धारा 225 और उससे संबंधित प्रावधानों की विस्तृत व्याख्या: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023

Update: 2024-10-11 13:53 GMT

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) ने 1 जुलाई, 2024 से दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) को प्रतिस्थापित कर दिया है। इस नई संहिता के तहत न्यायिक प्रक्रिया में विभिन्न सुधार और नए प्रावधान लाए गए हैं।

इसमें धारा 225 को विशेष महत्व दिया गया है, जो मैजिस्ट्रेट को शिकायत पर कार्रवाई करने से पहले जांच करने और अन्य निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करती है। इस लेख में हम धारा 225 के साथ-साथ धारा 223 और धारा 224 पर भी चर्चा करेंगे, जो मैजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेने की प्रक्रिया को और भी स्पष्ट करती हैं।

धारा 225: मैजिस्ट्रेट की जांच और प्रक्रिया जारी करने की शक्ति

धारा 225 के तहत, मैजिस्ट्रेट के पास कुछ महत्वपूर्ण शक्तियाँ होती हैं, जो शिकायत मिलने पर जांच करने और आगे की कार्रवाई तय करने में सहायक होती हैं। इस धारा को तीन प्रमुख हिस्सों में विभाजित किया गया है:

धारा 225(1): मैजिस्ट्रेट की प्रारंभिक जांच करने की शक्ति

जब कोई मैजिस्ट्रेट किसी अपराध की शिकायत प्राप्त करता है, जिसके अपराध का वह संज्ञान ले सकता है या जो उसे धारा 212 के तहत सौंपा गया है, तो वह आरोपी के खिलाफ प्रक्रिया जारी करने से पहले जांच कर सकता है।

मैजिस्ट्रेट के पास यह अधिकार है कि वह:

• आरोपी के खिलाफ कार्रवाई को स्थगित कर सकता है: अगर आरोपी उस क्षेत्र के बाहर रहता है, जहाँ मैजिस्ट्रेट का अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) नहीं है, तो वह जांच करने के बाद ही कार्रवाई करेगा।

• स्वयं जांच कर सकता है या जांच का आदेश दे सकता है: मैजिस्ट्रेट स्वयं मामले की जांच कर सकता है या किसी पुलिस अधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति को जांच करने का निर्देश दे सकता है।

हालांकि, कुछ मामलों में जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता, जैसे:

• अगर अपराध ऐसा है जिसे केवल अधिवेशन न्यायालय (Court of Session) द्वारा सुना जा सकता है।

• अगर शिकायत किसी अदालत द्वारा नहीं की गई है, तो तब तक जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता जब तक शिकायतकर्ता और गवाहों की शपथ पर जाँच नहीं की गई हो, जैसा कि धारा 223 में निर्धारित है।

धारा 225(2): गवाहों से साक्ष्य लेने की प्रक्रिया

धारा 225(2) के अनुसार, मैजिस्ट्रेट गवाहों से शपथ पर साक्ष्य ले सकता है, अगर उसे यह आवश्यक लगता है। लेकिन अगर शिकायत ऐसा अपराध दर्शाती है जिसे केवल अधिवेशन न्यायालय द्वारा सुना जा सकता है, तो मैजिस्ट्रेट को शिकायतकर्ता से सभी गवाहों को बुलाकर शपथ पर साक्ष्य लेना होगा।

उदाहरण के लिए, अगर किसी गंभीर अपराध, जैसे हत्या की शिकायत की जाती है, जो कि अधिवेशन न्यायालय द्वारा सुनी जा सकती है, तो मैजिस्ट्रेट को गवाहों की शपथ पर जांच करनी होगी।

धारा 225(3): पुलिस अधिकारी के अलावा अन्य द्वारा जांच

धारा 225(3) में यह व्यवस्था की गई है कि अगर जांच का आदेश किसी ऐसे व्यक्ति को दिया जाता है जो पुलिस अधिकारी नहीं है, तो उसे जांच के दौरान पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी की सभी शक्तियां प्राप्त होंगी। केवल, उसे बिना वारंट के गिरफ्तारी करने का अधिकार नहीं होगा।

उदाहरण के लिए, अगर मैजिस्ट्रेट किसी गैर-पुलिस व्यक्ति को जांच का आदेश देता है, तो वह व्यक्ति जांच के दौरान वही अधिकार प्रयोग कर सकता है, जो एक पुलिस अधिकारी करता है। हालांकि, उसे गिरफ्तारी के लिए वारंट की आवश्यकता होगी।

धारा 223: शिकायतों पर मैजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेना

धारा 223 में यह प्रावधान है कि जब मैजिस्ट्रेट किसी अपराध की शिकायत पर संज्ञान लेता है, तो उसे शिकायतकर्ता और गवाहों से शपथ पर साक्ष्य लेना होगा।

लेकिन इसके कुछ अपवाद भी हैं, जैसे कि:

• अगर शिकायत किसी लोक सेवक (Public Servant) द्वारा की गई है, तो मैजिस्ट्रेट को शिकायतकर्ता और गवाहों से शपथ पर साक्ष्य लेने की आवश्यकता नहीं होती।

• अगर मैजिस्ट्रेट मामला किसी दूसरे मैजिस्ट्रेट को धारा 212 के तहत सौंपता है, तो दूसरे मैजिस्ट्रेट को शिकायतकर्ता और गवाहों को फिर से नहीं जांचना होता।

यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि शिकायत के समय उचित जाँच हो और आरोपी को पर्याप्त सुनवाई का अवसर मिले।

धारा 224: अयोग्य मैजिस्ट्रेट द्वारा शिकायत की स्थिति में प्रक्रिया

धारा 224 के तहत, अगर किसी ऐसे मैजिस्ट्रेट के पास शिकायत की जाती है, जो उस अपराध का संज्ञान लेने के लिए अधिकृत नहीं है, तो उस स्थिति में:

• अगर शिकायत लिखित रूप में है, तो मैजिस्ट्रेट उसे शिकायतकर्ता को वापस कर देगा और उसे उचित न्यायालय में पेश करने का निर्देश देगा।

• अगर शिकायत मौखिक रूप में की गई है, तो मैजिस्ट्रेट शिकायतकर्ता को उचित न्यायालय में जाने का निर्देश देगा।

इस धारा का उद्देश्य यह है कि शिकायतें केवल उन्हीं मैजिस्ट्रेट के पास जाएं, जिनके पास उस विशेष अपराध का संज्ञान लेने का अधिकार है। यह न्यायिक प्रक्रिया में अनुशासन बनाए रखने का एक महत्वपूर्ण तरीका है।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत धारा 225, धारा 223, और धारा 224 में मैजिस्ट्रेट के पास जांच, सुनवाई, और प्रक्रिया जारी करने के अधिकार स्पष्ट रूप से दिए गए हैं। इन प्रावधानों का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्यायिक प्रक्रिया सुचारू और पारदर्शी हो, और शिकायतकर्ता व आरोपी दोनों के अधिकारों की रक्षा की जा सके।

धारा 225 के माध्यम से मैजिस्ट्रेट को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी शिकायत की जांच स्वयं कर सकता है या किसी पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति को जांच का आदेश दे सकता है। इसके साथ ही, धारा 223 और धारा 224 यह सुनिश्चित करती हैं कि अगर किसी मैजिस्ट्रेट के पास शिकायत की जाती है, तो वह उचित सुनवाई और जांच के बाद ही आगे की कार्रवाई करेगा।

पाठक Live Law Hindi पर पिछले लेखों को पढ़ सकते हैं, जहाँ धारा 223 और धारा 224 की और भी विस्तृत जानकारी दी गई है।

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