NI Act में Presentment का स्थान और समय

Update: 2025-04-07 04:15 GMT
NI Act में Presentment का स्थान और समय

प्रतिग्रहण का स्थान एवं समय- यदि विनिमय पत्र में कोई विशेष समय एवं स्थान निर्देशित है तो प्रतिग्रहण के लिए उसी समय एवं स्थान पर उपस्थापित किया जाना चाहिए और यदि ऊपरवाल उस समय एवं स्थान पर युक्तियुक्त खोज द्वारा नहीं पाया जाता है, तो विनिमय पत्र अनादृत माना जाता है। (धारा 69)

जहाँ कोई विनिमय पत्र के प्रतिग्रहण के लिए कोई स्थान विहित नहीं है तो वहाँ, जहाँ कहाँ भी ऊपरवाल पाया जाता है, Presentment किया जा सकेगा और यदि वह युक्तियुक्त खोज से नहीं पाया जाता है तो विनिमय पत्र अनादूत माना जाएगा। (धारा 71)

डाक द्वारा Presentment - जहाँ अनुबन्ध द्वारा प्राधिकृत है या रुढ़ियों के अनुसार Presentment पोस्ट ऑफिस द्वारा किया जाना है वहाँ पंजीकृत डाक द्वारा पत्र भेजना पर्याप्त होगा।

इंग्लिश विनिमय पत्र अधिनियम, 1882 में इसी प्रकार प्रावधान किया गया है।

युक्तियुक्त समय में जहाँ लिखत में कोई समय विहित नहीं है वहाँ इसे प्रतिग्रहण के लिए युक्तियुक्त समय में उपस्थापित किया जाना चाहिए। धारा 105 में यह उपबन्धित है कि युक्तियुक्त समय के अवधारण में लिखत की प्रकृति एवं प्राधिक व्यवहार को ध्यान में रखा जाएगा। धारा 75क के अधीन विलम्ब को माफी करने का प्रावधान है जहाँ विलम्ब उन परिस्थितियों में किया गया है जो उसके नियंत्रण के बाहर था विनिमय पत्र को सदैव कारोबार के समय एवं कारोबार के दिन उपस्थापित किया जाना चाहिए।

कब प्रतिग्रहण के लिए Presentment आवश्यक है एक विनिमय पत्र को संदाय के लिए Presentment के पूर्व प्रतिग्रहण के लिए उपस्थापित किया जाएगा। परन्तु सभी विनिमय पत्रों को प्रतिग्रहण के लिए उपस्थापित करना आवश्यक नहीं होता है। प्रतिग्रहण के लिए विनिमय पत्र का Presentment करना निम्नलिखित दशा में आवश्यक होता है जहाँ

विनिमय पत्र प्रतिग्रहण के पश्चात् निश्चित समय पर देय है, या

विनिमय पत्र दर्शनोत्तर देय है, या

जहाँ विनिमय पत्र में प्रतिग्रहण का Presentment अपेक्षित है, या

जहाँ विनिमय पत्र ऊपरवाल के निवास स्थान या कारोबार स्थान से भिन्न किसी स्थान पर देय बनाया गया है।

प्रतिग्रहण के Presentment का उद्देश्य - एक विनिमय पत्र प्रतिग्रहण वास्ते निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए उपस्थापित की जाती है

ऊपरवाल को विनिमय पत्र में एक पक्षकार के रूप में आवद्धता को सुनिश्चित करने लिए।

अप्रतिग्रहण की दशा में विनिमय पत्र के लेखोवाल को आरोपित करने के लिए।

कब प्रतिग्रहण के लिए Presentment अनावश्यक होता है - इस सम्बन्ध में परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, परन्तु आंग्ल विनिमय पत्र अधिनियम, 1882 में निश्चित प्रावधान धारा 40 (2) में किया गया है, जो है : निम्नलिखित मामलों में विनिमय पत्र का प्रतिग्रहण के लिए Presentment को माफी दिया गया है, एवं विनिमय पत्र अनादृत माना जाएगा-

जहाँ ऊपरवाल है

एक मृतक व्यक्ति

दिवालिया न्यायनिर्णत है

काल्पनिक व्यक्ति है

संविदा करने में असक्षम व्यक्ति है

जहाँ ऊपरवाल सम्यक् खोज के पश्चात् नहीं पाया जाता है, विनिमय पत्र उक सभी प्रावधानों को भारतीय विधि में भी प्रयोज्य बनाया गया है।

प्रतिग्रहण के Presentment न करने का परिणाम विनिमय पत्र के पक्षकारों के बीच संविदात्मक सम्बन्ध या विधिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए ऊपरवाल द्वारा विनिमय पत्र का प्रतिग्रहण आवश्यक होता है। यदि इसे प्रतिग्रहण के लिए उपस्थापित नहीं किया जाता है, निम्नलिखित परिणाम उत्पन्न होते हैं-

