क्या चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी FIR रद्द किया जा सकता है?

Update: 2024-09-20 13:09 GMT

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट को यह शक्ति प्रदान की गई है कि वह एफआईआर (FIR) और आपराधिक कार्यवाही (Criminal Proceedings) को रद्द कर सकता है, जिससे न्याय की रक्षा हो और न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग (Abuse of Process) रोका जा सके।

सवाल उठता है कि क्या चार्जशीट (Charge Sheet) दाखिल हो जाने के बाद भी एफआईआर को रद्द किया जा सकता है? यह लेख इस सवाल पर चर्चा करेगा और महत्वपूर्ण न्यायिक फैसलों (Judicial Precedents) के आधार पर इस प्रश्न का उत्तर देगा।

धारा 482 CrPC: दायरा और कानूनी ढांचा (Scope and Legal Framework)

धारा 482 CrPC हाईकोर्ट को यह अधिकार देता है कि वह किसी भी ऐसी स्थिति में आदेश दे सके, जो न्याय की रक्षा के लिए आवश्यक हो।

यह धारा न्यायालय को निम्नलिखित शक्ति प्रदान करती है:

1. किसी आदेश का पालन सुनिश्चित करने के लिए।

2. न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने के लिए।

3. न्याय प्राप्त करने के लिए।

हालांकि, चार्जशीट दाखिल हो जाने के बाद एफआईआर को रद्द करने का कोई स्पष्ट प्रावधान CrPC में नहीं है, लेकिन विभिन्न न्यायिक फैसलों के माध्यम से इस अधिकार का दायरा स्पष्ट किया गया है।

चार्जशीट दाखिल होने के बाद एफआईआर रद्द करने का कानूनी सिद्धांत (Legal Principles After Filing of Charge Sheet)

चार्जशीट दाखिल होने के बाद आपराधिक प्रक्रिया का अगला चरण न्यायिक प्रक्रिया के अधीन होता है। हालांकि, हाईकोर्ट के पास अब भी यह शक्ति है कि वह एफआईआर और चार्जशीट को रद्द कर सके यदि यह स्पष्ट हो जाए कि अपराध का कोई मामला नहीं बनता है या न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग हो रहा है।

1. अंतरिम शक्ति (Inherent Power) नहीं होती समाप्त: चार्जशीट दाखिल हो जाने के बाद भी हाईकोर्ट की धारा 482 CrPC के तहत दी गई शक्तियां समाप्त नहीं होती हैं। यदि यह साबित हो जाए कि शिकायत फर्जी (Frivolous) या दुर्भावनापूर्ण (Malicious) है, तो न्यायालय अभी भी एफआईआर को रद्द कर सकता है।

2. साक्ष्यों का प्रारंभिक परीक्षण (Examination of Prima Facie Evidence): इस चरण पर, न्यायालय यह देख सकता है कि क्या चार्जशीट में लगे आरोपों के आधार पर कोई प्रथम दृष्टया (Prima Facie) मामला बनता है या नहीं। यदि साक्ष्य अपर्याप्त हैं या आरोप स्पष्ट नहीं हैं, तो न्यायालय एफआईआर और चार्जशीट दोनों को रद्द कर सकता है।

3. दुर्व्यवहार रोकने के लिए (To Prevent Abuse of Process): यदि आपराधिक प्रक्रिया का उपयोग किसी को परेशान करने के लिए किया जा रहा है, तो हाईकोर्ट चार्जशीट दाखिल होने के बावजूद भी एफआईआर को रद्द कर सकता है।

चार्जशीट दाखिल होने के बाद एफआईआर रद्द करने के लिए महत्वपूर्ण मामले (Key Judicial Precedents)

विभिन्न न्यायिक निर्णयों ने यह स्पष्ट किया है कि चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी हाईकोर्ट एफआईआर को रद्द करने की शक्ति रखता है।

कुछ प्रमुख मामलों पर नज़र डालते हैं:

1. जोसेफ साल्वाराज ए. बनाम राज्य गुजरात (Joseph Salvaraj A. vs. State of Gujarat) (2011): इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चार्जशीट दाखिल हो जाने के बाद भी धारा 482 CrPC के तहत एफआईआर को रद्द किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि यदि यह स्पष्ट हो जाए कि आरोप फर्जी हैं या दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य से लगाए गए हैं, तो न्यायालय कार्यवाही को रोक सकता है।

2. आनंद कुमार मोहत्टा बनाम राज्य (Anand Kumar Mohatta vs. State) (2019): इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट की शक्ति केवल चार्जशीट दाखिल होने से सीमित नहीं होती। यदि आपराधिक कार्यवाही का उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करना है, तो एफआईआर को रद्द करना उचित है।

3. नीहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर बनाम महाराष्ट्र राज्य (Neeharika Infrastructure vs. State of Maharashtra) (2021): इस निर्णय में, अदालत ने कहा कि हालांकि चार्जशीट दाखिल होने के बाद एफआईआर को रद्द करने का अधिकार सावधानीपूर्वक इस्तेमाल किया जाना चाहिए, यह हाईकोर्ट की शक्ति के अंतर्गत आता है। यदि आरोपों में दम नहीं है, तो एफआईआर को रद्द किया जा सकता है।

4. महमूद अली बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (Mahmood Ali vs. State of U.P.) (2023): इस मामले में अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट को यह देखने की ज़रूरत है कि एफआईआर या चार्जशीट से अपराध के तत्व स्पष्ट होते हैं या नहीं। यदि यह प्रतीत होता है कि आपराधिक कार्यवाही दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य से शुरू की गई है, तो न्यायालय एफआईआर को रद्द कर सकता है।

5. अभिषेक बनाम मध्य प्रदेश राज्य (Abhishek vs. State of Madhya Pradesh) (2023): इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चार्जशीट दाखिल होने के बावजूद एफआईआर को रद्द कर दिया। न्यायालय ने इस मामले में पाया कि आरोप सामान्य और अस्पष्ट थे, और इनसे आपराधिक कार्यवाही चलाने का कोई ठोस आधार नहीं था। यह निर्णय स्पष्ट करता है कि चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी न्यायालय कार्यवाही को रद्द कर सकता है यदि आरोप आधारहीन हैं।

चार्जशीट दाखिल हो जाने के बाद भी हाईकोर्ट के पास धारा 482 CrPC के तहत एफआईआर रद्द करने की शक्ति होती है। हालांकि, इस शक्ति का उपयोग सावधानी से किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वास्तविक आपराधिक मामलों पर प्रभाव न पड़े। न्यायालय ने यह साफ किया है कि यदि आरोप फर्जी या दुर्भावनापूर्ण हैं, तो एफआईआर और चार्जशीट दोनों को रद्द किया जा सकता है ताकि न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग रोका जा सके।

Tags:    

Similar News