बच्चे को उसके लिए अस्वीकार्य माता-पिता के साथ रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता: केरल हाइकोर्ट

Update: 2024-04-08 10:13 GMT

केरल हाइकोर्ट ने मां द्वारा कस्टडी की मांग करने वाली हेबियस कॉर्पस याचिका पर विचार करते हुए कहा कि नाबालिग बच्चे को ऐसे माता-पिता के साथ रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, जो बच्चे के लिए पूरी तरह से अस्वीकार्य हो।

जस्टिस अनिल के नरेंद्रन और जस्टिस जी गिरीश की खंडपीठ ने बच्चे को उसके मृत पिता के रिश्तेदारों के साथ रहने की अनुमति देते हुए इस प्रकार कहा,

“यदि यह पाया जाता है कि किसी दिए गए मामले में यदि माता-पिता के साथ बच्चे की कस्टडी का निर्देश देने वाला आदेश उस बच्चे के हित के लिए हानिकारक हो सकता है, खासकर जब बच्चा एडवांस एज में हो और अपने भविष्य की कार्रवाई के बारे में निर्णय लेने के लिए पर्याप्त परिपक्वता रखता हो तो इस न्यायालय के लिए उस बच्चे को ऐसे माता-पिता के साथ रहने के लिए बाध्य करने वाला आदेश पारित करना संभव नहीं है, जो उसके लिए पूरी तरह से अस्वीकार्य हो।”

मामले के तथ्यों में एक मां ने हेबियस कॉर्पस याचिका में अपने बेटे की कस्टडी की मांग करते हुए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

बच्चा अपने पिता के साथ रह रहा था और उनसे बहुत करीब था। पिता की मृत्यु के बाद बच्चे को दुबई भेज दिया गया और वह अपने पिता की बहन के परिवार के साथ रह रहा है। मां ने आरोप लगाया कि बच्चे को फैमिली कोर्ट के आदेश के विरुद्ध दुबई ले जाया गया और वह अवैध कस्टडी में है।

बच्चे से बातचीत करने के बाद न्यायालय ने कहा कि वह अपनी बुआ के साथ आराम से रह रहा है और अपनी मां और उसके नए परिवार के साथ नहीं रहना चाहता।

न्यायालय ने कहा कि बच्चे और उसकी मां के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध नहीं है।

न्यायालय ने कहा,

“उसने हमसे अनुरोध किया कि उसे उसकी मां के साथ न भेजा जाए। कहा कि वह उस घर के माहौल को बर्दाश्त नहीं कर पाएगा, जहां उसकी मां वर्तमान में रह रही है। हम पूरी तरह से संतुष्ट हैं कि बंदी द्वारा किया गया उपरोक्त अनुरोध उसके दिल से आया है। इसे उसकी तुच्छ और बचकानी धारणाओं के रूप में खारिज नहीं किया जा सकता।”

संगीता बनाम पुलिस आयुक्त (2002), सईद सलीमुद्दीन बनाम डॉ. रुखसाना और अन्य (2001) और एलिजाबेथ दिनशॉ बनाम अरविंद एम. दिनशॉ और अन्य (1987) पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने कहा कि बच्चों की कस्टडी से संबंधित हेबियस कॉर्पस के रिट में बच्चे के कल्याण को सर्वोपरि माना जाना चाहिए। इसने तेजस्विनी गौड़ और अन्य बनाम शेखर जगदीश प्रसाद तिवारी और अन्य (2013) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि असाधारण मामलों में न्यायालय नाबालिग बच्चे की कस्टडी के लिए पक्षकारों के अधिकारों को निर्धारित करने या सिविल न्यायालय में पक्षों को निर्देशित करने के लिए अपने असाधारण क्षेत्राधिकार का प्रयोग करेगा।

न्यायालय ने कहा कि बच्चा गैरकानूनी कस्टडी में नहीं है और माँ के इस तर्क को खारिज कर दिया कि मातृ देखभाल प्रदान करने के लिए हिरासत में उसके पास बेहतर मौका है।

न्यायालय ने कहा,

"याचिकाकर्ता के वकील की दलील इस कारण स्वीकार नहीं की जा सकती कि बंदी, जो अपनी उम्र से कहीं अधिक मानसिक रूप से परिपक्व है, उसने हमें स्पष्ट शब्दों में बताया कि वह अपनी मां के साथ नहीं रह पाएगा, जो अक्सर उसके दिवंगत पिता के बारे में अपशब्द कहकर उसे चोट पहुंचाने का प्रयास करती है, जिसके साथ उसका गहरा स्नेहपूर्ण संबंध था।"

लटोरी चमार बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य (2007) में मध्य प्रदेश हाइकोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि किसी बच्चे को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षण से वंचित नहीं किया जा सकता और उसे स्वीकार्य गरिमापूर्ण वातावरण में रहने का अधिकार है। न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी बच्चे को उसके लिए अजनबी वातावरण में और ऐसे व्यक्ति के साथ रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती जो उसे अपने पास नहीं रखना चाहता।

न्यायालय ने कहा कि हेबियस कॉर्पस याचिका में वह बच्चे की अभिरक्षा से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों के बारे में चिंतित नहीं है और उन मुद्दों को उचित अधिकार क्षेत्र वाले सक्षम न्यायालय द्वारा निर्धारित किया जा सकता है। इस प्रकार, न्यायालय ने कहा कि बच्चे को उसकी इच्छा के विरुद्ध याचिकाकर्ता-मां के साथ रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि यदि बच्चे को उसकी इच्छा के विरुद्ध उसकी मां के साथ रहने के लिए बाध्य किया जाता है तो इससे उसके जीवन और पढ़ाई में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

न्यायालय ने आगे कहा,

"प्रतिवादी 6 से 8, जिनके साथ बंदी वर्तमान में आराम से और शांतिपूर्वक रह रहा है और अच्छे तरीके से अपनी पढ़ाई कर रहा है, वे तब तक उसकी देखभाल करते रहेंगे जब तक कि अल्पसंख्यक और संरक्षकता मामलों पर अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने वाले किसी सक्षम न्यायालय से याचिकाकर्ता को उस बच्चे की अभिरक्षा सौंपने का आदेश न हो।”

तदनुसार न्यायालय ने माना कि वर्तमान हेबियस कॉर्पस याचिका में बच्चे की अभिरक्षा के लिए मां का अनुरोध स्वीकार नहीं किया जा सकता।

केस टाइटल- डॉ. अथुल्या अशोक बनाम राज्य पुलिस प्रमुख

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