हत्या के प्रयास का मामला अंतिम रिपोर्ट दाखिल होने पर चोटों की प्रकृति पर विचार करने के बाद सुलझाया जा सकता है: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि आईपीसी की धारा 307 के तहत हत्या के प्रयास के मामले को अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने के बाद आरोपी और शिकायतकर्ता के बीच सुलझाया जा सकता है, अगर अभियोजन सामग्री और पीड़ित को लगी चोटों पर विचार करने के बाद उक्त अपराध के होने का संकेत नहीं मिलता।
जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि इस तरह के मामले को अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने से पहले सुलझाया नहीं जा सकता।
कोर्ट ने कहा, “उपर्युक्त कानूनी स्थिति को देखते हुए, आईपीसी की धारा 307 के तहत दंडनीय अपराध से जुड़े मामलों के निपटारे पर अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने के बाद उस स्थिति में विचार किया जा सकता है, जबकि अभियोजन सामग्री, साथ ही लगी चोटों की प्रकृति पर भी विचार करने के बाद उक्त अपराध के होने का संकेत नहीं मिलता, न कि अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने से पहले..। यानी, जब अदालतें इस बात पर निर्णय लेती हैं कि ऐसे मामलों में समझौता किया जाना चाहिए या नहीं तो अदालत को लगी चोटों की प्रकृति, शरीर के जिस हिस्से पर चोटें लगी हैं, उस पर विशेष ध्यान देना चाहिए और यह देखना चाहिए कि चोटें शरीर के महत्वपूर्ण/नाजुक हिस्सों पर लगी हैं या नहीं और हथियारों की प्रकृति आदि पर विचार किया जाता है।”
न्यायालय ने कहा कि यदि धारा 307 (हत्या का प्रयास) के तहत आरोप सिद्ध होने की प्रबल संभावना है, तो मामले का निपटारा नहीं किया जाना चाहिए। दूसरी ओर, यदि न्यायालय की राय है कि धारा 307 को अनावश्यक रूप से आरोप पत्र में शामिल किया गया था तो न्यायालय पक्षों के बीच समझौते को स्वीकार कर सकता है।
हाईकोर्ट ने मध्य प्रदेश राज्य बनाम लक्ष्मी नारायण एवं अन्य (2019) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि जघन्य और हत्या के प्रयास जैसे अपराधों को पक्षों के बीच निपटाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि हाईकोर्ट यह जांच कर सकता है कि क्या धारा 307 को केवल इसलिए जोड़ा गया है, या अभियोजन पक्ष के पास अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त सामग्री है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट चोट की प्रकृति, चोट कहां पहुंचाई गई है और इस्तेमाल किए गए हथियार की प्रकृति पर भी गौर कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह की कवायद आरोप पत्र तैयार होने/दायर होने के बाद ही स्वीकार्य है।
मामला यह है कि जब उनके बीच प्रेम संबंध टूट गए तो आरोपी ने शिकायतकर्ता को रोका और उसके साथ मारपीट की। आरोप है कि आरोपी ने शिकायतकर्ता पर चाकू से वार किया और कहा कि "मैं तुम्हें मार डालूंगा"।
आरोपी पर आईपीसी की धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने की सजा), 324 (स्वेच्छा से खतरनाक हथियारों या साधनों से चोट पहुंचाना), 341 (गलत तरीके से रोकने की सजा), 506 (ii) (आपराधिक धमकी) और 307 (हत्या का प्रयास) के तहत मामला दर्ज किया गया। शिकायतकर्ता ने अदालत के समक्ष हलफनामा पेश करते हुए कहा कि उनके बीच मामला सुलझ गया है और वह इस मामले को आगे बढ़ाने का इरादा नहीं रखती है।
अदालत ने मेडिकल रिकॉर्ड से पाया कि चोटें बाएं ऊपरी बांह और बाएं कंधे पर लगी थीं। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि किसी भी महत्वपूर्ण/नाजुक शरीर के अंग पर कोई चोट नहीं थी और इसलिए धारा 307 प्रथम दृष्टया प्रमाणित नहीं होती है। अदालत ने याचिका को स्वीकार कर लिया और मामले में आगे की कार्यवाही रद्द कर दी।
केस नंबर: Crl.M.C. 9250 of 2024
केस टाइटल: अरशद बनाम केरल राज्य और अन्य
साइटेशन: 2024 लाइवलॉ (केर) 818