क्या Homebuyer को Consumer कानून होते हुए भी Arbitration में जाने के लिए मजबूर किया जा सकता है?

Experion Developers बनाम Sushma Ashok Shiroor (2022) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने consumer अधिकारों, arbitration (मध्यस्थता) और real estate agreements (अचल संपत्ति समझौते) में arbitration clauses की वैधता से जुड़े अहम कानूनी मुद्दों पर विचार किया।
इस मामले में यह तय किया गया कि क्या एक homebuyer (गृह खरीदार), जिसे Consumer Protection Act, 1986 और 2019 द्वारा सुरक्षा दी गई है, को केवल इसलिए arbitration में जाने के लिए मजबूर किया जा सकता है क्योंकि उसके और developer (विकासकर्ता) के बीच ऐसा agreement (समझौता) हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि consumer कानूनों और Arbitration and Conciliation Act, 1996 के बीच क्या संबंध है और यह भी कि क्या arbitration clause (मध्यस्थता खंड) consumer के अधिकारों को सीमित कर सकता है।
Consumer कानून और Arbitration: क्या दोनों साथ चल सकते हैं?
इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह था कि क्या एक homebuyer, जिसने एक real estate developer से property खरीदी है, को सिर्फ इसलिए arbitration में जाने के लिए बाध्य किया जा सकता है क्योंकि समझौते में ऐसा लिखा है।
Consumer Protection Act इस बात की गारंटी देता है कि buyers (खरीदार) को consumer forums में शिकायत करने का अधिकार हो, जिससे वे किसी भी अनुचित व्यापारिक गतिविधियों (Unfair Trade Practices) के खिलाफ शिकायत कर सकें। लेकिन अक्सर developers अपने agreements में arbitration clause जोड़ते हैं ताकि homebuyers को अदालत में जाने से रोका जा सके।
इससे पहले National Seeds Corporation Ltd. बनाम M. Madhusudhan Reddy (2012) में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था कि यदि कोई arbitration clause मौजूद हो, तब भी consumer courts के पास jurisdiction (अधिकार क्षेत्र) रहेगा।
Experion Developers मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने यही दोहराया कि consumer protection कानून एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए बनाए गए हैं, और कोई भी arbitration clause, consumer के अधिकारों को समाप्त नहीं कर सकता।
क्या एक Consumer को एक साथ Arbitration और Consumer Forum में जाने का अधिकार है?
एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह भी था कि यदि agreement में arbitration clause हो तो क्या फिर भी homebuyer consumer courts में जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही Emaar MGF Land Ltd. बनाम Aftab Singh (2019) में यह स्पष्ट कर दिया था कि consumer disputes (उपभोक्ता विवाद) arbitration के तहत नहीं आते।
Experion Developers मामले में भी यह निर्णय लिया गया कि जब कोई व्यक्ति एक homebuyer की तरह व्यवहार कर रहा है, तो उसे arbitration में जाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि arbitration कोई absolute bar (पूर्ण निषेध) नहीं है, और homebuyers को अपने अधिकारों के लिए consumer courts में जाने की पूरी स्वतंत्रता है।
Builder-Buyer Agreements में Unfair Terms (अनुचित शर्तें) कितनी वैध हैं?
कोर्ट ने यह भी देखा कि क्या real estate agreements में ऐसे terms (शर्तें) हो सकते हैं जो homebuyers के अधिकारों को सीमित कर दें। बहुत सारे developers agreements में एकतरफा (One-Sided) शर्तें जोड़ देते हैं, जिससे buyers को अपने कानूनी अधिकारों को लागू करने में कठिनाई होती है।
Pioneer Urban Land and Infrastructure Ltd. बनाम Govindan Raghavan (2019) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि कोई agreement एक पक्ष के पक्ष में पूरी तरह झुका हुआ है, तो वह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होगा।
इसी सिद्धांत को Experion Developers मामले में भी अपनाया गया। कोर्ट ने कहा कि real estate agreements में मौजूद arbitration clauses का मुख्य उद्देश्य homebuyers को उनके अधिकारों से वंचित करना है। ऐसे clauses को निष्प्रभावी (Unenforceable) माना जाएगा क्योंकि consumer protection कानून के तहत buyers को न्याय पाने का अधिकार है।
क्या हर Homebuyer को Consumer माना जाएगा?
एक और महत्वपूर्ण प्रश्न यह था कि क्या सभी homebuyers को Consumer Protection Act के तहत consumer माना जाएगा? अक्सर developers यह तर्क देते हैं कि जो लोग property निवेश (Investment) के उद्देश्य से खरीदते हैं, वे consumer नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने Kavita Ahuja बनाम Shipra Estates Ltd. (2016) में यह निर्णय दिया था कि यदि कोई व्यक्ति व्यक्तिगत उपयोग (Personal Use) के लिए घर खरीदता है, तो वह consumer कहलाएगा।
Experion Developers मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इसी निर्णय को दोहराते हुए कहा कि जब तक यह साबित न हो कि buyer ने पूरी तरह व्यावसायिक उद्देश्य (Commercial Purpose) के लिए property खरीदी है, तब तक उसे consumer माना जाएगा और उसे consumer protection कानूनों के तहत सुरक्षा दी जाएगी।
क्या RERA (Real Estate Regulation and Development Act) के कारण Consumer Laws निष्प्रभावी हो जाते हैं?
एक और बड़ा मुद्दा यह था कि क्या Real Estate (Regulation and Development) Act, 2016 (RERA) consumer के अधिकारों को सीमित कर सकता है? कुछ developers यह दावा करते हैं कि RERA के तहत पहले से ही dispute resolution (विवाद निपटान) का एक सिस्टम उपलब्ध है, इसलिए buyers को consumer कानूनों का सहारा नहीं लेना चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने Imperia Structures Ltd. बनाम Anil Patni (2020) मामले में यह स्पष्ट कर दिया था कि RERA consumer laws का विकल्प (Substitute) नहीं है, बल्कि दोनों साथ-साथ चलते हैं।
Experion Developers मामले में भी यह सिद्धांत लागू किया गया, और कोर्ट ने यह कहा कि homebuyers को RERA और Consumer Protection Act दोनों के तहत relief (राहत) लेने का अधिकार है। कोई भी developer यह नहीं कह सकता कि RERA के कारण buyers consumer courts में नहीं जा सकते।
सुप्रीम कोर्ट का Experion Developers बनाम Sushma Ashok Shiroor (2022) में दिया गया निर्णय real estate में consumer अधिकारों की रक्षा करने वाला एक महत्वपूर्ण निर्णय है।
यह फैसला दो महत्वपूर्ण बिंदुओं को स्पष्ट करता है – पहला, कोई भी arbitration clause consumer protection कानूनों से ऊपर नहीं हो सकता, और दूसरा, homebuyers को legal remedies (कानूनी उपचार) लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता कि वे केवल arbitration में ही जाएं।
इस निर्णय के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने फिर से यह दोहराया कि developers अपनी agreements में unfair clauses (अनुचित शर्तें) जोड़कर buyers को उनके अधिकारों से वंचित नहीं कर सकते। यह फैसला homebuyers के लिए एक बड़ा राहतभरा निर्णय है क्योंकि अब वे सुनिश्चित कर सकते हैं कि उनके अधिकारों की रक्षा होगी और उन्हें अपने नुकसान की भरपाई के लिए पूरी कानूनी प्रक्रिया का लाभ मिलेगा।