मैजिस्ट्रेट के सामने कैसे शिकायत की जाती हैं : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 223 और 224

Update: 2024-10-10 11:46 GMT

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023), जो 1 जुलाई 2024 को लागू हुई, ने दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code - CrPC) को प्रतिस्थापित कर दिया है। इस नई कानूनी ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा यह है कि कैसे मैजिस्ट्रेट के सामने शिकायतें की जाती हैं और किस प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है।

इस संहिता के अध्याय 16 (Chapter 16) में यह विस्तार से बताया गया है कि मैजिस्ट्रेट शिकायतों को कैसे संभालता है, शिकायतकर्ता और गवाहों की जाँच कैसे करता है, और सरकारी सेवकों से जुड़े मामलों को कैसे निपटाता है।

इस लेख में हम धारा 223 और 224 की सरल व्याख्या करेंगे, जिससे मैजिस्ट्रेट की प्रक्रियाओं को समझने में आसानी होगी।

धारा 223: शिकायतकर्ता और गवाहों की जांच (Examination of Complainant and Witnesses)

धारा 223(1) के अनुसार, जब कोई शिकायत मैजिस्ट्रेट के सामने लाई जाती है, तो मैजिस्ट्रेट निम्नलिखित प्रक्रिया का पालन करेगा:

• शिकायतकर्ता और उपस्थित गवाहों की शपथ के तहत जाँच: मैजिस्ट्रेट शिकायतकर्ता और उपस्थित गवाहों की जाँच करेगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दी गई जानकारी सत्य है।

• जाँच को लिखित रूप में दर्ज करना: इस जाँच का सार लिखित रूप में दर्ज किया जाएगा, और इसे शिकायतकर्ता, गवाहों और मैजिस्ट्रेट द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा ताकि यह प्रमाणित हो सके कि जानकारी सत्यापित है।

लेकिन कुछ मामलों में इस प्रक्रिया से छूट दी जाती है, जैसा कि पहले उपबंध (proviso) में बताया गया है:

• आरोपी को सुनवाई का अवसर देना: किसी अपराध का संज्ञान लेने से पहले, मैजिस्ट्रेट को आरोपी को सुनवाई का मौका देना जरूरी है ताकि उसे अपनी बात रखने का मौका मिले।

दूसरा उपबंध बताता है कि किन मामलों में शिकायतकर्ता और गवाहों की जाँच की आवश्यकता नहीं होती:

• सरकारी सेवक द्वारा की गई शिकायत: अगर कोई सरकारी सेवक अपनी सरकारी ड्यूटी के तहत शिकायत करता है या अगर अदालत शिकायत करती है, तो जाँच की जरूरत नहीं होती।

• मामले का हस्तांतरण (Transfer of case): अगर मैजिस्ट्रेट मामले को आगे की जांच या ट्रायल के लिए धारा 212 के तहत दूसरे मैजिस्ट्रेट को भेजता है, तो पहले से की गई जाँच पर्याप्त होगी और उसे दोबारा जाँचने की जरूरत नहीं होती।

उदाहरण के तौर पर, अगर कोई पुलिस अधिकारी अपनी सरकारी ड्यूटी के तहत शिकायत करता है, तो मैजिस्ट्रेट को शिकायतकर्ता और गवाहों की जाँच करने की आवश्यकता नहीं होगी। इसी तरह, अगर मामला दूसरे मैजिस्ट्रेट के पास भेजा जाता है, तो फिर से जाँच करने की जरूरत नहीं होती।

धारा 223(2): सरकारी सेवकों के खिलाफ शिकायत (Complaints Against Public Servants)

सरकारी सेवकों को इस धारा के तहत विशेष सुरक्षा प्रदान की गई है। अगर किसी सरकारी सेवक के खिलाफ शिकायत की जाती है, जिसने अपनी सरकारी ड्यूटी के दौरान अपराध किया हो, तो मैजिस्ट्रेट संज्ञान नहीं ले सकता जब तक कि ये दो शर्तें पूरी न हो:

• घटना का स्पष्टीकरण देने का अवसर: सरकारी सेवक को यह मौका दिया जाता है कि वह अपने पक्ष को स्पष्ट कर सके और यह बता सके कि किस परिस्थिति में यह घटना घटी।

• उच्च अधिकारी से रिपोर्ट प्राप्त करना: मैजिस्ट्रेट तब तक संज्ञान नहीं लेगा जब तक कि उस सरकारी सेवक के वरिष्ठ अधिकारी से घटना से जुड़ी रिपोर्ट प्राप्त न हो जाए। इस रिपोर्ट से मैजिस्ट्रेट को सही स्थिति का पता चलेगा।

उदाहरण के लिए, अगर किसी सरकारी अधिकारी पर उनकी सरकारी ड्यूटी के दौरान दुर्व्यवहार का आरोप लगता है, तो अदालत बिना उनके स्पष्टीकरण और वरिष्ठ अधिकारी की रिपोर्ट के आगे नहीं बढ़ सकती।

धारा 224: मैजिस्ट्रेट की क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) नहीं होने की स्थिति में प्रक्रिया

कुछ मामलों में, शिकायत ऐसे मैजिस्ट्रेट के पास लाई जा सकती है, जिसके पास उस मामले का अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) नहीं होता।

धारा 224 में बताया गया है कि ऐसे मामलों में क्या प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए:

• लिखित शिकायत: अगर शिकायत लिखित रूप में है, तो मैजिस्ट्रेट उसे वापस कर देगा और शिकायतकर्ता को सही अदालत में दाखिल करने का निर्देश देगा।

• मौखिक शिकायत: अगर शिकायत मौखिक रूप में है, तो मैजिस्ट्रेट शिकायतकर्ता को सही अदालत का निर्देश देगा, ताकि वह वहां मामला दर्ज करा सके।

उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति ऐसा मामला दर्ज कराता है जो मैजिस्ट्रेट की क्षमता से बाहर हो, तो मैजिस्ट्रेट उस शिकायत को सही अदालत में भेजने का निर्देश देगा।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 ने मैजिस्ट्रेट के सामने शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है। धारा 223 के तहत, शिकायतकर्ता और गवाहों की जाँच की प्रक्रिया निर्धारित की गई है, साथ ही सरकारी सेवकों से जुड़े मामलों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं।

धारा 224 में यह बताया गया है कि अगर किसी मैजिस्ट्रेट के पास मामले का अधिकार क्षेत्र नहीं है, तो उसे कैसे निपटाना चाहिए।

इन प्रावधानों से यह सुनिश्चित होता है कि शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया सरल और न्यायसंगत हो, चाहे वह आम नागरिक हो या सरकारी सेवक। इसके अलावा, यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि मामले सही अदालत में दर्ज हों और सरकारी अधिकारी अपने आधिकारिक कर्तव्यों के दौरान नाहक परेशान न किए जाएं।

इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए, पाठक Live Law Hindi पर पिछले लेखों का संदर्भ ले सकते हैं, जिनमें धारा 220 और 221 के प्रावधानों की चर्चा की गई है।

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