महिला के साथी, उसके रिश्तेदारों पर कानूनी विवाह के अभाव में क्रूरता के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता: हाईकोर्ट

Update: 2024-11-01 12:12 GMT

शिकायतकर्ता पत्नी द्वारा धारा 498ए आईपीसी के तहत व्यक्ति के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामला खारिज करते हुए केरल हाईकोर्ट ने दोहराया कि पक्षकारों के बीच कानूनी विवाह साबित करने वाले रिकॉर्ड के अभाव में महिला के साथी या उसके रिश्तेदारों के खिलाफ क्रूरता के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।

मामले के तथ्यों में याचिकाकर्ता पति और वास्तविक शिकायतकर्ता पत्नी के बीच विवाह को फैमिली कोर्ट द्वारा 2013 में शून्य और अमान्य घोषित किया गया, यह पाते हुए कि शिकायतकर्ता पत्नी की पिछली शादी कायम थी और भंग नहीं हुई। इस प्रकार हाईकोर्ट ने कहा कि चूंकि विवाह को शून्य और अमान्य घोषित किया गया, इसलिए "कानून की नज़र में कोई वैध विवाह नहीं है।"

इस विषय पर न्यायालय के हाल के निर्णय का हवाला देते हुए जस्टिस ए. बदरुद्दीन की एकल पीठ ने कहा:

“इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जब कोई वैध विवाह नहीं होता है तो महिला का साथी उसके पति का दर्जा प्राप्त नहीं करता। आईपीसी की धारा 498ए के तहत अपराध केवल उसके पति या उसके पति के रिश्तेदार/रिश्तेदारों के विरुद्ध ही लागू होगा। इसलिए अभिलेखों से पता चलता है कि वैध विवाह न होने पर आईपीसी की धारा 498ए के तहत महिला के साथी या साथी के रिश्तेदारों के विरुद्ध कोई अपराध लागू नहीं होगा, क्योंकि वैध विवाह के बिना साथी पति का दर्जा प्राप्त नहीं कर सकता।

शिकायतकर्ता पत्नी ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ने विवाह के बाद वैवाहिक घर में रहने के दौरान उसके साथ क्रूरता की, जो 2 नवंबर, 2009 को संपन्न हुआ था।

याचिकाकर्ता की ओर से उपस्थित वकील ने प्रस्तुत किया कि आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता के अभियोजन के लिए पक्षकारों के बीच कोई वैध विवाह नहीं था। यह कहा गया कि याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता का विवाह 2 नवंबर, 2009 को संपन्न हुआ था, जबकि शिकायतकर्ता का पहला विवाह अस्तित्व में था और विघटित नहीं हुआ था। यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच विवाह को फैमिली कोर्ट द्वारा पूर्व विवाह के अस्तित्व में रहने के कारण शून्य और अमान्य घोषित किया गया।

पूर्व उदाहरणों पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने देखा कि आईपीसी की धारा 498 ए के तहत अपराध को आकर्षित करने के लिए आवश्यक तत्व यह है कि क्रूरता पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा की जानी चाहिए।

यह भी नोट किया कि BNS की धारा 85 आईपीसी की धारा 498 ए के समरूप है।

कोर्ट ने कहा,

"यहां याचिकाकर्ता/प्रथम अभियुक्त ने कभी भी पति की स्थिति पर कभी भी अपना पक्ष नहीं रखा, क्योंकि विवाह शुरू से ही अमान्य था। बाद में इसे ऐसा ही घोषित कर दिया गया। इसलिए अभियोजन पक्ष का यह मामला कि याचिकाकर्ता ने धारा 498ए के साथ आईपीसी की धारा 34 के तहत अपराध किया, टिक नहीं पाता। तदनुसार, इस मामले को रद्द करने की आवश्यकता है। परिणामस्वरूप, यह याचिका स्वीकार की जाती है।"

इस प्रकार, हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक मामले और कार्यवाही रद्द की।

केस टाइटल: X बनाम केरल राज्य और अन्य

Tags:    

Similar News