भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) के सेक्शन 279 में यह प्रावधान किया गया है कि समन मामले (Summons-Case) में अगर शिकायतकर्ता (Complainant) अदालत में उपस्थित नहीं होता है या उसकी मृत्यु हो जाती है, तो ऐसी स्थिति में न्यायिक प्रक्रिया को कैसे आगे बढ़ाया जाएगा।
यह प्रावधान न्याय प्रक्रिया में देरी रोकने के लिए बनाया गया है और इसे समन मामले के पहले के प्रावधानों (274-278) से जोड़ा गया है।
शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति में आरोपी की बरी (Acquittal in Absence of the Complainant - Section 279(1))
जब शिकायत के आधार पर समन जारी किया जाता है, तो शिकायतकर्ता को तय तारीख पर अदालत में उपस्थित होना होता है। यदि शिकायतकर्ता उस तारीख पर या मामले की सुनवाई के लिए तय किसी अन्य तारीख पर उपस्थित नहीं होता है, तो मजिस्ट्रेट (Magistrate) आरोपी को बरी कर सकते हैं।
बरी करने से पहले, मजिस्ट्रेट को शिकायतकर्ता को अदालत में उपस्थित होने के लिए 30 दिन का समय देना अनिवार्य है। यह समय शिकायतकर्ता को अपनी अनुपस्थिति का कारण बताने और सुनवाई में भाग लेने का अवसर प्रदान करता है।
• उदाहरण: यदि किसी व्यक्ति ने जमीन विवाद में शिकायत दर्ज की और वह सुनवाई की तारीख पर अदालत में उपस्थित नहीं हुआ, तो मजिस्ट्रेट 30 दिन इंतजार के बाद आरोपी को बरी कर सकते हैं।
शिकायतकर्ता की उपस्थिति की छूट (Exemption from Personal Attendance)
कुछ परिस्थितियों में मजिस्ट्रेट शिकायतकर्ता की व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दे सकते हैं, जैसे:
1. यदि शिकायतकर्ता की ओर से कोई वकील (Advocate) या अभियोजन अधिकारी (Prosecution Officer) उसकी ओर से उपस्थित है।
2. यदि मजिस्ट्रेट को लगता है कि शिकायतकर्ता की व्यक्तिगत उपस्थिति मामले के लिए आवश्यक नहीं है।
ऐसी स्थिति में सुनवाई शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति में भी जारी रह सकती है।
• उदाहरण: किसी चेक बाउंस मामले में, जहां शिकायतकर्ता ने पहले ही सारे सबूत जमा कर दिए हैं और उसकी ओर से एक वकील मौजूद है, मजिस्ट्रेट उसकी उपस्थिति अनिवार्य नहीं मान सकते।
शिकायतकर्ता की मृत्यु के मामले में प्रक्रिया (Procedure in Case of Death of the Complainant - Section 279(2))
यदि शिकायतकर्ता की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो जाती है, तो सेक्शन 279(1) के प्रावधानों को यथासंभव लागू किया जाएगा। इसका मतलब यह है कि मजिस्ट्रेट इस बात पर विचार करेंगे कि मामला शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति में भी आगे बढ़ सकता है या नहीं।
यदि शिकायतकर्ता की मृत्यु के बावजूद अभियोजन पक्ष के पास पर्याप्त सबूत हैं, तो सुनवाई जारी रह सकती है। लेकिन यदि मामला केवल शिकायतकर्ता के बयान पर आधारित है, तो मजिस्ट्रेट आरोपी को बरी करने का फैसला ले सकते हैं।
• उदाहरण: एक धोखाधड़ी के मामले में, यदि शिकायतकर्ता का निधन हो गया और अभियोजन पक्ष के पास पर्याप्त दस्तावेजी साक्ष्य हैं, तो मजिस्ट्रेट सुनवाई जारी रख सकते हैं।
समन मामलों के पहले के प्रावधानों से संबंध (Connection to Previous Provisions)
सेक्शन 279 समन मामले के न्यायिक प्रक्रिया का एक अभिन्न हिस्सा है और इसे समझने के लिए पहले के प्रावधानों को जानना आवश्यक है:
1. सेक्शन 274: आरोपी को आरोपों की जानकारी दी जाती है और उसे दोषी मानने या बचाव का अवसर दिया जाता है।
2. सेक्शन 275: आरोपी के दोषी मानने पर उसे तुरंत सजा दी जा सकती है।
3. सेक्शन 276: आरोपी अदालत में आए बिना दोष स्वीकार कर सकता है।
4. सेक्शन 277: अभियोजन और बचाव पक्ष दोनों को साक्ष्य प्रस्तुत करने का मौका दिया जाता है।
5. सेक्शन 278: साक्ष्यों के आधार पर मजिस्ट्रेट आरोपी को दोषी या निर्दोष ठहराते हैं।
6. सेक्शन 279: शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति या मृत्यु के मामले में प्रक्रिया तय की गई है।
न्याय और न्यायिक प्रक्रिया का संतुलन (Balancing Justice and Judicial Process)
सेक्शन 279 यह सुनिश्चित करता है कि शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति या मृत्यु के बावजूद मामले को बिना अनावश्यक देरी के निपटाया जा सके। इससे न केवल आरोपी के अधिकारों की रक्षा होती है, बल्कि न्यायिक प्रणाली की कार्यक्षमता (Efficiency) भी बढ़ती है।
यह प्रावधान न्याय में तेजी लाने और समन मामलों को सरल बनाने के उद्देश्य से बनाया गया है। यह यह भी दिखाता है कि भारतीय न्याय प्रणाली प्रत्येक पक्ष के अधिकारों का सम्मान करते हुए दोषियों को जवाबदेह बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।