भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 395 के तहत मुकदमे की लागत और पीड़ितों की क्षति पूर्ति

Update: 2025-03-22 12:18 GMT
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 395 के तहत मुकदमे की लागत और पीड़ितों की क्षति पूर्ति

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 395 यह तय करती है कि अदालत द्वारा लगाए गए जुर्माने (Fine) की राशि को कैसे उपयोग किया जाएगा और पीड़ितों (Victims) को मुआवजा (Compensation) देने के लिए क्या प्रावधान हैं।

यह धारा अपराधियों द्वारा भरे गए जुर्माने को न्यायपूर्ण तरीके से वितरित करने की व्यवस्था करती है ताकि इससे मुकदमे की लागत पूरी हो सके, पीड़ितों को वित्तीय राहत मिल सके और अपराध के कारण हुए नुकसान की भरपाई हो सके। यह प्रावधान न्याय को केवल सजा तक सीमित नहीं रखता, बल्कि अपराध से प्रभावित व्यक्तियों को मदद पहुंचाने का भी प्रयास करता है।

जुर्माने (Fine) की राशि का उपयोग

जब किसी अपराधी को अदालत द्वारा सजा दी जाती है और उसमें जुर्माना भी शामिल होता है (चाहे मौत की सजा हो या अन्य सजा), तो अदालत यह तय कर सकती है कि उस जुर्माने की राशि का उपयोग कहां किया जाएगा। यह उपयोग मुख्य रूप से निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए किया जाता है:

मुकदमे की लागत चुकाने के लिए (Defraying Prosecution Expenses)

अगर मुकदमे (Trial) के दौरान सरकार या अभियोजन पक्ष (Prosecution) को कोई खर्च उठाना पड़ा है, तो अदालत यह आदेश दे सकती है कि अपराधी से वसूले गए जुर्माने का एक हिस्सा इन खर्चों को पूरा करने के लिए दिया जाए।

उदाहरण के लिए, अगर किसी मामले में गवाहों की सुरक्षा, फॉरेंसिक जांच (Forensic Investigation) और अदालत की लंबी सुनवाई पर अधिक खर्च हुआ है, तो अदालत यह आदेश दे सकती है कि इन खर्चों को अपराधी द्वारा भरे गए जुर्माने से पूरा किया जाए।

पीड़ित को हुए नुकसान या चोट के लिए मुआवजा (Compensation for Loss or Injury)

अगर अदालत को लगता है कि अपराध से किसी व्यक्ति को आर्थिक नुकसान (Financial Loss) या शारीरिक चोट (Physical Injury) पहुंची है, और वह व्यक्ति दीवानी अदालत (Civil Court) में मुआवजे का दावा कर सकता है, तो अदालत सीधे ही जुर्माने की राशि से उसे मुआवजा दे सकती है। इससे पीड़ित को लंबी कानूनी प्रक्रिया से बचाकर जल्दी राहत मिलती है।

उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यापारी (Shopkeeper) के साथ धोखाधड़ी (Fraud) की जाती है और उसका आर्थिक नुकसान होता है, तो अदालत अपराधी पर जुर्माना लगाकर उस पैसे का एक हिस्सा व्यापारी को दे सकती है ताकि उसे तुरंत राहत मिल सके।

मृत्यु के मामलों में मुआवजा (Compensation in Cases of Death)

अगर कोई व्यक्ति किसी की मृत्यु का कारण बनता है या किसी हत्या (Murder) में सहायता करता है, तो अदालत उस व्यक्ति पर लगाए गए जुर्माने का उपयोग मृतक (Deceased) के परिवार को मुआवजा देने के लिए कर सकती है। यह प्रावधान फ़ेटल एक्सीडेंट्स एक्ट, 1855 (Fatal Accidents Act, 1855) के तहत आता है, जिसमें मृतक के परिवार को नुकसान की भरपाई करने का अधिकार दिया गया है।

उदाहरण के लिए, अगर किसी की लापरवाही से हुई गाड़ी दुर्घटना (Reckless Driving) में किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है, तो अदालत अपराधी पर जुर्माना लगाकर मृतक के परिवार को मुआवजा देने का आदेश दे सकती है।

संपत्ति से जुड़े अपराधों में मुआवजा (Compensation in Property Offenses)

अगर कोई व्यक्ति चोरी (Theft), आपराधिक विश्वासघात (Criminal Breach of Trust), धोखाधड़ी (Cheating), या चुराई गई संपत्ति को जानबूझकर खरीदने जैसे अपराधों में दोषी पाया जाता है, तो अदालत उस जुर्माने से निर्दोष खरीदार (Bona Fide Purchaser) को मुआवजा दे सकती है।

उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति एक चोरी की गई कार खरीद लेता है और बाद में वह कार असली मालिक को लौटा दी जाती है, तो उस खरीदार को हुए वित्तीय नुकसान की भरपाई अदालत अपराधी द्वारा दिए गए जुर्माने से कर सकती है।

अपील योग्य मामलों (Appealable Cases) में मुआवजे का भुगतान

अगर कोई मामला अपील योग्य (Appealable) है, तो अदालत द्वारा दिया गया मुआवजा तुरंत नहीं दिया जाएगा। जब तक अपील करने की समयसीमा खत्म नहीं हो जाती या, अगर अपील की गई है, तब तक अदालत का अंतिम निर्णय नहीं आ जाता, तब तक मुआवजे की राशि किसी को नहीं दी जाएगी।

उदाहरण के लिए, अगर अदालत ने किसी व्यक्ति को धोखाधड़ी के मामले में दोषी ठहराकर जुर्माना लगाया और पीड़ित को मुआवजा देने का आदेश दिया, लेकिन अपराधी ने फैसले के खिलाफ अपील कर दी, तो मुआवजे की राशि तब तक नहीं दी जाएगी जब तक उच्च अदालत (Higher Court) अपील पर फैसला नहीं सुना देती।

जब कोई जुर्माना (Fine) नहीं लगाया जाता तब भी मुआवजा (Compensation) दिया जा सकता है

यह धारा अदालत को यह शक्ति देती है कि वह अपराधी को मुआवजा देने का आदेश दे, भले ही उस पर कोई जुर्माना न लगाया गया हो। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पीड़ित को न्याय मिले और उसे आर्थिक सहायता भी मिले।

उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति को शारीरिक हमले (Assault) के मामले में जेल की सजा दी गई है लेकिन कोई जुर्माना नहीं लगाया गया है, तो अदालत उसे आदेश दे सकती है कि वह पीड़ित को चिकित्सा खर्च (Medical Expenses) और अन्य नुकसान की भरपाई के लिए मुआवजा दे।

अपील अदालत (Appellate Court) या उच्च न्यायालय (High Court) द्वारा मुआवजे का आदेश

मुआवजा देने का अधिकार केवल निचली अदालत (Trial Court) तक सीमित नहीं है। उच्च न्यायालय (High Court) या सत्र न्यायालय (Court of Session) भी अपने पुनरीक्षण (Revision) के अधिकार का उपयोग करते हुए मुआवजे का आदेश दे सकती है।

उदाहरण के लिए, अगर निचली अदालत ने एक ठगी (Fraud) के मामले में आरोपी को सजा दी लेकिन पीड़ित को मुआवजा नहीं दिया, तो उच्च अदालत अपने फैसले में बदलाव कर सकती है और पीड़ित को मुआवजा देने का आदेश दे सकती है।

दीवानी मुकदमे (Civil Suit) में मुआवजे का प्रभाव

अगर कोई पीड़ित मुआवजे के लिए दीवानी अदालत (Civil Court) में मुकदमा दायर करता है, तो अदालत को यह ध्यान में रखना होगा कि अपराधी पहले ही उसे कितना मुआवजा दे चुका है। यह प्रावधान दोहरी भरपाई (Double Recovery) से बचाने के लिए रखा गया है।

उदाहरण के लिए, अगर एक व्यापारी को धोखाधड़ी के कारण ₹50,000 का नुकसान हुआ और उसे अदालत से ₹30,000 का मुआवजा पहले ही मिल चुका है, तो अगर वह दीवानी अदालत में और मुआवजे के लिए मुकदमा करता है, तो अदालत पहले दिए गए ₹30,000 को ध्यान में रखेगी।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 395 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो अपराध से प्रभावित लोगों को न्यायसंगत राहत देने का काम करता है। यह केवल अपराधियों को दंडित करने तक सीमित नहीं है,बल्कि पीड़ितों की सहायता करने और उनके वित्तीय नुकसान की भरपाई करने की व्यवस्था भी करता है।

यह धारा अदालत को यह अधिकार देती है कि वह मुकदमे के खर्च, पीड़ित को हुए नुकसान, मृत्यु के मामलों में परिवार की सहायता, और निर्दोष खरीदारों के हितों की रक्षा के लिए जुर्माने की राशि का उचित उपयोग कर सके। इससे न केवल पीड़ितों को जल्द न्याय मिलता है, बल्कि अपराध से हुए नुकसान की भरपाई भी सुनिश्चित होती है।

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