अवकाश नकदीकरण विवेकाधीन इनाम नहीं बल्कि संविधान के तहत लागू होने योग्य कानूनी अधिकार: कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2024-06-06 06:59 GMT

एच चन्नैया बनाम मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला पंचायत और अन्य के मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट की जस्टिस सचिन शंकर मगदुम की एकल पीठ ने माना कि अवकाश नकदीकरण को विवेकाधीन इनाम नहीं बल्कि भारत के संविधान के तहत लागू होने योग्य कानूनी अधिकार माना जा सकता है।

पृष्ठभूमि तथ्य

एच चन्नैया (याचिकाकर्ता) ने 1979 से 2013 में अपनी सेवानिवृत्ति तक पंचायत विकास अधिकारी (प्रतिवादी) के कार्यालय में वाटरमैन के रूप में काम किया। याचिकाकर्ता की सेवानिवृत्ति पर महालेखाकार कार्यालय ने याचिकाकर्ता के सेवा डेटा और उसकी देय पेंशन के साथ विस्तृत विवरण तैयार किया।

इसके अलावा जिला पंचायत के सीईओ और पावगड़ा तालुका पंचायत के तालुका कार्यकारी अधिकारी द्वारा जारी निर्देश थे, जिसमें याचिकाकर्ता की अर्जित अवकाश नकदीकरण का निपटान करने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया गया। हालांकि, स्पष्ट निर्देशों के बाद भी याचिकाकर्ता के पक्ष में अर्जित अवकाश का केवल एक हिस्सा ही जारी किया गया। इस प्रकार, प्रतिवादी को अर्जित अवकाश के नकदीकरण में ब्याज सहित बकाया राशि जारी करने के निर्देश देने के लिए रिट याचिका दायर की गई।

प्रतिवादी द्वारा यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता की रोजगार स्थिति के बारे में विवाद था। याचिकाकर्ता केवल अस्थायी कर्मचारी था और याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों के बारे में भी संदेह था, क्योंकि सहायक नियंत्रक राज्य लेखा के रिकॉर्ड याचिकाकर्ता की ग्राम पंचायत के साथ प्रारंभिक नियुक्ति की पुष्टि नहीं करते।

न्यायालय के निष्कर्ष

न्यायालय ने पाया कि प्रतिवादी के तर्कों में कोई दम नहीं था, क्योंकि याचिकाकर्ता के सेवा रिकॉर्ड, जो कई वर्षों और विभिन्न प्रशासनिक इकाइयों में फैले हुए हैं, स्पष्ट रूप से उसके निरंतर रोजगार को स्थापित करते हैं। उसकी सेवानिवृत्ति पर ग्राम पंचायत द्वारा याचिकाकर्ता को दिए गए पेंशन लाभों से उसके रोजगार की पुष्टि होती है।

न्यायालय ने देवकीनंदन प्रसाद बनाम बिहार राज्य के मामले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि पेंशन और ग्रेच्युटी केवल नियोक्ता की विवेकाधीन इच्छा के अधीन नि:शुल्क भुगतान नहीं हैं। ये लाभ कर्मचारी को सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले कानूनी अधिकार हैं और वे नियोक्ता के विवेक या पदनाम पर निर्भर नहीं हैं।

न्यायालय ने आगे कहा कि यदि हम देवकीनंदन प्रसाद मामले में रखी गई नींव पर निर्माण करते हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि पेंशन, स्वास्थ्य ग्रेच्युटी और छुट्टी नकदीकरण के अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(एफ) और अनुच्छेद 31(1) के तहत मौलिक अधिकारों का अभिन्न अंग हैं। वे किसी व्यक्ति की आर्थिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं। यह सुनिश्चित करते हैं कि व्यक्ति को कानून की उचित प्रक्रिया के बिना उसके उचित अधिकारों से वंचित न किया जाए।

न्यायालय ने आगे कहा कि प्रशासनिक निर्देशों का सिद्धांत नागरिकों को दी गई संवैधानिक सुरक्षा का स्थान नहीं ले सकता। संविधान के अनुच्छेद 300ए में यह प्रावधान है कि राज्य किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं कर सकता, जिसमें अवकाश नकदीकरण जैसे अधिकार शामिल हैं, बिना कानून के अधिकार के। इस प्रकार, प्रशासनिक निर्देशों के आधार पर इन अधिकारों को रोकने का प्रयास असंवैधानिक होगा।

इस प्रकार न्यायालय ने माना,

“अवकाश नकदीकरण को विवेकाधीन इनाम के रूप में नहीं देखा जा सकता, बल्कि इसे भारत के संविधान के तहत लागू करने योग्य कानूनी अधिकार के रूप में देखा जा सकता है।”

उपर्युक्त टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने रिट याचिका को अनुमति दे दी।

केस टाइटल- एच चन्नैया बनाम मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला पंचायत और अन्य

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