विनिमय पत्र के अधीन ऊपरवाल का दायित्व उत्पन्न नहीं होगा।

विनिमय पत्र के पक्षकारों के बीच संविदात्मक सम्बन्ध नहीं होगा।

विनिमय पत्र को अनादृत मान लिया जाएगा।

ऊपरवाल को विचार-विमर्श के लिए समय- यदि विनिमय पत्र का ऊपरवाल, जो प्रतिग्रहण के लिए उसके समक्ष उपस्थापित किया गया है. धारक से ऐसी अपेक्षा करे तो यह ऊपरवाल को यह विचार करने के लिए क्या वह उसे प्रतिग्रहीत करेगा अड़तालिस घण्टे का समय (लोक अवकाश दिनों का अपवर्जन करके) देगा (धारा 63, परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881)

वचन पत्र को दर्शन के लिए Presentment (धारा 62)

अधिनियम की धारा 62 में यह उपबन्धित है कि दर्शानोपरान्त निश्चित कालावधि पर देय वचन पत्र उसके रचयिता के समक्ष (यदि यह युक्तियुक्त तलाश के पश्चात् पाया जा सके) उसके रचे जाने के पश्चात् युक्तियुक्त समय के अन्दर उस व्यक्ति द्वारा जो संदाय की माँग करने का हकदार है और कारबार के दिन कारवार के समय दर्शन के लिए उपस्थापित किया जाना चाहिए। ऐसे Presentment में व्यतिक्रम होने पर उसका कोई भी पक्षकार ऐसा व्यतिक्रम करने वाले व्यतिक्रम के प्रति उस पर दायी न होगा।

संदाय के लिए Presentment ( धारा 64 ) – धारा 64 में संदाय के लिए लिखतों का Presentment का प्रावधान किया गया है। वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक क्रमशः उसके रचयिता, प्रतिग्रहांता या ऊपरवाल को एतस्मिन्पश्चात् उपबन्धित तौर पर संदाय के लिए धारक द्वारा या उसकी ओर से उपस्थापित किए जाने होंगे। ऐसे Presentment में व्यतिक्रम होने पर उसके अन्य पक्षकार ऐसे धारक के प्रति उस पर दायो न होंगे।

जहाँ करार या प्रथा द्वारा अधिकृत है, पंजीकृत डाक द्वारा पंजीकृत पत्र द्वारा Presentment पर्याप्त होगा।

लेखीवाल को भारित करने के लिए चेक का Presentment (धारा 72, 138)

चेकों का संदाय के लिए Presentment - अन्य लिखतों के समान चेक को भी संदाय के लिए बैंक में Presentment करना होगा। ऐसा Presentment संग्रहण हेतु या नकद संदाय के लिए किया जा सकता है। अब चेकों को कोर बैंकिंग सेवा (सी० बी० सी०) के अधीन ऊपरवाल बैंक के किसी अन्य शाखा पर संदाय हेतु उपस्थापित किया जा सकता है। चेक को संदाय के लिए ऊपरवाल बैंक में Presentment आवश्यक है। चेक का संग्रहण किसी भी बैंक के माध्यम से किया जा सकता है, जहाँ धारक का खाता है।

सन् 1988 में चेकों के इतिहास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिला कि खातों में अपर्याप्त निधियों के कारण कतिपय चेकों के अनादर को अपराध बना दिया गया है जो इस अधिनियम को धारा 138 के अधीन दण्डनीय है और वह व्यक्ति जिसने अपराध किया है, कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो चैक रकम की दुगुना तक हो सके. या दोनों से दण्डनीय होगा। चेकों के अनादर सम्बन्धी नई विधि का उपबन्ध अधिनियम की धारा 138 से 148 तक किया गया।

परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 के अधीन अब चेकों के अनादर को अपराध घोषित किया गया है। इसकी प्रथम अपेक्षा है कि चेक को इसके लिखे जाने की तिथि से 6 माह के अन्दर या चेक की विधिमान्यता अवधि जो भी इन दोनों में से पूर्व की हो, बैंक में प्रस्थापित किया जाना चाहिए। इस पहलू को आगे के अध्याय में विस्तार से स्पष्ट किया गया है।

धारा 138 उन निधियों के अभाव में चेक के अनादर को अपराध बनाता है जो दो वर्ष की कारावास और आर्थिक जुर्माना जो चेक की धनराशि का दो गुना होगा या दोनों से दण्डित होगा।

चेकों का निरन्तर Presentment - सदानन्दन भादरन बनाम माधवन सुनील कुमाएँ, के मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह विनिश्चय था कि एक चेक को उसकी विधिमान्यता अवधि में अनेकों बार उपस्थापित किया जा सकेगा। यहाँ तक कि चेक के अनादर के पश्चात् भी चेक को पुनः संदाय के लिए बैंक में उपस्थापित किया जा सकेगा। सुप्रीम कोर्ट का यह मत था कि चेक को निरन्तर Presentment धारा 138 के अधीन कोई कार्यवाही करने के पूर्व ही की जा सकेगी, परन्तु सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को एम० एस० आर० लेदर बनाम पलानियप्पन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उलट दिया था और यह निर्णीत किया है कि एक चैक को उसकी विधिमान्यता अवधि में यहाँ तक कि धारा 138 के अधीन माँग सूचना देने के बावजूद भी संदाय के लिए उपस्थापित किया जा सकेगा।

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