार नहीं होता है, उन्हें अपने नेचुरल पिता से ही संपत्ति में अधिकार मिल सकता है।

सौतेले पिता से किसी प्रकार का अधिकार नहीं लिया जा सकता। अगर उस सौतेले पिता ने कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से उस महिला के पहले पति से हुए बच्चों को गोद ले लिया है तब उन्हें पिता की विरासत में अधिकार मिल जाएगा।

अगर किसी महिला ने किसी व्यक्ति से दूसरा विवाह किया है और अपने साथ कोई बच्चे लाई है तब उसे यह ध्यान रखना चाहिए कि दूसरे पति से उस बच्चे को कोई अधिकार नहीं मिलेगा। इसके लिए उसे अपने दूसरे पति को बच्चा गोद लेने को कहना चाहिए, तब ही वह बच्चा विरासत में कोई अधिकार रख पाएगा या फिर उस बच्चे के पक्ष में उस पति के जीवन काल में ही कोई न कोई फैसला लेना चाहिए।

अन्यथा उस बच्चे के संबंध में अन्याय हो सकता है। ऐसे बच्चे के लिए भरण पोषण भी उसके पहले पिता से ही लिया जा सकता है, सौतेला पिता भरण पोषण का भी दायित्व नहीं रखता है और न ही सौतेले पिता की पैतृक संपत्ति में बच्चे का कोई अधिकार होता है।

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