घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतरिम आदेशों को चुनौती केवल स्पष्ट गैरकानूनी या अनियमितता होने पर ही BNSS की धारा 528 के तहत बनी रहेगी: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में निर्णय दिया कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 (DV Act) की धारा 12(1) के तहत पारित किसी अंतरिम आदेश को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट की निहित शक्तियों (Section 528 BNSS) का प्रयोग तभी किया जा सकता है, जब आदेश में स्पष्ट गैरकानूनी या गंभीर अनियमितता हो।
जस्टिस जी. गिरीश ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुसार हाईकोर्ट को धारा 528 BNSS (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) के तहत अपनी निहित शक्तियों के प्रयोग में संयम बरतना चाहिए।
पृष्ठभूमि
DV Act की धारा 12(1) के तहत पीड़ित व्यक्ति या प्रोटेक्शन ऑफिसर मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन देकर राहत मांग सकते हैं। मजिस्ट्रेट घरेलू घटना रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए अंतरिम आदेश दे सकते हैं। वहीं BNSS की धारा 528 हाईकोर्ट को निहित शक्तियां देती है ताकि न्याय दिलाया जा सके या अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग रोका जा सके।
इस मामले में याचिकाकर्ता ने ग्राम न्यायालय वेल्लनाडु का अंतरिम आदेश रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। लेकिन रजिस्ट्री ने कहा कि चूंकि DV Act की धारा 29 में अपील का प्रावधान है, इसलिए BNSS की धारा 528 के तहत याचिका बनाए नहीं रखती।
कोर्ट ने विजयलक्ष्मी अम्मा वी.के. बनाम बिंदु वी., नरेश पॉटरीज बनाम आरती इंडस्ट्रीज और सौरभ कुमार त्रिपाठी बनाम विधि रावल जैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया।
कोर्ट ने कहा,
“जब तक किसी आदेश में स्पष्ट गैरकानूनी या गंभीर अनियमितता न हो तब तक हाईकोर्ट को घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पारित आदेशों में हस्तक्षेप करने में संयम बरतना चाहिए। अन्यथा DV Act, 2005 का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा।”
इस मामले में कोई गंभीर गैरकानूनीता या अनियमितता नहीं पाई गई, कोर्ट ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सलाह दी कि वह या तो उसी न्यायालय में आदेश में संशोधन या निरस्तीकरण की मांग कर सकता है या धारा 29 DV Act के तहत अपील दायर कर सकता है।
अंत में कोर्ट ने रजिस्ट्री द्वारा बताई गई खामी को सही ठहराया और याचिका याचिकाकर्ता को लौटाने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: टाइटस बनाम केरल राज्य एवं अन्य