साक्ष्य पर पुनर्विचार के बाद जारी की गई लोक सेवक के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी को केवल पिछली मंजूरी के इनकार के कारण खारिज नहीं किया जा सकता: केरल हाइकोर्ट

Update: 2024-04-30 07:45 GMT

केरल हाइकोर्ट ने कहा कि प्रस्तुत साक्ष्य पर पुनर्विचार के बाद जारी की गई लोक सेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा पिछली मंजूरी को अस्वीकार कर दिया गया।

वर्तमान मामले में सरकार में सक्षम प्राधिकारी ने आरोपी नंबर 2 सहित लोक सेवक पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार किया, जिसने जांच एजेंसी को ट्रायल कोर्ट के समक्ष रेफर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए मजबूर किया।

न्यायालय ने रेफर रिपोर्ट को इस निर्देश के साथ वापस कर दिया कि वह पुनर्विचार करने के लिए मंजूरी देने वाले प्राधिकारी के समक्ष संपूर्ण सामग्री रखे।

जस्टिस के बाबू ने कहा कि सरकार में सक्षम प्राधिकारी ने सामग्री पर पुनर्विचार किया और पाया कि लोक सेवकों पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए। तदनुसार उन पर मुकदमा चलाने की अनुमति दी गई।

याचिकाकर्ताओं पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(2) के साथ धारा 13(1)(डी) और धारा 120बी आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध करने का आरोप लगाया गया। अभियोजन पक्ष ने प्रस्तुत किया कि आरोपी नंबर 1-6, जो कथित अपराध के समय लोक सेवक हैं, उसने आरोपी नंबर 7 और 8 के साथ मिलकर विस्तृत नगर नियोजन योजना (DTPS) का उल्लंघन करते हुए कोवडियार में 14 मंजिला अपार्टमेंट के निर्माण के लिए धोखाधड़ी से परमिट जारी करने की साजिश रची। इस तरह आरोपी नंबर 8 को 9,00,59,340 रुपये का आर्थिक लाभ प्राप्त करने के इरादे से अवैध रूप से उक्त भवन का निर्माण करने की अनुमति दी।

यह कहा गया कि सक्षम प्राधिकारी ने शुरू में लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने की अनुमति देने से मना किया, जिसके परिणामस्वरूप जांच एजेंसी द्वारा संदर्भित रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। उक्त रिपोर्ट को क्षेत्राधिकार न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया।

याचिकाकर्ता ने संदर्भित रिपोर्ट को विशेष न्यायालय के समक्ष चुनौती दी। न्यायालय ने संदर्भित रिपोर्ट को वापस करते हुए जांच एजेंसियों को निर्देश दिया कि वे मामले पर नए सिरे से विचार करने के लिए सक्षम प्राधिकारी के समक्ष संपूर्ण रिकॉर्ड प्रस्तुत करें।

इसके बाद सक्षम प्राधिकारी ने मामले पर नए सिरे से विचार करने के बाद लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने की अनुमति दी। इसके बाद जांच एजेंसी ने लोक सेवकों और अन्य आरोपियों के खिलाफ अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की।

याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि एक बार जब उपयुक्त प्राधिकारी ने मंजूरी देने से मना कर दिया तो बाद में दी गई मंजूरी कानूनी रूप से वैध नहीं थी।

याचिकाकर्ता नंबर 2 ने चित्तरंजन दास बनाम केरल राज्य के निर्णय का हवाला देते हुए तर्क दिया कि जब आरोपी सेवा में था तो मंजूरी देने से मना किया गया। इसलिए सेवानिवृत्ति के बाद उस पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता भले ही लोक सेवक की सेवानिवृत्ति के बाद भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अभियोजन के लिए मंजूरी आवश्यक नहीं थी।

न्यायालय ने दावा खारिज कर दिया और स्पष्ट किया कि चित्तरंजन दास के मामले में दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ऐसे मामले में जहां लोक सेवक के सेवा में रहते हुए सक्षम प्राधिकारी द्वारा मांगी गई मंजूरी को अस्वीकार कर दिया गया, उस पर सेवानिवृत्ति के बाद मुकदमा नहीं चलाया जा सकता भले ही यह तथ्य हो कि लोक सेवक की सेवानिवृत्ति के बाद भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अभियोजन के लिए मंजूरी आवश्यक नहीं थी।

केस टाइटल - बीएस जयकुमार बनाम केरल राज्य, मंसूर जे बनाम केरल राज्य, ए. अब्दुल रशीद @ डॉ. एआर बाबू बनाम केरल राज्य और श्रीलता बनाम केरल राज्य

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